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अंतरिक्ष यात्रियों को होता है कैंसर और दिल की बीमारी का खतरा

२१ फ़रवरी २०२५

धरती के वातावरण में ढलने में इंसानी शरीर को करोड़ों साल लगे. लेकिन अंतरिक्ष के वातावरण में इंसानों के शरीर और दिमाग पर कई नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं. हालांकि, इन प्रभावों को लेकर ठोस शोध की भी भारी कमी है.

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अपने सह यात्रियों के साथ सुनीता विलियम्स
अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर होने वाले नकारात्मक असर को कैसे कम किया जाए इसे लेकर शोध की भारी कमी है. तस्वीर: NASA/AP/picture alliance

यूरी गागरिन वह पहले इंसान थे जिन्होंने अप्रैल 1961 में अंतरिक्ष यात्रा की थी. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मुताबिक अंतरिक्ष में भेजे जाने से पहले उन्हें कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा था ताकि उनका शरीर इस यात्रा के लिए पूरी तरह फिट हो.

बीते सात महीनों से अंतरिक्ष में फंसीं हुई यात्री सुनीता विलियम्स के स्वास्थ्य पर भी असर देखने को मिला है. उनकी हालिया तस्वीरों में पाया गया कि उनका वजन कम हो गया है. लोग उनके स्वास्थ्य को लेकर फिक्रमंद हैं.

आज भी अंतरिक्ष यात्रा से पहले और बाद में कई तैयारियां की जाती हैं क्योंकि इंसानों का शरीर धरती पर रहने के लिए बना है. ट्रेनिंग के जरिए उन्हें अंतरिक्ष यात्रा के लिए तो तैयार कर दिया जाता है लेकिन धरती पर वापस आने के बाद भी उनके शरीर पर कई तरह के असर देखने को मिलते हैं. अक्सर धरती पर वापस आने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए तो कई बार अपने पैरों पर तुरंत खड़ा हो पाना भी मुश्किल होता है.

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अंतरिक्ष यात्रा इंसानी शरीर को कैसे बदल देती है

धरती के वातावरण में ढलने में इंसानी शरीर को करोड़ों साल लगे. अंतरिक्ष का वातावरण पृथ्वी से बेहद अलग है. सेंटर फॉर स्पेस बायोमेडिसिन की निदेशक आफशिन बेहेश्ती के मुताबिक लंबे समय तक अतंरिक्ष में रहने वाले यात्री कई मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से गुजरते हैं. 

वक्त के साथ अतंरिक्ष मिशन और वहां जाने वाले यात्रियों की संख्या भी बढ़ी है. इसलिए शोधकर्ता इस बात की खोज में लगे हैं कि अंतरिक्ष यात्रा को लोगों के लिए कैसे अधिक सुरक्षित बनाया जाए. इसके लिए अलग अलग मिशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य से जुड़े डेटा की जरूरत है. न्यू यॉर्क में बायोफिजिक्स के प्रोफेसर क्रिस मेसन के मुताबिक ऐसा करना इसलिए जरूरी है ताकि सभी अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के हिसाब से रणनीति पहले से ही तैयार हो.

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रेडिएशन है सबसे बड़ा खतरा

धरती का वातावरण और चुंबकीय क्षेत्र इंसानों को रेडिएशन से बचाता है. लेकिन अंतरिक्ष में यात्री बेहद ऊर्जा वाले रेडिएशन क्षेत्र में होते हैं. इससे उनका डीएनए नष्ट हो सकता है, कैंसर और हृदय रोग की संभावना बढ़ सकती है. साथ ही प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हो सकती है. जो मिशन धरती के ऑर्बिट के आस-पास होते हैं उनमें अंतरिक्ष यात्री फिर भी सुरक्षित होते हैं. लेकिन इससे बाहर जो मिशन होते हैं उनके यात्रियों के स्वास्थ्य को अधिक खतरा होता है. उदाहरण के तौर पर मंगल ग्रह से जुड़े मिशन में शामिल अंतरिक्ष यात्री अधिक रेडिएशन वाले क्षेत्रों में जाते हैं.

