विज्ञान ने भी अब मान लिया कि लिंग केवल दो नहीं होते
१५ फ़रवरी २०२५कई लोग मानते हैं कि हमारा लिंग हमारे जन्म के समय तय हो जाता है और यह हमारे जीन में लिखा होता है. उनका कहना है कि इसे स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है और यह हमारे जीवनकाल में नहीं बदलता है. उनके अनुसार, आप या तो महिला हैं या पुरुष, आप या तो राजकुमारी हैं या शूरवीर, बीच में कोई विकल्प नहीं है. साथ ही, इस बारे में आपकी कोई राय मायने नहीं रखती. आप जिस लिंग के साथ पैदा हुए हैं, वही आपका लिंग है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी ऐसा मानते हैं. जनवरी 2025 में दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के दौरान, ट्रंप ने कहा कि यह अमेरिकी सरकार की नीति होगी "सिर्फ दो लिंग होते हैं, पुरुष और महिला."
दूसरी ओर, 23 फरवरी, 2025 को होने वाले जर्मनी के आम चुनाव से दो सप्ताह पहले एक टीवी डिबेट में, चांसलर पद के लिए रूढ़िवादी उम्मीदवार फ्रीडरिष मेर्त्स ने कहा कि वह लिंग से जुड़ी इस बहस में ट्रंप के साथ हैं. मेर्त्स ने कहा, "यह एक ऐसा फैसला है जिसे मैं समझ सकता हूं.”
जो लोग मानते हैं कि सिर्फ दो ही लिंग होते हैं, वे इसके लिए जीव विज्ञान का उदाहरण देते हैं. उनका कहना है कि सिर्फ पुरुष और महिला ही होते हैं. ये कभी नहीं बदल सकते और इनके बीच में कोई अन्य विकल्प नहीं है. हालांकि, अब ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि लिंग सिर्फ दो ही तरह के नहीं होते हैं, बल्कि इसके कई रूप हो सकते हैं. आप अगर चाहें तो मान सकते हैं कि पुरुष और महिला दो अलग छोर हैं, लेकिन इनके बीच में भी कई तरह के लोग होते हैं.
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जीन निभाते हैं अहम भूमिका
दो एक्स क्रोमोजोम मिले तो लड़की, जबकि एक एक्स और एक वाई क्रोमोजोम मिले तो लड़का. हम स्कूल में यही सीखते हैं. दो एक्स क्रोमोजोम वाले लोगों यानी महिलाओं के गर्भ में सामान्य रूप से योनि, गर्भाशय और अंडाशय बनते हैं. वहीं, एक एक्स और एक वाई क्रोमोजोम वाले लोगों यानी पुरुषों में, लिंग और अंडकोष बनते हैं. साफ तौर पर कहें, तो सेक्स क्रोमोजोम काफी मायने रखते हैं, लेकिन यह इतना सरल नहीं है.
उदाहरण के लिए, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके शारीरिक लक्षण महिला वाले होते हैं, लेकिन उनके शरीर में पुरुषों वाले एक्स-वाई सेक्स क्रोमोजोम होते हैं. इसी तरह, कुछ पुरुषों के शरीर में महिलाओं वाले दो एक्स क्रोमोजोम पाए जाते हैं.
वाई क्रोमोजोम के एक छोटे हिस्से में एक जीन होता है, जिसे एसआरवाई कहते हैं. यह जीन अन्य कारकों के साथ मिलकर तय करता है कि भ्रूण में टेस्टीस यानी वीर्यकोष बनेगा या नहीं. अगर इस जीन में कोई बदलाव हो जाता है या कोई गड़बड़ी हो जाती है, तो भ्रूण में टेस्टीस नहीं बनेंगे, भले ही उसके क्रोमोजोम एक्स-वाई हों.
दूसरी तरफ, अगर यह जीन एक्स क्रोमोजोम में चला जाता है, शायद कोशिका विभाजन के समय, तो लड़की के शरीर में भी टेस्टीस बन सकता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ बच्चे के शरीर के बाहरी हिस्सों को देखकर ही उसके लिंग का फैसला करना सही है, जैसा कि अभी ज्यादातर मामलों में किया जाता है.
जीवन काल में भी बदल सकता है लिंग
हर किसी के शरीर में सेक्स क्रोमोजोम अलग-अलग तरह के होते हैं. इन क्रोमोजोम में थोड़े बहुत फर्क होने की वजह से लोगों के शरीर के बाहरी अंगों में भी अंतर हो सकता है. उदाहरण के लिए, लिंग और क्लिटोरिस के आकार और बनावट में काफी विविधता देखने को मिलती है.
ऐसे लोग जो खुद को साफ-साफ लड़का या लड़की नहीं मानते हैं, वे खुद को इंटरसेक्स कहते हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया की 1.7 फीसदी आबादी इस श्रेणी में आती है. 2018 से, जर्मनी में इस तरह के नवजात शिशुओं को ‘विविध' के तौर पर पंजीकृत किया जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश और भारत जैसे कई और देश भी तीसरे लिंग को मान्यता देते हैं.
