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संस्कृतिअफगानिस्तान

गैर-इस्लामिक विरासत को क्यों बचाना चाहता है तालिबान

सोनम मिश्रा एएफपी
२५ अप्रैल २०२५

कभी बौद्ध मूर्तियों को बम से उड़ाने वाले तालिबान अब उनके संरक्षण की बात कर रहा है. लेकिन क्या सच में अफगान संस्कृति के प्रति उनके नजरिए में बदलाव आया है या यह बस छवि सुधार की कोशिश है?

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बामियान में बुद्ध की प्रतिमा का पुर्ननिर्माण
तस्वीर: Xinhua/imago images

मार्च 2001 में तालिबान ने अफगानिस्तान के बामियान में गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियों को बम से उड़ा दिया. वह भी केवल इसलिए क्योंकि वह गैर-इस्लामिक थी. लेकिन अब दो दशक बाद, तालिबान फिर से सत्ता में हैं और इस बार खुद इस गैर-इस्लामिक धरोहर को दोबारा सहेजने की बात कर रहे हैं.

ब्राह्मी लिपि से लेकर कुषाण साम्राज्य तक

हाला्ंकि 2021 में सत्ता संभालने से पहले ही तालिबान ने सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा की बात कह दी थी. लेकिन कई लोगों को इस दावे पर संदेह था.

इसके बाद फरवरी 2025 में तालिबान प्रशासन ने एलान करते हुए कहा, "हम सब की जिम्मेदारी है कि अफगानिस्तान की धरोहरों और ऐतिहासिक जगहों की रक्षा करें, उन पर निगरानी रखें और उनका संरक्षण करें.” यह "हमारे देश की समृद्ध संस्कृति, इतिहास और पहचान का हिस्सा हैं.”

दशकों चले युद्ध के खत्म होने के बाद बौद्ध धर्म से जुड़े कई अवशेष अब खुद तालिबान प्रशासन उजागर कर रहा है. दावा किया जा रहा है कि यह खुदाई के दौरान प्राप्त हुए है.

इसके अलावा, पूर्वी अफगानिस्तान के लघमान प्रांत के गांव गौवर्जन में चट्टानों में बने खोखले हिस्सों को 2000 साल पुराने कुषाण साम्राज्य से जोड़ा जा रहा है. इन चट्टानी गड्डों को कुषाण साम्राज्य का स्टोररूम बताया जा रहा है. यह साम्राज्य एक समय में गोबी रेगिस्तान से लेकर गंगा नदी तक फैला हुआ था.

लघमान में पत्थरों पर ब्राह्मी लिपि में लिखे लेख और एक पत्थर की थाली भी मिली है, जिन्हें देख कर  लगता है कि जैसे उसमें अंगूर पीसकर शराब बनाई जाती हो.

अफगानिस्तान में धरोहरों से भरा बामियान का इलाका
मार्च 2001 में बम धमाके से उड़ाई गई बुद्ध की एक विशाल प्रतिमातस्वीर: Naqeeb Ahmed/EPA/dpa/picture alliance

बम से उड़ाई गईं विशाल बुद्ध मूर्तियां

लघमान के संस्कृति और पर्यटन विभाग के प्रमुख, मोहम्मद याकूब अय्यूबी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "कहा जाता है कि अफगानिस्तान का इतिहास 5000 साल पुराना है और यह अवशेष इसी बात का सबूत हैं. यहां जो लोग रहते थे, चाहे वह मुसलमान थे या नहीं थे, पर यहां पर एक साम्राज्य जरूर था.” उन्होंने बताया कि तालिबान इन जगहों की सुरक्षा को "बहुत महत्व” देता है.

गजनी प्रांत में भी इसी धारणा का समर्थन किया गया. वहां संस्कृति विभाग के प्रमुख, हामिदुल्लाह निसार ने कहा कि बामियान की बौद्ध मूर्तियां का "संरक्षण करना चाहिए और इन्हें विरासत के रूप में आगे की पीढ़ियों को सौपना चाहिए क्योंकि यह हमारे इतिहास का अहम हिस्सा है.”

हालांकि, अगर यह सांस्कृतिक धरोहर तालिबान के पहले शासन काल में सामने आई होती, जो कि 1996 से 2001 के बीच का समय था. तो इनका अंजाम कुछ अलग हो सकता था. 2001 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर ने मूर्ति पूजन रोकने के लिए  सभी बौद्ध मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था. और कुछ दिन के भीतर ही बामियान की 1500 साल पुरानी बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं, अंतरराष्ट्रीय विरोध के बावजूद बम से उड़ा दी गईं.

