सबसे लंबे समय से राष्ट्रपति पद पर, फिर जीत लिया चुनाव
२८ नवम्बर २०२२थिओडोर ओबैंग न्ग्वेमा म्बासोगो इस वक्त दुनिया में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले जीवित राष्ट्राध्यक्ष हैं और बस राजशाही में ही उनसे ज्यादा लंबी अवधि के शासक मिलते हैं. स्पेन से आजादी मिलने के बाद 1968 में फ्रांसिस्को मेशियस न्ग्वेमा देश के पहले राष्ट्रपति बने थे. म्बासोगो के चाचा न्ग्वेमा ने घोषित कर दिया था कि वह मरते दम तक देश पर राज करेंगे, लेकिन भतीजे ने 1979 में उनका तख्ता पलट दिया और दो महीने बाद गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई.
तब से म्बासोगो ने पूरी ताकत के साथ देश पर राज किया है. यहां तक कि उनके विपक्षी कहते हैं कि उन्होंने देश को ‘अफ्रीका का उत्तर कोरिया'बना दिया है. शासन की दमनकारी नीतियों की अक्सर मानवाधिकार संगठनों द्वारा आलोचना होती है. ये संगठन अक्सर बेवजह गिरफ्तारियों, विरोधियों पर की जाने वाली यातनाओं और तख्ता पलटने के संदेह में अहम लोगों के सफाए की बातें दुनिया के सामने लाते रहे हैं.
इसके बावजूद ना तो म्बासोगो के राज का अंदाज बदला है ना ही लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार हुआ है. देश में एक ही अधिकृत विपक्षी दल है जिसके सामने म्बासोगो हर बार चुनाव जीतते हैं. 2016 में उन्होंने 93.7 प्रतिशत मतों के साथ चुनाव जीता था. इस बार उन्हें पिछली बार से भी ज्यादा, 94.9 फीसदी वोट मिले हैं जबकि देश के 98 प्रतिशत लोगों ने मतदान हिस्सा लिया था.
बेटे को नहीं मिली गद्दी
म्बासोगो के पुत्र थिओडोरो न्ग्वेमा ओबैंग मांग्वे को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता है. थिओडोरिन के नाम से मशहूर मांग्वे को देश का उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया है.
वैसे 2016 में चुनाव से पहले म्बासोगो ने फ्रांस की एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वह उनका अंतिम चुनाव था. तब उन्होंने कहा था, "मैं बहुत समय तक सत्ता में रह चुका हूं लेकिन लोग मुझे अपना राष्ट्रपति बनाए रखना चाहते हैं.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अपने बेटे को पद के लिए तैयार कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, "इक्वेटोरियल गिनी कोई राजशाही नहीं है लेकिन उसमें यदि प्रतिभा है तो मैं उसमें क्या कर सकता हूं.”
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तब यह धारणा पक्की हो गई थी कि अब म्बासोगो अपने बेटे को गद्दी सौंप देंगे. लेकिन मांग्वे कई तरह के विवादों में फंस गए. उन पर विदेशों में संपत्ति जमा करने के आरोप लगे और फ्रांस में बेनामी संपत्ति के लिए उन्हें सजा भी हो गई. फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने मांग्वे की अरबों डॉलर की संपत्ति जब्त कर ली. इस संपत्ति में कई महल और महंगी कारें जैसी चीजें शामिल थी. फ्रांस में उन्हें तीन साल की निलंबित जेल हुई और तीन करोड़ यूरो का जुर्माना लगाया गया. उसके बाद मांग्वे के राष्ट्रपति बनने की चर्चाओं ने दम तोड़ दिया और म्बासोगो ना सिर्फ पद पर बने रहे बल्कि अब और छह साल के लिए अपनी मौजूदगी सुनिश्चित कर ली है.
मांग्वे ने ट्विटर पर अपने पिता की जीत की घोषणा करते हुए लिखा कि पीडीजीई पार्टी ने म्बासोगो को ”उनके करिश्माई व्यक्तित्व, नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक अनुभव के कारण” अपना उम्मीदवार चुना था. चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी की नारा थाः निरंतरता.
भ्रष्टाचार और गरीबी
जब देश पर स्पेन का राज था तब इक्वेटोरियल गिनी को स्पेनिश गिनी कहा जाता था. उसी दौर में म्बासोगो ने सैन्य स्कूल से पढ़ाई पूरी की थी. उसके बाद वह देश की बदनाम जेल ‘ब्लैक बीच' के प्रमुख रहे. उस जेल को एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ‘जीता-जागता नरक' कहा था.
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सत्ता संभालने के बाद म्बासोगो ने अपनी सुरक्षा के बहुत कड़े इंतजाम किए. उनका दावा है कि वह अपने ऊपर हत्या की कोशिश और तख्तापलट की कम से कम दस कोशिशों को नाकाम कर चुके हैं. उनकी सुरक्षा में तैनात सैनिकों में उनके अपने कबीले के ही लोग हैं. अतिरिक्त सुरक्षा के लिए उन्होंने इस्राएल से प्रशिक्षित सैनिकों की एक विशेष टुकड़ी मंगाई है. इसके अलावा अपने महल की सुरक्षा में उन्होंने जिम्बाब्वे और युगांडा से भी सैनिक मंगाए हैं.
1996 में तेल की खोज के बाद इक्वेटोरियल गिनी में आर्थिक संसाधनों की भरमार हो गई और वह प्रति व्यक्ति आय के आधार पर अफ्रीका का तीसरा सबसे धनी देश बन गया. लेकिन धन का यह बंटवारा बहुत असमान है. वर्ल्ड बैंक के 2006 के आंकड़ों के मुताबिक 14 लाख की आबादी वाले देश में 80 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है. ट्रांसपेरेंसी इटंरनेशनल ने 2021 में दुनिया के सबसे भ्रष्ट 180 देशों की जो सूची जारी की थी, उसमें इक्वेटोरियल गिनी नौवें नंबर पर था.
वीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)