भविष्य के युद्धों के लिए तेजी से तैयार हो रहा है जर्मनी
२४ जुलाई २०२५यूरोप के सबसे अहम डिफेंस स्टार्टअप 'हेलसिंग' के को-फाउंडर गुंडबर्ट शेर्फ के लिए यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने सब कुछ बदल दिया. अपनी कंपनी शुरू करने के बाद शेर्फ के लिए निवेश जुटाना बहुत मुश्किल हो रहा था. उनकी कंपनी सेना के लिए हमलावर ड्रोन और युद्ध के मैदान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तैयार करती है. यह चार साल पुरानी बात है.
अब उनके सामने ऐसी कोई समस्या नहीं. म्युनिख की इस कंपनी ने पिछले महीने धन जुटाने के एक कार्यक्रम में अपनी कीमत दोगुनी कर 12 अरब यूरो तक पहुंचा ली है. शेर्फ का कहना है, "कई दशकों के बाद इस साल यूरोप, तकनीक के अधिग्रहण में अमेरिका की तुलना में ज्यादा खर्च कर रहा है."
रूस के हाइब्रिड हमलों से कैसे निपटेगा जर्मनी
'मैकिंजे एंड कंपनी' के पूर्व साझेदार का कहना है कि यूरोप संभवतया 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' की तरह रक्षा खोज के जरिए बदलाव के करीब है. मैनहट्टन प्रोजेक्ट ने दशकों पहले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के परमाणु कार्यक्रमों को तेजी से विकसित कराया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने करीब दो दर्जन अधिकारियों, निवेशकों और नीति निर्माताओं से बात कर यह पता लगाने की कोशिश की है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी, इलाके में हथियारों के विकास में क्या भूमिका निभा रहा है.
स्टार्टअप बने अहम खिलाड़ी
चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स एआई और स्टार्टअप टेक्नोलॉजी को रक्षा की योजना में प्रमुखता दे रहे हैं. रॉयटर्स को सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि वह नौकरशाही घटाकर स्टार्टअप कंपनियों को सीधे सेना के शीर्ष अधिकारियों से जोड़ रहे हैं.
नाजी दौर में सैन्यवाद की तकलीफें झेलने और दूसरे विश्वयुद्ध की परिस्थितियों का सामना करने के बाद जर्मनी ने लंबे समय तक रक्षा क्षेत्र को तुलनात्मक रूप से सीमित रखा. इस बीच उसपर अमेरिका से सुरक्षा गारंटी का आवरण बना रहा. अब जब अमेरिकी सैन्य सहयोग पर अनिश्चितता घिर आई है, तो जर्मनी अपने नियमित रक्षा बजट को 2029 तक तिगुना बढ़ाकर 162 अरब यूरो तक ले जाने की तैयारी में है.
इस रकम का ज्यादातर हिस्सा, हथियार युद्ध की प्रकृति को नई खोजों से लैस करने पर खर्च होगा. हेलसिंग उन जर्मन डिफेंस स्टार्ट अप में शामिल है, जो टैंक से लेकर एआई रोबोट और मानवरहित मिनी सबमरीन से लेकर स्पाई कॉकरोच तक के लिए उच्च तकनीक विकसित कर रहे हैं. इनमें से कुछ छोटी फर्में अब 'राइनमेटाल' और 'हेंसोल्ट' जैसी स्थापित फर्मों की तरह ही सरकार को सलाह दे रही हैं.
अमेरिका मदद के बिना यूरोप को अपनी सुरक्षा में कितना खर्च आएगा?
मैर्त्स सरकार जल्दी ही एक कानून को मंजूरी देने वाली है, जो नगदी की बाधा से जूझने वाले स्टार्टअप के लिए सरकारी टेंडर में भाग लेना संभव करेगा. बिल पास होने के बाद इन फर्मों को सरकार अग्रिम भुगतान कर सकेगी. यही कानून अधिकारियों के लिए इसे यूरोपीय संघ के भीतर से आने वाले टेंडरों के लिए भी सीमित करना संभव बनाएगा. जर्मन रक्षा कंपनियों के लिए माहौल अनुकूल हुआ है.
ऑटोनॉमस रोबोट बनाने वाली कंपनी एआरएक्स रोबोटिक्स के संस्थापक और सीईओ मार्क विटफेल्ड ने बताया कि हाल ही में जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस से उनकी मुलाकात के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि जर्मनी में किस तरह से बदलाव की बयार चल रही है. विटफेल्ड ने कहा, "उन्होंने मुझसे कहाः 'पैसा अब कोई बहाना नहीं है, वह यहां है' यह बड़ा बदलाव था."
जर्मनी सबसे आगे
राजनीतिक परिदृश्य में डॉनल्ड ट्रंप की वापसी और नाटो में अमेरिकी प्रतिबद्धता पर उठे सवालों के बीच जर्मनी ने उनकी मांग पूरी कर दी है. जर्मनी ने 2029 तक जीडीपी का 3.5 फीसदी रक्षा पर खर्च करने का वादा किया है. दूसरे यूरोपीय सहयोगियों की तुलना में यह सबसे जल्दी है. जर्मन अधिकारी इसके लिए अमेरिकी रक्षा कंपनियों पर भरोसा करने की बजाय यूरोपीय रक्षा उद्योग को संरक्षण देने की बात कह रहे हैं. हालांकि, इसके मार्ग में कुछ बाधाएं भी हैं.