किसी व्यक्ति का लिंग उसके पूरे जीवन काल में बदल भी सकता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो अंडकोष संबंधी लिंग पहचान बदल सकती है. चीनी शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए अध्ययन में यह पाया है. दो जीन हैं डीएमआरटी2 और एफओएक्सएल 2, जो शरीर में अंडाशय और अंडकोष के विकास को संतुलित रखते हैं. इन जीन में बदलाव होने पर, वयस्क जानवरों में भी उनके लिंग में बदलाव देखे गए हैं.
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हार्मोन का बदलता तालमेल
स्कूल में हमें सिखाया जाता है कि टेस्टोस्टेरॉन पुरुष हार्मोन है और एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन महिला हार्मोन हैं. लेकिन फिर से, यह इतना आसान नहीं है. पुरुषों, महिलाओं और लैंगिक रूप से विविध व्यक्तियों सभी के शरीर में ये सेक्स हार्मोन मौजूद होते हैं. औसतन देखा जाए तो, पुरुषों और महिलाओं में प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्राडियोल (सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक एस्ट्रोजेन) के स्तर में ज्यादा अंतर नहीं होता है.
अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों द्वारा यौन विशेषताओं पर किए गए एक समीक्षा अध्ययन के अनुसार, यदि कोई हार्मोन के स्तर में सिर्फ दो ही तरह के अंतर देखना चाहता है, तो उसे ‘गर्भवती' और ‘गर्भवती नहीं' के बीच अंतर करना चाहिए. ऐसा इसलिए है, क्योंकि गर्भवती महिलाओं में एस्ट्राडियोल और प्रोजेस्टेरोन का स्तर बाकी सभी लोगों से बहुत ज्यादा अलग होता है.
बच्चों में सेक्स हार्मोन में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं होता है, लेकिन जब बच्चे जवान होने लगते हैं, तो लड़कों के शरीर में टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है. इसीलिए, औसतन देखा जाए तो, बड़े होने के बाद लड़कों में लड़कियों की तुलना में टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा ज्यादा होती है.
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि पुरुषों और महिलाओं में हार्मोन के स्तर का अंतर पहले जितना सोचा जाता था, उतना ज्यादा नहीं है. इसकी वजह यह है कि पहले के शोध में ज्यादातर पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन और महिलाओं में एस्ट्रोजेन की जांच की जाती थी. आज वैज्ञानिक पुरुषों और महिलाओं में हार्मोन के समान स्तरों पर ध्यान देकर शोध कर रहे हैं. अब यह भी पता चला है कि हार्मोन का स्तर सिर्फ जन्म से तय नहीं होता है, बल्कि कई बाहरी कारणों से भी प्रभावित होता है.
उदाहरण के लिए, गर्भवती महिलाओं के साथी पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम हो जाता है. दूसरी तरफ, ऐसा माना जाता है कि एस्ट्राडियोल और प्रोजेस्टेरोन (जिन्हें महिला हार्मोन माना जाता है) का स्तर तब बढ़ता है जब लोग दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं. जबकि आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि हावी होने की कोशिश करना पुरुषों का गुण है.
आपका मस्तिष्क किस लिंग का है?
पुरुषों और महिलाओं के मस्तिष्क में कुछ अंतर होते हैं. औसतन, पुरुषों का मस्तिष्क बड़ा होता है. इसके अलावा, दिमाग के अलग-अलग हिस्सों का आकार, उनके बीच जुड़ाव और उनमें पाए जाने वाले रिसेप्टर्स की संख्या और प्रकार में भी अंतर होता है.
हालांकि, शोधकर्ता पुरुष या महिला मस्तिष्क को सही से पहचान नहीं सकते. हर मस्तिष्क बिल्कुल अलग होता है और यह एक मोजेक की तरह होता है, जिसमें ‘पुरुष' और ‘महिला' के अलग-अलग हिस्से होते हैं. तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में इसके बारे में बताया है.
शोधकर्ताओं ने 1,400 मस्तिष्क का अध्ययन किया और पाया कि उनमें से एक चौथाई से आधे में पुरुषों और महिलाओं वाले गुणों का मिश्रण पाया गया. तो कह सकते हैं कि मस्तिष्क भी उतना ही जटिल है जितना कि अन्य चीजें.
यह ट्रांस लोगों के मस्तिष्क पर भी लागू होता है. ट्रांस लोगों के मस्तिष्क का अध्ययन भी किया जा रहा है. इन अध्ययनों से पता चलता है कि ट्रांस लोगों का मस्तिष्क कभी-कभी अपने कथित लिंग (जिस लिंग की वे पहचान रखते हैं) के करीब होता है और कभी-कभी जन्म के समय निर्धारित लिंग के करीब.
इससे यह साफ है कि सिर्फ यह नहीं कहा जा सकता कि लिंग दो ही तरह के होते हैं. इस दिशा में कोई भी ‘जैविक' तर्क विज्ञान की वर्तमान स्थिति के अनुरूप नहीं है. लिंग और जेंडर बहुत ही जटिल और अलग-अलग तरह के होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य (और चूहे और अन्य जानवर) भी अलग-अलग होते हैं.