मिलिए अपनी पार्टियों के लिए सिरदर्द बने जर्मन राजनेताओं से
जर्मनी की राजनीति पर भी उत्तेजित करने वाले लोकलुभावनवाद की छाया है, जो कि देश की सबसे मध्यमार्गी पार्टियों में भी नजर आती है. मिलिए ऐसे ही कुछ जर्मन राजनेताओं से जिन्होंने अपनी अपनी पार्टियों को काफी सिरदर्द दिया है.
बोरिस पामर (ग्रीन पार्टी)
ग्रीन पार्टी के पूर्व नेता और टुबिंगेन शहर के मेयर बोरिस पामर ने अश्वेत लोगों के लिए एक आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए गए. लेकिन पामर पीछे हटने की बजाय प्रदर्शनकारियों से बहस करने लगे. अब उन्होंने घोषणा की है कि वो पार्टी छोड़ रहे हैं और कुछ दिन मेयर के काम से भी दूर रहेंगे. उन्हें निकालने की कोशिश कर रहे पार्टी के नेताओं को राहत मिली होगी.
साहरा वागनक्नेष्ट (लेफ्ट पार्टी)
साहरा वागनक्नेष्ट समाजवादी विचारधारा वाली "द लेफ्ट पार्टी" का सबसे जाना माना चेहरा भी हैं और उसका सबसे बड़ा विवाद चुंबक भी. उन्होंने धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी दोनों ही पक्षों में असंतुष्ट "स्थापना विरोधी" मतदाताओं के बीच अपनी जगह बना ली है. उनके सबसे ताजा अभियान के तहत उन्होंने जर्मन फेमिनिस्ट ऐलिस श्वार्जर के साथ मिलकर यूक्रेन पर आक्रमण के बावजूद रूस के साथ शांति स्थापित करने की मांग की है.
हन्स-गेओर्ग मासन (सीडीयू)
सीडीयू नेता हन्स-गेओर्ग मासन जर्मनी की खुफिया एजेंसी के प्रमुख थे. लेकिन 2018 में उन्होंने चेम्नित्ज में आप्रवासियों पर हो रहे हमले के वीडियो पर संदेह व्यक्त किया था, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उन्हें अरब आप्रवासन का विरोधी माना जाता है. उन्होंने यह भी कहा है कि "श्वेत लोगों के खिलाफ उन्हें खत्म करने वाला नस्लवाद" जर्मनी की राजनीति को आकर दे रहा है. सीडीयू उन्हें निकालना चाह रही है.
ब्यौन होख (एएफडी)
धुर दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) अभी तक तय नहीं कर पाई है कि उसे ब्यौन होख के साथ क्या करना है. कुछ लोग उन्हें फासीवादी मानते हैं, लेकिन वो अभी भी एएफडी के एक समूह "विंग" के प्रमुख नेता माने जाते हैं, जिसे जर्मनी की आंतरिक खुफिया एजेंसी बीएफवी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बता चुकी है. होख को इससे पहले पार्टी से निकालने की आधे मन से की गई कोशिशें असफल रही हैं.
थीलो जारात्जीन (पूर्व-एसपीडी)
थीलो जारात्जीन पहले एसपीडी पार्टी में थे और बर्लिन राज्य के वित्त मंत्री थे. 2010 में उनकी लिखी एक किताब प्रकाशित हुई थी जिस पर काफी विवाद हुआ था. किताब में उन्होंने कहा था कि कम पढ़े लिखे तुर्क और अरब आप्रवासियों से जर्मनी की समृद्धि को खतरा है. वो पार्टी की सदस्यता से चिपके रहे और पार्टी को उन्हें निकालने के लिए एक जटिल कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. पार्टी 2020 में उन्हें निकालने में सफल रही.