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जर्मन अर्थव्यवस्था की मुश्किलें भी तय करेंगी चुनाव का रुख

२१ फ़रवरी २०२५

कभी यूरोप का पावरहाउस कहा जाने वाला जर्मनी आज आर्थिक दुविधा में घिरा है. बहुत से नागरिकों और कारोबारों को उम्मीद है कि रविवार को हो रहे चुनाव के बाद नई सरकार इसका समाधान करेगी.

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लग्जरी शिप बनाने वाली एक कंपनी के दौरे पर जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स
अर्थव्यवस्था की मुश्किलों ने आम लोगों से लेकर अमीर कारोबारियों को भी परेशान किया हैतस्वीर: Carmen Jaspersen/REUTERS

रविवार को जब लोग वोट देने मतदान केंद्रों पर पहुंचेंगे तो उनके दिमाग में जर्मनी की अर्थव्यवस्था का हाल पुरजोर गूंज रहा होगा. बड़ी पार्टियां यह साबित करने में लगी हैं कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए वे चुनाव के बाद बड़े कदम उठाएंगी.

एक के बाद एक घिरती मुश्किलें

जर्मनी में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी लगातार दूसरे साल नीचे गया है. इस लिहाज से यह बीते दो दशकों में देश की अर्थव्यवस्था की सबसे देर तक चली मंदी है. इस बीच अर्थव्यवस्था का कभी प्रमुख स्तंभ रहे उत्पादन क्षेत्र की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. यह आज भी दूसरी कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले जर्मनी में बड़ा है लेकिन फिलहाल गहरी ढांचागत समस्याओं से जूझ रहा है. इसकी वजह से कई तरह की आशंकाएं सिर उठा रही हैं.

आर्थिक चुनौतियों से कैसे निपटेगी जर्मनी की आगामी सरकार

जर्मन अर्थव्यवस्था ने लगातार विकास के जरिए बीते सालों में कई मुश्किलों का सामना किया. इनमें 2008 की वैश्विक मंदी और यूरोजोन संकट भी शामिल है. हालांकि महंगाई की गंभीर चोट और कोरोना के बाद 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने इसे हिला दिया है. 

जर्मनी के एसेन में बेचे जाने के इंतजार में खड़ी हजारों कारें
जर्मनी का कार उद्योग यहां उत्पादन क्षेत्र की जान रहा है, लेकिन फिलहाल वह भी मुश्किलों में हैतस्वीर: Martin Meissner/AP/picture alliance

इतना सब कुछ शायद काफी नहीं था कि व्हाइट हाउस में डॉनल्ड ट्रंप की वापसी ने कुछ और चुनौतियों को न्योता दे दिया है. ट्रंप ने शुल्क बढ़ाने के साथ ही कारोबारी यु्द्ध तेज कर दिया है. दूसरी तरफ चीन से बढ़ती चली आ रही निर्यात की आंधी दुनिया के बाजार में प्रतिद्वंद्विता को लगातार तेज कर रही है. 

कई अर्थशास्त्री, कारोबारी और मजदूर संघ के नेताओं ने चेतावनी दी है कि जर्मनी की ठहरी अर्थव्यवस्था जल्दी ही रफ्तार में आएगी इसके आसार बहुत कम है. ऐसे में आर्थिक परेशानी यह मांग कर रही है कि बर्लिन की सरकार गंभीर कदम उठाए. जर्मनी के लोग अपना फैसला रविवार को सुना देंगे, लेकिन वे नई सरकार से क्या उम्मीद कर सकते हैं?

जर्मन कंपनियों के कर्मचारियों के लिए मुश्किल होगा 2025

पार्टियों के पिटारे में क्या है?

इससे पहले जर्मनी ने लंबे समय तक आर्थिक दिक्कतों का सामना 2000 के शुरुआती सालों में किया था. तब चांसलर रहे एसपीडी के गेरहार्ड श्रोएडर ने श्रम बाजारों के विवादित और कल्याणकारी सुधारों को लागू किया था जिनका लक्ष्य विकास को बढ़ावा देना था.

