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इलेक्ट्रिक गाड़ियां क्यों नहीं खरीद रहे हैं जर्मन?

३ मार्च २०२५

जर्मनी में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री में भारी गिरावट हुई है. एक बार ऊपर चढ़ा बाजार अब बड़े संकट से गुजर रहा है. क्या वजह है कि लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियां नहीं खरीद रहे हैं?

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वॉल्क्सवागन की कारें
जर्मन कंपनियों के सामने कार बेचने की बड़ी चुनौती हैतस्वीर: Ronny Hartmann/AFP/Getty Images

जर्मनी का इलेक्ट्रिक गाड़ी (ईवी) बाजार मुश्किल दौर से गुजर रहा है. ऊंची कीमतें और चार्जिंग की सीमित सुविधा लोगों को पेट्रोल-डीजल कारों से इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर जाने से रोक रही हैं. समाचार एजेंसी डीपीए के लिए यूगव रिसर्च इंस्टिट्यूट के किए गए एक सर्वे में पाया गया कि लगभग 47 फीसदी जर्मन ग्राहक इलेक्ट्रिक गाड़ी खरीदने में सबसे बड़ी बाधा इसकी ऊंची कीमतों को मानते हैं.

इसके अलावा, 42 फीसदी लोग बैटरी से चलने वाली गाड़ियों की सीमित रेंज से परेशान हैं, जबकि 40 फीसदी ने चार्जिंग स्टेशन की कमी को एक बड़ी समस्या बताया. लगभग 30 फीसदी लोगों ने बिजली की ऊंची कीमतों को चिंता का कारण बताया, जबकि 24 फीसदी ने कहा कि ईवी तकनीक अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुई है.

सरकारी सब्सिडी हटने से बिक्री घटी

जर्मनी में ईवी की बिक्री में लगातार गिरावट देखी जा रही है. 2024 में बैटरी वाले इलेक्ट्रिक गाड़ियों (बीईवी) की बिक्री 27.4 फीसदी गिरकर 3,80,609 यूनिट रह गई. इसका असर ईवी के बाजार हिस्से पर भी पड़ा, जो 2023 में 18.4 फीसदी था और 2024 में घटकर 13.5 फीसदी रह गया. इसका बड़ा कारण 2023 के अंत में सरकारी सब्सिडी का खत्म होना रहा.

सब्सिडी हटने से महंगे इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने का उत्साह कम हो गया. इसका असर सिर्फ ग्राहकों पर ही नहीं, बल्कि पूरी ऑटो इंडस्ट्री पर पड़ा. टेस्ला की कारों का यूरोप में रजिस्ट्रेशन जनवरी 2024 से जनवरी 2025 के बीच 45 फीसदी से ज्यादा गिर गया. जर्मनी, फ्रांस, नॉर्वे और ब्रिटेन में भी टेस्ला की बिक्री घटी. उधर, ऑडी ने अपने ब्रसेल्स प्लांट को स्थाई रूप से बंद करने की घोषणा कर दी, जिससे 3,000 नौकरियां खत्म हो गईं. कंपनी ने इसका कारण ईवी की कम होती वैश्विक मांग को बताया.

विशेषज्ञ कहते हैं कि जर्मन ग्राहक ईवी खरीदने से हिचक रहे हैं क्योंकि बाजार में किफायती मॉडल उपलब्ध नहीं हैं. सर्वे में पाया गया कि केवल 12 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो इलेक्ट्रिक कार के लिए 30,000 यूरो से ज्यादा खर्च करने को तैयार हैं. लेकिन जर्मनी में इस बजट में केवल छह ईवी मॉडल ही उपलब्ध हैं.

सस्ते ईवी मॉडल की कमी

मुश्किल में पड़ी यूरोप की सबसे बड़ी ऑटो कंपनी फॉल्क्सवागन ने इसका हल निकालने के लिए 20,000 यूरो यानी लगभग 18 लाख रुपये की एक एंट्री-लेवल ईवी लाने की घोषणा की है. फिर भी ग्राहक महंगी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने से बच रहे हैं, भले ही वे जर्मन या यूरोपीय ब्रांड की हों.

जर्मन कार कंपनियों को चीन की कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. टेस्ला, बीवाईडी और दूसरे गैर-यूरोपीय ब्रांड सस्ती इलेक्ट्रिक कारें लॉन्च कर रहे हैं. इससे जर्मन कंपनियों पर भी अपनी रणनीति बदलने का दबाव बढ़ गया है. हालांकि, ईवी की बिक्री में गिरावट के बावजूद, 2024 में हाइब्रिड वाहनों की बिक्री 12.7 फीसदी बढ़ी. हर तीन में से एक नई कार हाइब्रिड है. इससे साफ है कि लोग फिलहाल पूरी तरह से इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जाने की बजाय हाइब्रिड विकल्प को पसंद कर रहे हैं.

गाड़ियों की बैटरियों को रीसाइकल करने का तरीका

जर्मनी की फेडरल मोटर ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (केबीए) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में पोर्शे, फॉल्क्सवागन और ओपेल जैसी कंपनियों की बिक्री में थोड़ी बढ़ोतरी हुई, लेकिन ऑडी, मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू जैसी प्रीमियम कंपनियों को बिक्री में गिरावट झेलनी पड़ी. इसके अलावा, पेट्रोल-डीजल कारों का औसत कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन दर 4.2 फीसदी बढ़ गई, जिससे पर्यावरण को नुकसान हुआ.

भविष्य की चुनौतियां

जर्मनी का ईवी बाजार एक अहम मोड़ पर है. सरकारी सब्सिडी खत्म होने, ऊंची कीमतों और चार्जिंग सुविधाओं की कमी ने बिक्री को प्रभावित किया है. हालांकि, कम कीमत वाले ईवी मॉडल और नई सरकारी नीतियों से कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन बाजार को स्थिर करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.

यूरोपीय संघ ने 2035 तक पेट्रोल-डीजल कारों पर पूरी तरह रोक लगाने की योजना बनाई है. लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ सब्सिडी देने से समस्या हल नहीं होगी. ईवी को किफायती बनाना और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना ज्यादा जरूरी है. तभी ईवी बाजार लंबी अवधि तक सफल हो पाएगा और जर्मनी अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सकेगा.

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