बामियान में बुद्ध की करीब 52 मीटर ऊंची प्रतिमा
कुछ जगहों पर तोड़ी गई मूर्तियोंकी मरम्मत की जा रही हैतस्वीर: Paul Almasy/akg-images/picture alliance

तालिबान ऐतिहासिक धरोहर को महत्व देता है

लघमान के विरासत संरक्षण निदेशक, मोहम्मद नादिर मखावर, पूर्ववर्ती सरकार में भी यही पद संभालते थे. उन्होंने बताया, "जब तालिबान की वापसी हुई तो लोगों को लगा कि वह ऐतिहासिक धरोहर को पहले की तरह ही कोई महत्व नहीं देंगे. लेकिन असल में वे इसे काफी महत्व दे रहे हैं.”

दिसंबर 2021 में तालिबान ने अफगान राष्ट्रीय संग्रहालय को दोबारा खोला, जहां एक समय उन्होंने खुद गैर-इस्लामिक वस्तुओं को नुकसान पहुंचाया था. 2022 में उन्होंने ऐतिहासिक बौद्ध स्थल ‘मेस आयनक' को संरक्षित करने के लिए आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीसी) से मदद भी मांगी. वहां एक तांबे की खदान भी है, जिसका ठेका एक चीनी समूह के पास है.

अफगानिस्तान में एकेटीसी के प्रमुख, अजमल मइवांदी ने बताया, "इस तरह के अनुरोध की उम्मीद नहीं थी.” वह तालिबान प्रशाशन की तरफ से इनके संरक्षण के लिए काफी "उत्साह" भी महसूस कर रहे है.

बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं के बारे में जानकारी देने वाले बोर्ड
बामियान में अब धरोहरों का महत्व बताने वाले बोर्ड भी दिखने लगे हैंतस्वीर: Peter Langer/ZUMA/imago images

देश की असली धरोहर को नजरअंदाज किया जा रहा है

अंतरराष्ट्रीय विरासत संरक्षण संगठन (एएलआईपीएच) के निदेशक,  वैलेरी फ्रेलांड ने कहा, "मुझे लगता है कि तालिबान को अब ये समझ चुका है कि बामियान की बुद्ध मूर्तियों का विनाश उनकी छवि के लिए कितना नुकसानदायक था.”  उनका मानना है कि अब तालिबान हर तरह की भौतिक विरासत को संरक्षित करना चाहता है.

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने उजागर किया कि तालिबान की यह रुचि सिर्फ मूर्तियों और इमारतों तक ही सीमित है. असल में वह इस्लाम के आड़ में आज भी संगीत, नृत्य, लोक कथाओं और महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को आज भी नजरअंदाज किया जा रहा है.

जैसे हेरत शहर के पुराने यहूदी पूजा स्थल को संरक्षित तो अवश्य कर दिया गया है. लेकिन शहर के प्राचीन यहूदी समुदाय का अब क्या हाल है, इसकी कोई खबर नहीं दी गई है.

पाकिस्तान बॉर्डर के पास तालिबान के डिप्टी पीएम अब्दुल सलाम हनाफी
तालिबान के उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफीतस्वीर: AFP

अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने का रास्ता

तालिबान ने अपने पहले शासनकाल के बाद से अफगानिस्तान ने कई अंतरराष्ट्रीय विरासत संधियों पर हस्ताक्षर किए. जैसे 2016 में, उस संधि के तहत देश की विरासत को नुकसान पहुंचाना "युद्ध अपराध” माना गया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अब, जब तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने की कोशिश कर रहा है. तब यह विरासत संरक्षण उनके लिए पर्यटन और आर्थिक विकास, दोनों को हासिल करने का अहम मौका दे सकता है. लेकिन इसको हासिल करने से पहले तालिबान के सामने दो बड़ी मुश्किलें है. एक, पैसे की कमी, और दूसरा, पुरातत्व और विरासत के जानकार लोग अब देश छोड़कर जा चुके हैं.

हालांकि, पर्यटकों की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि पिछले साल बामियान घूमने आए एक समूह पर आतंकवादी हमला हुआ था.