तब की तरह वर्तमान में भी जर्मनी पर कुछ विशेषज्ञ "यूरोप के बीमार आदमी" का ठप्पा लगा रहे हैं. जर्मनी का विकास यूरोपीय संघ के दूसरे देशों से फिलहाल कम है. इनमें स्पेन और आयरलैंड जैसे वो देश भी शामिल हैं जिन्हें जर्मन राजनेताओं से अर्थशास्त्र पर व्याख्यान सुनना पड़ता था.

सीडीयू/सीएसयू के चांसलर उम्मीदवार फ्रीडरिष मैर्त्स आइसक्रीम की एक दुकान में
नेता स्थिति को सुधारने के दावे कर रहे हैं लेकिन वास्तव में वो क्या कर पाएंगे यह कहना आसान नहीं हैतस्वीर: Federico Gambarini/dpa/picture alliance

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की मध्य वामपंथी पार्टी एसपीडी ने दूसरा कार्यकाल मिलने पर निवेश के लिए प्रोत्साहन में बढ़ावा देने का वादा किया है. हालांकि फिलहाल अर्थव्यवस्था की जो हालत है उसने पहले कार्यकाल में शॉल्त्स की लोकप्रियता नीचे ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई है.

शॉल्त्स की जगह लेने की तरफ बढ़ रहे रुढ़िवादी विपक्षी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने टैक्स में कटौती और कारोबार को नियमों से छूट दे कर "समृद्धि के नए वादे" के पक्ष में नारा बुलंद किया है.  मैर्त्स ने अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए जर्मनी के नेट जीरो जलवायु लक्ष्यों के प्रयासों को थोड़ा धीमा करने की दलील दी है तो दूसरी तरफ मध्य वामपंथी ग्रीम पार्टी सार्वजनिक निवेश को खूब बढ़ा कर ऊर्जा स्रोतों में बदलाव करना चाहती है और जलवायु परियोजनाओं को बढ़ाना चाहती है जो विकास में मदद दे सकते हैं.

सरकार के पास पैसा कहां से आएगा

जर्मनी में सरकार के कर्ज लेने की क्षमता को सख्त नियमों में बांधा गया है. यह मैर्त्स की बड़ी योजनाओं के लिए धन जुटाने की राहत में बाधा बन सकती है. हालांकि जर्मनी का सार्वजनिक कर्ज दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में काफी कम है. नियमों के मुताबिक फिलहाल यह जीडीपी के 0.35 फीसदी से कम ही रह सकता है. यूरोपीय संघ के नियमों के तहत इसे जीडीपी के 3 फीसदी तक रखने की अनुमति है. जब तक संसद दो तिहाई बहुमत से इसे बढ़ाने की अनुमति ना दे दे बड़ी योजनाओं या फिर टैक्स में कटौती के लिए पैसा कहीं और से लाना होगा.

सीडीयू/सीएसयू के टैक्स प्रस्तावों को लागू करने के लिए ही करीब साल में 90 अरब यूरो की जरूरत होगी. इसके अलावा पार्टी ने रक्षा और दूसरी प्राथमिकताओं पर भी खर्च बढ़ाने की सोची है.

एक जर्मन सुपरस्टोर में खरीदारी करती महिला
रोजमर्रा की चीजों की कीमतें भी जर्मनी में काफी ज्यादा बढ़ गई हैं और इनसे लोग परेशान हो रहे हैं क्योंकि उसके मुकाबले वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुईतस्वीर: picture-alliance/empics

यूरोपीय सुरक्षा को रूस से जो खतरा है वह ट्रंप के यूरोप से पीछे हटने की वजह से और बढ़ गया है. ऐसे में जर्मनी जैसे यूरोपीय नाटो देशों की उनकी सेना के लिए ज्यादा पैसा निकालने की मजबूरी है. जर्मनी पर यूक्रेन को ज्यादा मदद देने के लिभी दबाव होगा. ऐसा लग रहा है कि ट्रंप शांति समझौते के साथ अमेरिकी सहयोग को कम से कम करने की ओर ले जाएंगे. 