बिना ग्रैविटी के यान में इधर से उधर हवा में उड़ते अंतरिक्ष यात्रियों की तस्वीरें सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं. लेकिन गुरुत्वाकर्षण का ना होना उनके लिए बेहद हानिकारक भी होता है. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के कारण ही हमारा शरीर काम कर पाता है. इसके बिना शरीर में मौजूद फ्लूइड ऊपर की दिशा में बहने लगते हैं और चेहरा सूज सकता है. इतना ही नहीं, इससे आंखों की रोशनी भी कमजोर हो सकती है. बिना गुरुत्वाकर्षण के हड्डियां और मांसपेशियां अपनी ताकत खो सकती हैं. ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों के ऊपर हमेशा कोई ना कोई शारीरिक नुकसान होने का खतरा मंडराता रहता है.

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मानसिक परेशानियों की भी लंबी है सूची

अंतरिक्ष में शारीरिक परेशानियों के अलावा अकेलापन और अपनों से दूर रहना यात्रियों के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती साबित होती है. इसके कारण अतंरिक्ष यात्री दिमागी रूप से परेशान हो सकते हैं, उन्हें नींद की समस्या हो सकती है. उनकी सोचने समझने की क्षमता घट सकती है और इससे उन्हें मूड संबंधी दिक्कतें भी हो सकती हैं. दूसरे यात्रियों के साथ एक सीमित जगह में रहने के कारण उनके बीच आपसी मतभेद भी हो सकते हैं.

ये नुकसान सिर्फ अंतरिक्ष तक सीमित नहीं रहते. धरती पर वापस आने के बाद भी अंतरिक्ष यात्रियों को दिल से संबंधित बीमारियां होने की संभावना बनी रहती है. लंबे समय तक ग्रैविटी के बिना रहने के कारण सुनने की क्षमता भी प्रभावित होती है. छोटे अंतरिक्ष मिशन पर जाने वाले यात्री जब वापस पृथ्वी पर आते हैं तो उनके शरीर को हुए 95 फीसदी नुकसान की भरपाई अपने आप हो जाती है. लेकिन लंबे मिशन पर गए यात्रियों के साथ ऐसा होना मुश्किल होता है.

यात्रियों की कुछ शारीरिक दिक्कतें तो खत्म हो जाती हैं लेकिन कुछ लंबे समय तक बनी रहती हैं. "स्पेसफ्लाइट असोसिएटेड न्यूरो ऑक्यूलर सिंड्रोम” ऐसी ही एक बीमारी है. इसमें कम ग्रैविटी में महीनों रहने के कारण यात्रियों की नजर कमजोर हो जाती है. कई यात्रियों को लेंस का इस्तेमाल करना पड़ जाता है.

शोध की कमी है एक बड़ी रुकावट

अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य को लेकर तो कई शोध हो रहे हैं लेकिन अभी भी पर्याप्त जानकारी और आंकड़ों की भारी कमी है. उदाहरण के तौर पर अंतरिक्ष यात्रा लोगों के फेफड़ों को कैसे प्रभावित करती है, इसे लेकर कोई जानकारी मौजूद नहीं है. बेहेश्ती कहती हैं कि अंतरिक्ष यात्रा कैसे इंसानों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है, इसे लेकर भी हमारे पास कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है. जो शोध हुए भी हैं, वे इंसानों नहीं बल्कि चूहों पर किए गए हैं.

2024 में हुई एक स्टडी बताती है कि अंतरिक्ष यात्रियों को सिर दर्द होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है. इस स्टडी में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के 24 यात्री शामिल थे. वहीं, 2022 में 17 अंतरिक्ष यात्रियों पर की गई एक स्टडी में इन सभी यात्रियों की हड्डियों का घनत्व कम पाया गया.

आरआर/वीके (रॉयटर्स)

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