अमेरिका से उलट यूरोप का बाजार टुकड़ों में बंटा हुआ है. ठेके पूरे करने के लिए हर देश के खरीदारी के अपने मानक हैं. अमेरिका के पास रक्षा क्षेत्र में 'लॉकहीड मार्टिन' और 'आरटीएक्स' जैसी बड़ी कंपनियां तो हैं ही, इसके अलावा उसने 2015 से ही स्टार्टअप और छोटी कंपनियों को भी बढ़ावा देना शुरू कर दिया था. इनमें ड्रोन बनाने से लेकर सैन्य सॉफ्टवेयर तैयार करने वाली कंपनियां हैं. इसके उलट यूरोपीय कंपनियां हाल तक सरकारी सहायता से वंचित रही हैं.
हालांकि, मई में एविएशन वीक के एक विश्लेषण ने दिखाया है कि यूरोप में रक्षा पर खर्च करने वाले 19 बड़े देशों का खर्च इस साल करीब 180.1 अरब यूरो होगा. जबकि अमेरिका के लिए यह रकम 175.6 अरब यूरो तक होगी. यूरोपीय देशों में तुर्की और यूक्रेन में भामिल हैं.
स्पाई कॉकरोच
साइबर इनोवेशन हब जर्मन सेना बुंडेसवेयर के लिए नई खोजों को बढ़ावा दे रहा है. इनोवेशन हब के प्रमुख स्वेन वाइत्सेनेगर का कहना है कि यूक्रेन में युद्ध ने सामाजिक रवैये को भी बदल दिया है और डिफेंस सेक्टर में काम को लेकर जो भ्रांतियां थीं, उन्हें भी खत्म कर दिया है. वाइत्सेनेगर के पास पहले बहुत कम लोग ही काम करने की इच्छा से पूछताछ करते थे, लेकिन अब उनकी संख्या कई गुना ज्यादा बढ़ गई है.
कुछ आइडिया जिनपर तेजी से काम हो रहा है, उनमें स्वार्म बायोटैक्टिक्स का साइबोर्ग कॉकरोच भी है जो खास तरह के मिनिएचर बैकपैक से लैस है. कैमरे के जरिए रियल टाइम डेटा जमा करना संभव बनाता है. इलेक्ट्रिकल स्टिमुली इंसानों के लिए कीट की गतिविधियां दूर से नियंत्रित करना संभव बनाती हैं. इसका मकसद खतरनाक जगहों पर निगरानी रखना है. उदाहरण के लिए दुश्मन के ठिकानों की जानकारी जुटाना. ये ऑटोनॉमस तरीके से भी काम कर सकते हैं.
20वीं सदी के पहले पांच दशकों में जर्मन वैज्ञानिकों ने कई सैन्य तकनीकों को विकसित किया, जो आगे चलकर दुनिया के लिए मानक बन गए. इनमें बैलिस्टिक मिसाइलों से लेकर जेट विमान और गाइडेड हथियार भी शामिल हैं. हालांकि, दूसरे विश्वयुद्ध में हार के बाद हालात बदल गए. इसके बाद तो जर्मनी की सैन्य ताकत को लगातार खत्म किया गया और उसका वैज्ञानिक हुनर भी बिखर गया. नाजियों के लिए पहले बैलिस्टिक मिसाइल की खोज करने वाले वेर्नर फॉन ब्राउन, उन सैकड़ों वैज्ञानिकों में हैं जिन्हें दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ले जाया गया. बाद में उन्होंने नासा के साथ काम किया और उस रॉकेट को विकसित किया, जो अपोलो को चांद पर ले गया.
"वैली ऑफ डेथ" से बचकर आना
यूरोपीय निवेशकों की पहले जोखिम से बचने की प्रवृत्ति स्टार्टअप के लिए बड़ा संकट थी. उन्हें पूंजी के लिए बहुत जूझना पड़ता था, खासतौर से शुरुआती दौर में. इसे "वैली ऑफ डेथ" कहा जाता है, यानी वह शुरुआती समय जब खर्चे ज्यादा होते हैं और बिक्री बहुत कम. हालांकि, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद यूरोपीय सरकारों के रक्षा खर्चों में आई बढ़ोतरी ने निवशकों को वह मौका दे दिया है, जिसका उन्हें इंतजार था.
यूरोप अब तीन ऐसे स्टार्टअप पर खुद को गौरवशाली महसूस कर रहा है, जिनकी यूनीकॉर्न वैल्यू 1 अरब डॉलर से ज्यादा की है. इनमें हेलसिंग, जर्मन ड्रोन कंपनी क्वांटम सिस्टम्स और पुर्तगाल का टेकेवर शामिल है. यह कंपनी भी ड्रोन बनाती है. अमेरिका के बाद यूक्रेन को सबसे ज्यादा सैन्य सहायता जर्मनी से मिल रही है. सूत्रों का कहना है कि कंपनियों को जो ऑर्डर हासिल करने में पहले सालों लगते थे, वह अब महीनों में मिल रहे हैं, साथ ही मैदान में उन्हें आजमाने का मौका भी.
उधर जर्मनी के ऑटो उद्योग में आई कमजोरी का एक मतलब यह भी है कि उत्पादन की क्षमता खाली पड़ी है. यहां तक कि मिटेल्सटांड में भी. मिटेल्सटांड छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों को सामूहिक रूप से कहा जाता है, जो वास्तव में जर्मन उद्योग जगत की रीढ़ हैं. रक्षा उद्योग में सक्रिय कंपनियों को आए दिन ऑटो उद्योग के कर्मचारियों की तरफ से नौकरी के आवेदन मिल रहे हैं.