क्या आधार कार्ड से होगी बिहार का वोटर होने की पुष्टि
१० जुलाई २०२५भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे एक संवैधानिक निकाय को उसका काम करने से नहीं रोक सकते. हालांकि, कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग से कहा है कि वह बिहार में वोटर लिस्ट के "विशेष गहन संसोधन” के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करे.
सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए हैं क्योंकि यह प्रक्रिया प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से कुछ ही महीने पहले हो रही है. कोर्ट ने इस प्रक्रिया को विधानसभा चुनावों से जोड़े जाने को लेकर भी सवाल पूछे हैं. कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि क्या चुनाव से पहले यह प्रक्रिया पूरी हो पाएगी और कहा कि इस प्रक्रिया को काफी पहले शुरू कर दिया जाना चाहिए था.
चुनाव आयोग के किस फैसले पर हो रहा विवाद
बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की विशेष समीक्षा करने की घोषणा की है. बिहार में करीब सात करोड़ 90 लाख वोटर हैं, जिनमें से करीब दो करोड़ 93 लाख मतदाताओं को अपनी जानकारी की पुष्टि करानी होगी, जिनके नाम मतदाता सूची में 2003 के बाद जोड़े गए हैं.
इसके लिए चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की एक सूची जारी की थी जिनमें से कोई भी एक दस्तावेज जमा करके मतदाता अपनी जानकारी की पुष्टि करवा सकते हैं. अगर किसी भी मतदाता की जानकारी की पुष्टि नहीं हो पाती है, तो उसका नाम सूची से हटा दिया जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को शामिल नहीं किया गया था.
चुनाव आयोग की इस घोषणा का विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया था और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी लगाई गई थीं. याचिकाकर्ताओं में आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल समेत कई पार्टियों के नेता और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) शामिल है. गुरुवार को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या हुआ
कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कोर्ट से कहा कि उसके द्वारा जारी की गई 11 दस्तावेजों की सूची पूरी नहीं है और वह उदाहरणात्मक थी. इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा, "चूंकि यह सूची पूरी नहीं है, हमारी राय में यह न्याय के हित में होगा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करे.”
कोर्ट ने मौखिक तौर पर यह भी कहा कि चुनाव आयोग को सिर्फ इन दस्तावेजों के आधार पर किसी का भी नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने का निर्देश नहीं दिया गया है और आयोग अपने विवेक के आधार पर इन्हें स्वीकार या खारिज कर सकेगा. जस्टिस धूलिया ने कहा, "अगर आपके पास आधार कार्ड को खारिज करने की उचित वजह है तो ऐसा करें और उसकी वजह बताएं.”
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदु उठाए हैं. जस्टिस धूलिया ने कहा कि याचिकाकर्ता चुनाव आयोग की शक्तियों, शक्तियों का इस्तेमाल करने के तरीके और उनकी टाइमिंग को चुनौती दे रहे हैं. बेंच इन याचिकाओं पर 28 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी. चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक जवाबी शपथपत्र दाखिल करने के लिए कहा गया है.
याचिकाकर्ताओं ने क्या-क्या तर्क दिए
एडीआर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में "गहन संशोधन" और "संक्षिप्त संशोधन" का ही प्रावधान है लेकिन भारत के इतिहास में पहली बार भारत का चुनाव आयोग एक राज्य में मतदाता सूची का "विशेष गहन संशोधन" करने का प्रयास कर रहा है, जिसे अधिनियम या नियमों में मान्यता ही नहीं दी गई है.
सांसद मनोज झा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है कि वह सिद्ध करे कि एक व्यक्ति जिसका नाम मतदाता सूची में है, वह भारत का नागरिक नहीं है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, वे बिहारियों के एक बहुत छोटे हिस्से के पास ही मौजूद हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एक भी पात्र मतदाता को मताधिकार से वंचित करने से समान अवसर प्रदान करने की स्थिति प्रभावित होती है. उन्होंने कहा कि इससे "लोकतंत्र और मूल संरचना पर भी प्रभाव पड़ता है." उन्होंने सवाल पूछा कि यह प्रक्रिया तब ही क्यों शुरू की जा रही है, जब चुनावों में कुछ ही महीने शेष बचे हैं.