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यूपी: संभल हिंसा में पुलिस ने दायर की चार्ज शीट

समीरात्मज मिश्र
१९ जून २०२५

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वे के विरोध में भड़की हिंसा की जांच आगे बढ़ी. पुलिस ने एक हजार से ज्यादा पन्नों की चार्ज शीट दायर की है. जानिए क्या है पूरा मामला?

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संभल की शाही जामा मस्जिद
नवंबर 2024 में संभल की इस शाही जामा मस्जिद में सर्वे को लेकर छिड़ा था विवाद तस्वीर: AFP

यूपी के संभल जिले में पिछले साल शाही जामा मस्जिद का कोर्ट के आदेश पर सर्वेक्षण किया जा रहा था जिसके विरोध में हिंसा भड़क उठी थी. पुलिस का आरोप था कि यह हिंसा समाजवादी पार्टी के स्थानीय सांसद जियाउर्रहमान बर्क की वजह से भड़की है.

यूपी पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने जिला न्यायालय के विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट में एक हजार से ज्यादा पन्नों की चार्ज शीट दाखिल की है जिसमें जियाउर्रहमान बर्क और मस्जिद के सदर जफर अली का नाम भी शामिल है.

क्या हैं आरोप?

इन सभी पर कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने, सरकारी काम में बाधा डालने, हिंसा भड़काने और आगजनी करने के आरोप हैं. संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने मीडिया को बताया कि इस मामले में कुल बारह मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिनमें से सात पुलिस ने और आम लोगों ने दर्ज कराए थे. उन्होंने बताया, "सबसे महत्वपूर्ण मुकदमा हिंसा की साजिश के बारे में है जिसमें सांसद जियाउर्रहमान वर्क को अभियुक्त बनाया गया है. जफर अली और सांसद जियाउर्रहमान बर्क के बीच हिंसा से दो दिन पहले देर रात तक बातचीत हुई थी. इस बातचीत और अन्य सबूतों के आधार पर पुलिस ने जफर अली को भी चार्जशीट में शामिल किया है.”

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एसपी विश्नोई का कहना था कि इस मामले में दर्ज अन्य मुकदमे ट्रायल की स्टेज पर आ चुके हैं और पुलिस प्रभावी पैरवी करके दोषियों को सजा दिलाएगी. उन्होंने बताया कि हिंसा के मामले में अभी तक 92 लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा चुका है जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं.

इसके अलावा कई अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी है. एसपी ने बताया कि इस चार्जशीट में समाजवादी पार्टी के विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहेल इकबाल को क्लीन चिट मिल गई है. हिंसा भड़काने को लेकर उन पर भी मुकदमा दर्ज हुआ था लेकिन जांच में पता चला कि वे उस दिन अपने घर पर ही थे और उन्होंने किसी को हिंसा के लिए नहीं उकसाया.

गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट की रोक

चार्जशीट के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के सांसद बर्क पर हिंसा से पहले भड़काऊ भाषण देकर भीड़ को उकसाने का आरोप है. पिछले साल 24 नवंबर को हुई इस हिंसा में चार लोगों की मौत हुई थी, जबकि 23 पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल हुए थे. जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा तब भड़क उठी थी जब कोर्ट के आदेश पर एडवोकेट कमिश्नर की टीम सर्वेक्षण के लिए पहुंची. आरोप हैं कि विरोध कर रही भीड़ ने पथराव, आगजनी और फायरिंग की, जिसमें सरकारी संपत्ति को काफी नुकसान हुआ.

इस हिंसा के दौरान हुई आगजनी में पुलिस के कई वाहन भी जलकर खाक हो गए थे. पुलिस ने समजावादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क को इस हिंसा का मुख्य साजिशकर्ता बताया था लेकिन सपा सांसद बर्क ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज किया है. जियाउर्रहमान बर्क का दावा है कि कि वह इस घटना के दौरान संभल में नहीं थे.

संभल हिंसा मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सांसद जियाउर्रहमान बर्क की गिरफ्तारी पर रोक लगा रखी है, लेकिन जांच में सहयोग का निर्देश दिया है. इससे पहले संभल हिंसा मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने जामा मस्जिद सदर के एडवोकेट जफर अली को पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था. उनकी जमानत याचिका जिला न्यायालय की ओर खारिज की जा चुकी है.

क्यों हो रहा था मस्जिद का सर्वेक्षण?

संभल की शाही जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा संरक्षित इमारत है जिसका न्यायालय के आदेश पर सर्वेक्षण किया जा रहा था. सर्वेक्षण के दौरान ही ये हिंसा भड़क उठी थी क्योंकि सर्वेक्षण का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी मस्जिद के पास एकत्र हुए थे और पुलिसकर्मियों से उनकी झड़प हो गई थी. झड़प के बाद भारी पथराव हुआ और पुलिस ने कथित तौर पर गोलीबारी की जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे. हालांकि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी से इनकार किया था लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप था कि पुलिस ने गोली चलाई थी.

भारत में पुरानी मस्जिदों को लेकर तनाव

सर्वेक्षण की शुरुआत इस दावे के बाद की गई थी कि मस्जिद का निर्माण मुगल काल में कथित तौर पर ध्वस्त किए गए हिंदू मंदिर के खंडहर पर किया गया था. जामा मस्जिद का पहला सर्वेक्षण तो शांतिपूर्ण तरीके से हुआ था, लेकिन 24 नवंबर को दूसरे सर्वेक्षण के दौरान तनाव बढ़ गया था. पुलिस के मुताबिक, हिंसा में कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे और अभियुक्तों ने कथित तौर पर आगजनी, तोड़फोड़ और गोलीबारी भी की थी, जिससे लाखों रुपये का नुकसान हुआ.

इस हिंसा को लेकर देश भर में राजनीति में भी काफी गर्मी रही. विपक्षी दलों ने पुलिस और प्रशासन पर हिंसा भड़काने के आरोप लगाए थे. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बीएसपी प्रमुख मायावती ने इस हिंसा के लिए राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और धर्म देखकर कार्रवाई करने का आरोप लगाया था.