पुराना होता बुनियादी ढांचा और अक्षय ऊर्जा केंद्रों से मिली ऊर्जा की सप्लाई के लिए बड़े ग्रिड बनाने पर भी काफी पैसा खर्च होगा. जर्मनी का ट्रेन नेटवर्क अपनी समयबद्धता और दक्षता के लिए विख्यात रहा है लेकिन अब यह राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की खीझ का एक बड़ा कारण बन गई है. अक्सर लेट चलने या रद्द होने वाली रेलगाड़ियों ने इसकी छवि बिगाड़ दी है. 

उत्पादन क्षेत्र टिके रहने के लिए संघर्ष कर रहा है जर्मनी

बहुत से लोगों की आशंका है कि मौजूदा आर्थिक मुश्किलें केवल चक्रीय मंदी नहीं हैं जो महंगाई की वजह से थोड़े थोड़े समय के अंतर पर आती हैं, बल्कि यह इस बात का संकेत हैं कि जिस आर्थिक मॉडल ने दशकों तक समृद्धि का भरण पोषण किया वह अब खतरे में है.

जर्मनी का कार उद्योग यहां की बेहतरीन इंजीनियरिंग का दुनिया भर में मजबूत प्रतीक रहा है जिसने इसकी निर्यात को भी खूब बढ़ावा दिया. वही कार उद्योग अब अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. एक तरफ चीनी कारों की आंधी है तो दूसरी तरफ जर्मनी में फैक्ट्रियों का बढ़ता खर्च. मर्सिडीज और ऑडी जैसे दिग्गज ब्रांड भी इलेक्ट्रिक कारों के नए दौर के हिसाब से तालमेल बिठा पाने में खुद को असहाय पा रहे हैं. जर्मनी जिन पारंपरिक इंजिन वाले कारों का सिरमौर रहा है उनका युग बीत जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.

सिर्फ कार उद्योग ही नहीं जर्मनी का रसायन उद्योग भी मुश्किलों से जूझ रहा है. दूसरी तरफ स्टील उद्योग एक के बाद एक संकट फंसा हुआ है. जर्मनी की मझोले आकार की परिवारों से चलने वाली कंपनियां जो कभी यहां समृद्धि की नींव कही जाती थीं उनका सिर भी झुका हुआ है.

जर्मनी में आगे क्या होगा?

जर्मनी की मौजूदा सरकार हालांकि इस तरह के हालात में बहुत कुछ करने में असमर्थ रही है. इसकी बजाय आर्थिक नीतियों को लेकर गतिरोध, बजट पर तीखी बहस और इसी तरह की चीजों ने कार्यकाल खत्म होने से पहले ही सरकार गिरा दी. शॉल्त्स और कारोबार समर्थक पार्टी एफडीपी के नेता रॉबर्ट हाबेक अकसर ही इन मुद्दों पर आपस में भिड़ते रहे. जब शॉल्त्स ने एफडीपी के क्रिश्चियन लिंडनर को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया तो पार्टी गठबंधन से बाहर निकल गई और देश में नए सिरे से चुनाव कराना पड़ा.

अब इस वक्त सर्वेक्षणों से जो नतीजे निकलते दिख रहे हैं उनसे लगता है कि जर्मन राजनीति और ज्यादा बिखरेगी. इसका मतलब है कि सीडीयू/सीएसयू के नेता उम्मीदों के मुताबिक भले ही शीर्ष पर होंगे लेकिन गठबंधन के लिए उनके सामने भी मुश्किलों का पहाड़ होगा. किसी बड़ी योजना पर काम शुरू करने से पहले उन्हें इस चढ़ाई को पार करना होगा.

एनआर/वीके (डीपीए)