इंसानों ने बोलना कब और क्यों शुरू किया?
२० फ़रवरी २०२५विज्ञान के सामने यह सवाल बहुत पुराने समय से रहा है कि इंसान ने बोलना कब और कैसे शुरू किया होगा. इस बारे में बहुत से शोध होते रहे हैं. अब एक ताजा शोध के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें जेनेटिक्स की बड़ी भूमिका रही है. उनका कहना है कि बोलने की इस अनोखी क्षमता का विकास हमारी जीवित रहने की संभावना बढ़ाने में मददगार रहा.
एक नए अध्ययन में एक खास जीन को प्राचीन समय में बोलने की क्षमता पैदा होने से जोड़ा गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ इंसानों में मिलने वाले एक खास प्रोटीन वेरिएंट ने संवाद करने के नए तरीके को संभव बनाया. बोलने की क्षमता ने हमें जानकारी साझा करने, मिलकर काम करने और ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद की. इसने हमें निएंडरथल और डेनिसोवेंस जैसे विलुप्त हो चुके मानव पूर्वजों पर बढ़त दिलाई.
कैसे हुई खोज?
वैज्ञानिकों ने एक खास जेनेटिक वेरिएंट की जांच की, जो इंसानों को एक प्रमुख प्रजाति बनने में मदद करने वाले कई जीन में से एक था. इस अध्ययन के सह-लेखक और न्यूयॉर्क की रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के डॉ. रॉबर्ट डार्नेल का यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपा है.
डॉ. डार्नेल 1990 के दशक से नोवा वन नाम के इस प्रोटीन पर रिसर्च कर रहे हैं. यह प्रोटीन दिमाग के विकास में अहम भूमिका निभाता है. उनकी टीम ने चूहों पर प्रयोग करने के लिए क्रिस्पर (सीआरआईएसपीआर) तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने चूहों में मौजूद नोवा वन प्रोटीन को इंसानों वाले वेरिएंट से बदल दिया.
क्या हुआ असर?
वैज्ञानिकों को हैरानी हुई कि इससे चूहों के आवाज निकालने के तरीके में बदलाव आ गया. नवजात चूहे, जिनमें इंसानी वेरिएंट था, अपनी मां के आसपास आने पर सामान्य चूहों से अलग तरह की आवाजें निकाल रहे थे. वयस्क नर चूहों की आवाज भी बदली हुई थी, खासतौर पर जब वे किसी मादा चूहे को देखने के लिए प्रेरित होते थे.
डॉ. डार्नेल ने कहा कि यह उन परिस्थितियों में हुआ, जहां चूहे स्वाभाविक रूप से आवाज निकालते हैं. लेकिन जिनमें इंसानी वेरिएंट था, उन्होंने अलग तरह से आवाज निकाली. इससे यह साबित होता है कि यह जीन इंसानों की बोलने की क्षमता से जुड़ा हो सकता है.
मिनेसोटा यूनिवर्सिटी की लीजा फाइनेस्टैक कहती हैं कि यह अध्ययन "एक अच्छी शुरुआत" है. इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन-कौन से जीन भाषण और भाषा के विकास को प्रभावित कर सकते हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे भविष्य में बोलने की समस्या से जूझ रहे लोगों की मदद हो सकती है. लीजा इस रिसर्च टीम का हिस्सा नहीं थीं.
वीके/एनआर (एपी)