जर्मन चुनाव से पहले आखिरी संसद सत्र में तीखी बहस
११ फ़रवरी २०२५जर्मनी में23 फरवरी को होने वाले चुनाव से पहले संसद का आखिरी सत्र इस सरकार का सबसे गर्म सत्र साबित हुआ. पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच बहस चीखने-चिल्लाने तक में बदल गई. विपक्षी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने चांसलर ओलाफ शॉल्त्स पर जर्मनी की अर्थव्यवस्था को "बर्बादी" की ओर धकेलने का आरोप लगाया. वहीं, शॉल्त्स ने पलटवार करते हुए कहा कि मैर्त्स की इमिग्रेशन नीति "यूरोप को खतरे में डाल सकती है."
उदार दक्षिणपंथी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के नेता मैर्त्स ने कहा कि शॉल्त्स की नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था तीन साल से गिरावट में है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "आप कहते हैं कि आपने सब सही किया. बस लोग आपकी बुद्धिमानी को समझ नहीं पा रहे."
शॉल्त्स ने खुद का बचाव किया. उन्होंने यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा संकट और महंगाई को आर्थिक मंदी की वजह बताया. उन्होंने मैर्त्स को "अस्थिर नीतियों" वाला नेता कहा.
अर्थव्यवस्था देश का एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है. लोग महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हैं. मैर्त्स का कहना है कि वह 'बिजनेस-फ्रेंडली' सुधार लाएंगे. शॉल्त्स का कहना है कि संकट में धैर्य और स्थिर नेतृत्व जरूरी है.
इमिग्रेशन पर गर्म बहस
शॉल्त्स ने मैर्त्स की इमिग्रेशन नीति की आलोचना करते हुए कहा कि शरणार्थियों को रोकने की योजना यूरोप को कमजोर कर देगी. उन्होंने कहा, "अगर हम यूरोपीय कानून को मानने से इनकार करते हैं, तो दूसरे देश भी ऐसा ही करेंगे."
मैर्त्स ने कहा कि माइग्रेशन पर कड़ा रुख अपनाना जरूरी है. हाल ही में जर्मनी में हुए हमलों के बाद इमिग्रेशन चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया है. पिछले महीने बवेरिया प्रांत में एक चाकू हमले के बाद यह मामला और गरमा गया. मैर्त्स ने पिछले हफ्ते संसद में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें शरणार्थियों के खिलाफ बेहद कड़े नियम लागू करने की बात थी. इस प्रस्ताव को कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी ने समर्थन दिया. इससे राजनीतिक विवाद और बढ़ गया.
बहस में एएफडी नेता एलिस वाइडेल ने कहा कि असली सुधार उनकी पार्टी ही ला सकती है. उन्होंने मैर्त्स पर आरोप लगाया कि वह जनता को "धोखा" दे रहे हैं. उन्होंने कहा, "आप ग्रीन्स और सोशल डेमोक्रेट्स को साथ लेकर कोई वादा पूरा नहीं कर पाएंगे."
एएफडी पर चरमपंथी संगठन होने का आरोप लगता रहा है. वाइडेल ने पहले "रीमाइग्रेशन" नीति का समर्थन किया था. यह नीति प्रवासी पृष्ठभूमि वाले लोगों को जर्मनी से निकालने की बात करती है. हालांकि, इस बार उन्होंने नरम रुख अपनाया और कहा कि वह सिर्फ "अपराधी और धार्मिक चरमपंथियों" को ही बाहर निकालना चाहती हैं.
एएफडी इस समय 21 फीसदी मतदाताओं के समर्थन के साथ दूसरे स्थान पर है. मैर्त्स की सीडीयू 29-30 फीसदी समर्थन के साथ सबसे आगे है जबकि शॉल्त्स की सत्ताधारी एसपीडी 16 फीसदी पर है.
एएफडी का बढ़ता प्रभाव
एएफडी का समर्थन बढ़ रहा है और यह चुनावी माहौल को और गर्म कर रहा है. वाइडेल ने ग्रीन पार्टी पर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा, "इनका संसद में कोई काम नहीं है. इनमें से किसी ने जिंदगी में एक दिन भी काम नहीं किया." उनकी इस टिप्पणी पर संसद में हंगामा हुआ.
ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार रॉबर्ट हाबेक ने जवाब दिया, "एएफडी के नेता जानवरों की तरह चिल्ला रहे हैं."
वहीं, वामपंथी फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) के नेता क्रिस्टियान लिंडनर ने शॉल्त्स पर तंज कसा. उन्होंने कहा, "शॉल्त्स को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए. उन्होंने साबित कर दिया कि समानांतर ब्रह्मांड मौजूद हैं."
शॉल्त्स की गठबंधन सरकार नवंबर में गिर गई थी. उनकी पार्टी अब वापसी की कोशिश में है. लेकिन जनता आर्थिक मंदी और सुरक्षा को लेकर चिंतित है. इसलिए उनकी पार्टी को समर्थन में भारी गिरावट है.
लेकिन मैर्त्स के सामने चुनौती खुद को मजबूत नेता दिखाने की है. साथ ही, उन्हें दक्षिणपंथी एएफडी से खुद को अलग भी दिखाना होगा. हालांकि, उन्होंने बार-बार कहा कि वह एएफडी के साथ सरकार नहीं बनाएंगे. लेकिन उनकी पार्टी ने संसद में एएफडी के समर्थन से प्रस्ताव पास किया, जिससे संदेह बढ़ गया.
जर्मनी का यह चुनाव ऐतिहासिक हो सकता है. इससे देश की अर्थव्यवस्था, इमिग्रेशन नीति और यूरोप में उसकी भूमिका पर बड़ा असर पड़ेगा. जनता के पास तीन विकल्प हैं – शॉल्त्स का अनुभव, मैर्त्स का बदलाव का वादा या एएफडी की कट्टरपंथी राजनीति.
वीके/आरपी (एएफपी, डीपीए)