जजों की नियुक्तिः खतरे में जर्मनी की निष्पक्ष परंपरा?
११ जुलाई २०२५जर्मनी की संघीय संसद में शुक्रवार को एक संवैधानिक न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर ऐसा टकराव हुआ जिसने सत्तारूढ़ गठबंधन को झकझोर दिया और जर्मनी की अब तक की निर्विवाद न्यायिक परंपराओं पर भी सवाल खड़े कर दिए.
विवाद की जड़ में हैं फ्राउके ब्रोजियुस-गेर्सडॉर्फ, जो एक अनुभवी कानूनविद, प्रगतिशील विचारों वाली न्यायविद्, और वाम झुकाव वाली पार्टी सोशल डेमोक्रैट (एसपीडी) की ओर से संघीय न्यायालय में जज के लिए नामित उम्मीदवार हैं. वह गर्भपात के अधिकार और कोविड-19 के दौरान अनिवार्य टीकाकरण की पक्षधर रही हैं. इस कारण रूढ़िवादी हलकों में उनका विरोध लंबे समय से रहा है.
देश की संघीय संवैधानिक अदालत में नए जजों की नियुक्ति को लेकर गठबंधन दलों के बीच सहमति टूट गई. चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के नेतृत्व वाले सेंटर राइट गठबंधन (सीडीयू/सीएसयू) ने आखिरी पलों में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) द्वारा नामित कानून विशेषज्ञ फ्राउके ब्रोजीयुस-गेर्सडॉर्फ के नाम पर अपना समर्थन वापस ले लिया. यह कदम उस वक्त आया जब संसद में उनके नाम पर मतदान होने वाला था. बाद में यह मतदान टाल दिया गया.
आरोप, जिनकी कोई पुष्टि नहीं
गुरुवार शाम ऑस्ट्रियाई "प्लेजरिज्म हंटर” यानी रिसर्च में चोरी खोजने वाले स्टेफान वेबर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर आरोप लगाया कि ब्रोजियुस-गेर्सडॉर्फ ने अपने डॉक्टरेट शोधप्रबंध में अपने पति के थीसिस से सामग्री ली थी. हालांकि, इन आरोपों की अब तक कोई स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है और अधिकांश प्रतिक्रियाओं ने इन्हें "बेबुनियाद और हास्यास्पद" करार दिया है.
जर्मनी में प्लेजरिज्म एक बेहद गंभीर मुद्दा है और इसे लेकर कई राजनेताओं के करियर खत्म हो चुके हैं. 2024 में एक इंटरव्यू में बर्लिन की हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ. यूलिया पोजनर कहती हैं, "इस तरह के आरोप अगर चुनाव से ठीक पहले सामने आएं, तो अक्सर राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल होते हैं. हमें (ऐसे आरोपों को लेकर) संदेह करना चाहिए, खासकर जब कोई आरोप तथ्यों के बिना चुनाव-पूर्व सामने आता है."
एक महिला न्यायाधीश के खिलाफ रणनीति?
एसपीडी के कई नेता मानते हैं कि ब्रोजियुस-गेर्सडॉर्फ को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया गया है. एसपीडी की वरिष्ठ नेता आंके रेहलिंगर ने सख्त शब्दों में प्रतिक्रिया दी. समाचार एजेंसी डीपीए से उन्होंने कहा, "इस प्रक्रिया को बेहद अनैतिक ढंग से अंजाम दिया गया है. यह न केवल उस महिला को नुकसान पहुंचाता है बल्कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को भी धूमिल करता है."
उधर ग्रीन्स पार्टी की संसदीय नेता ब्रिटा हासेलमन ने कहा, "यह संसद के लिए शर्मनाक है, खासकर चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स और येंस श्पान के लिए, जो समन्वय के लिए जिम्मेदार हैं."
यह पहली बार नहीं है जब चांसलर मैर्त्स की अगुआई में गठबंधन किसी प्रमुख नियुक्ति पर एकमत नहीं हो पाया. ठीक तीन महीने पहले स्वयं मैर्त्स की नियुक्ति भी पहले दौर में विफल हो गई थी.
जर्मनी की संवैधानिक अदालत को देश की सबसे निष्पक्ष और सम्मानित संस्थाओं में माना जाता है. इसके फैसलों ने कई बार सरकारों को गिरा दिया है. जैसे हालिया बजट रद्द करने वाले फैसले के कारण पिछली सरकार संकट में घिर गई और बाद में गठबंधन टूट गया. इसी कारण देश में फरवरी में नए चुनाव हुए, जिसके बाद फ्रीडरिष मैर्त्स के नेतृत्व में सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी के गठबंधन वाली सरकार बनी.
लाइपसिष यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर मार्कुस श्टाइनर कहते हैं, "जर्मनी में संवैधानिक न्यायाधीशों की नियुक्ति हमेशा आपसी सहमति और गरिमामयी प्रक्रिया से होती रही है. यह मामला इस परंपरा का अपमान है."
‘अदृश्य लाइन' बन गए हैं मुद्दे
ब्रोजियुस-गेर्सडॉर्फ पर मुख्य आपत्ति उनकी अबॉर्शन पर विचारधारा को लेकर है. उनके आलोचक उन्हें ‘अत्यधिक उदार' मानते हैं. जर्मनी में, जहां संवैधानिक न्यायालय राजनीतिक रूप से तटस्थ माना जाता है, वहां किसी जज की व्यक्तिगत राय को राजनीतिक बहस का मुद्दा बनाना असामान्य है.
राजनीतिक विचारक उटे फ्रेहर ने जर्मन न्यायपालिका में लिंग पूर्वाग्रह पर शोध किया है. 2023 में जर्नल ऑफ जर्मन लीगल स्ट्डीज में वह कहती हैं, "महिलाओं को न्यायिक पदों पर लाते समय अक्सर उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे 'विवादों से परे' रहें, जबकि पुरुषों को अपने विचार रखने की छूट होती है. यह दोहरा मानदंड है."
इस विवाद के समानांतर, खुद सीडीयू/सीएसयू के उम्मीदवार गुंटर श्पिनर के लिए भी बहुमत जुटाना आसान नहीं है. यदि उन्हें अति-दक्षिणपंथी एएफडी का समर्थन मिलता है, तो यह उस 'फायरवॉल' को तोड़ देगा, जिसके तहत सीडीयू अब तक एएफडी के साथ किसी सहयोग से परहेज करती रही है.
हाइनरिष ब्योल फाउंडेशन के राजनीतिक सिद्धांतकार ऑलिवर लेम्बके का कहना है, "एएफडी से समर्थन लेने की संभावना को लेकर सीडीयू की चुप्पी इस बात का संकेत है कि चरमपंथी ताकतें जर्मन लोकतंत्र की संस्थाओं में अप्रत्यक्ष प्रवेश पा रही हैं."
जर्मन लोकतंत्र की दिशा पर सवाल
यह घटना मात्र एक न्यायाधीश की नियुक्ति का मामला नहीं है. यह जर्मनी की राजनीतिक संस्कृति, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और लैंगिक न्याय के मूल्यों पर एक व्यापक सवाल है.
राजनीतिक और कानूनी हल्कों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह प्रकरण एक "चरित्र हनन" है, या वास्तव में न्यायिक पारदर्शिता का हिस्सा है. क्या जर्मनी की संसद न्यायपालिका के निष्पक्ष चयन की परंपरा को बनाए रख सकेगी? इन सवालों के जवाब आने में अब समय लगेगा क्योंकि नियुक्ति पर संसद में होने वाला मतदान टल गया है.