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'ऑपरेशन सिंदूर': संदेश ले जाने वालों में थरूर और सुले का नाम

१७ मई २०२५

'ऑपरेशन सिंदूर' का संदेश दुनिया भर तक पहुंचाने के लिए भारत सरकार सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेज रही है, जिनमें से तीन का नेतृत्व विपक्षी सांसद करेंगे. कांग्रेस ने हैरानी जताई कि उनसे मांगे गए नाम आखिरी सूची में नहीं हैं.

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कांग्रेस सांसद शशि थरूर
कांग्रेस सांसद शशि थरूर, संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी है.तस्वीर: IANS

भारत, आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए दुनिया भर से समर्थन जुटाने और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए एक अभियान छेड़ रहा है. इसके तहत भारत सरकार सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को विभिन्न देशों में भेजने की तैयारी में है. केंद्र सरकार ने 17 मई को ऐलान किया कि सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इस महीने के आखिर में अलग-अलग देशों का दौरा करेंगे और भारत का संदेश पहुंचाएंगे. इन में से तीन प्रतिनिधिमंडलों की अगुवाई विपक्षी नेता करेंगे, जिनमें कांग्रेस के शशि थरूर, एनसीपी(शरद पवार) सांसद सुप्रिया सुले और डीएमके की सांसद कनिमोझी शामिल हैं.

पीआईबी से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में सरकार ने कहा, "ऑपरेशन सिंदूर और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की लगातार लड़ाई के मद्देनजर, प्रतिनिधिमंडल इस महीने के आखिर में अहम साझेदार देशों का दौरा करेंगे, जिनमें सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्य देश भी शामिल हैं. ये सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भारत की राष्ट्रीय एकजुटता और आतंकवाद के खिलाफ सख्त रवैये को दुनिया के सामने पेश करेंगे. वे देश की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता यानी जीरो-टोलरेंस का मजबूत संदेश पूरी दुनिया तक लेकर जाएंगे."

सरकार ने बताया कि हर प्रतिनिधिमंडल में अलग-अलग पार्टियों के सांसद, प्रमुख राजनीतिक चेहरे और नामी राजनयिक शामिल होंगे.

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एक्स पर सरकार का बयान साझा करते हुए लिखा, "सबसे अहम पलों में भारत एकजुट खड़ा है. सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जल्द ही अहम साझेदार देशों का दौरा करेंगे और आतंकवाद के प्रति जीरो टोलरेंस का हमारा साझा संदेश ले जाएंगे. यह राजनीति से ऊपर, मतभेद से परे, राष्ट्रीय एकता की ताकतवर झलक है."

कांग्रेस ने नामों पर हैरानी जताई

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के ऐलान पर, कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि संसदीय मामलों के मंत्री "किरेन रिजिजू ने चार नाम मांगे, हमने दे दिए. हमें उम्मीद थी कि ये नाम आखिरी सूची में होंगे. लेकिन पीआईबी की रिलीज बिल्कुल अलग है. हम हैरान हैं." उन्होंने आगे कहा, "अब आगे क्या होगा, यह मैं नहीं कह सकता. नाम अलग हैं. हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई है. हमें उम्मीद थी कि सरकार ईमानदारी से नाम मांग रही है. हमें नहीं पता था कि वे शरारती सोच से ऐसा कर रहे हैं."

जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "कल 16 मई की दोपहर तक, लोकसभा में विपक्ष के नेता (राहुल गांधी) ने संसदीय कार्य मंत्री को कांग्रेस की तरफ से ये नाम लिखकर दिए थे. 1. श्री आनन्द शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री, 2. श्री गौरव गोगोई, उपनेता, लोकसभा, 3. डॉ सैयद नसीर हुसैन, राज्यसभा सांसद 4. श्री राजा बराड़, लोकसभा सांसद."

शशि थरूर और सुप्रिया सुले की प्रतिक्रिया

इस ऐलान के बाद, थरूर ने एक्स पर लिखा, "भारत सरकार की तरफ से पांच अहम राजधानियों में हालिया घटनाओं पर हमारे देश का नजरिया पेश करने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने का न्योता मिलना मेरे लिए सम्मान की बात है."

पार्टी की तरफ से उनका नाम ना भेजने पर थरूर ने कहा, "अपनी राय रखने का (कांग्रेस) पार्टी का पूरा अधिकार है, और यह प्रतिनिधिमंडल सरकार भेज रही है तो सरकार की अपनी राय है कि उन्हें कौन ज्यादा सही (प्रतिनिधि) लग रहा है… जब भी मेरे देश को मेरी सेवाओं की जरूरत है तो मैं उपलब्ध हूं. मेरे ख्याल में इसमें दलगत राजनीति जैसी कोई बात नहीं. जब मैं राजनीति और देश में नहीं था, तब भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुंबई हमलों के बाद ऐसे प्रतिनिधिमंडल विभिन्न जगहों पर भेजे थे.

सुप्रिया सुले ने भी कहा कि प्रतिनिधिमंडल में शामिल होना उनके लिए सम्मान की बात है. उन्होंने एक्स पर लिखा, "मैं यह जिम्मेदारी विनम्रता से स्वीकार करती हूं. हमारा मकसद भारत का एकजुट और अडिग संदेश देना है कि आतंकवाद बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा."

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पहले भी भेजे गए हैं ऐसे प्रतिनिधिमंडल

भारत सरकार पहले भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेज चुकी है. 1994 में, पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने तत्कालीन विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल जिनेवा में सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के विशेष सत्र में भेजा था, जहां जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के मामले में भारत की निंदा करने के पाकिस्तान समर्थित प्रस्ताव को रोकने में भारत कामयाब रहा था. 2008 के मुंबई हमलों के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कई देशों की राजधानियों में भेजे थे ताकि दुनियाभर से समर्थन जुटाया जा सके.