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कानून और न्यायभारत

कोलकाता के आर.जी. कर कांड के एक साल बाद भी नहीं बदली तस्वीर

प्रभाकर मणि तिवारी
८ अगस्त २०२५

कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और उसकी हत्या की घटना के बाद शैक्षणिक परिसरों में महिला सुरक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठा था. लेकिन एक साल बाद भी तस्वीर खास नहीं बदली है.

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एक साल पहले कोलकाता में हुए अनगिनत विरोध प्रदर्शनों में से एक में न्याय की उम्मीद वाले संदेश दिखाती महिलाएं
एक साल पहले कोलकाता में हुए अनगिनत विरोध प्रदर्शनों में से एक में न्याय की उम्मीद वाले संदेश दिखाती महिलाएंतस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और उसकी हत्या की घटना के बाद शैक्षणिक परिसरों में महिला सुरक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठा था. लेकिन एक साल बाद भी तस्वीर खास नहीं बदली है.

कोलकाता के सरकारी मेडिकल कॉलेज में हुई उस घटना के बाद डॉक्टरों समेत विभिन्न संगठनों ने महिला सुरक्षा और पीड़िता को न्याय की मांग में लंबे अरसे तक आंदोलन किया था. इस मामले में एक सिविक वालंटियर संजय राय को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था. कोलकाता की एक अदालत ने उसे आजीवन कैद की सजा सुनाई थी.

इस घटना के खिलाफ लगातार बढ़ते विरोध और आंदोलन के बाद सीबीआई ने सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप में कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष और टाला थाने के ऑफिसर इंचार्ज अभिजीत मंडल को भी गिरफ्तार किया था. लेकिन नब्बे दिनों के भीतर जांच एजेंसी के आरोपपत्र दायर करने में नाकाम रहने पर अदालत ने उनको जमानत दे दी.

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कहां पहुंची मामले की जांच

अब सीबीआई का कहना है कि वह इस घटना के पीछे की बड़ी साजिश की जांच कर रही है. लेकिन हालत यह है कि वह तय समय के भीतर इस मामले में पूरक आरोपपत्र तक दायर नहीं कर सकी है.

राज्य की ममता बनर्जी सरकार ने यौन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए उसी समय विधानसभा में अपराजिता विधेयक पारित किया था. लेकिन उसे अब भी राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है.

आर.जी. कर की घटना ने कामकाजी जगहों पर रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का अहम सवाल भी उठाया था. उसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बारे में एक ठोस नीति तैयार करने का निर्देश दिया था. अब करीब एक साल बाद गृह और श्रम मंत्रालय ने इसी सप्ताह इससे संबंधित एक मसौदे का अंतिम प्रारूप तैयार किया है.

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आर.जी. कर की घटना ने कोलकाता पुलिस और तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था. इस घटना में एकमात्र अभियुक्त को उम्रकैद की सजा के बावजूद इसकी आंच ठंडी नहीं पड़ी थी. इसी बीच इस साल जून के आखिरी सप्ताह में कोलकाता के एक लॉ कॉलेज परिसर में एक छात्रा के साथ उसी कॉलेज के पूर्व और मौजूदा छात्रों की ओर से रेप की घटना ने महिला सुरक्षा का सवाल एक बार फिर सतह पर ला दिया है. खासकर इस मामले के अभियुक्तों के तृणमूल कांग्रेस की छात्र शाखा के साथ जुड़े होने की पुष्टि के बाद पार्टी के साथ सरकार भी अंगुलियां उठ रही हैं.

पीड़िता का परिवार किस हाल में

आर.जी. कर कालेज की पीड़िता के माता-पिता अब भी न्याय की मांग में दर-दर गुहार लगा रहे हैं. उनका दावा है कि इस घटना में एक से ज्यादा प्रभावशाली अभियुक्त शामिल थे. लेकिन पहले कोलकाता पुलिस और उसके बाद अदालत के निर्देश पर इस मामले की जांच करने वाली सीबीआई ने भी लीपापोती का ही काम किया. 

पीड़िता के परिवार ने न्याय की मांग में नौ अगस्त को नवान्न (सचिवालय) अभियान की अपील की है. इसके अलावा पिछले साल की तरह इस साल भी कई संगठनों ने 14 अगस्त की रात को सड़कों पर कब्जे की अपील की है.

पीड़िता के पिता डीडब्ल्यू से कहते हैं, "अगर सरकार ने मेरी बेटी के साथ हुई घटना की तटस्थ औऱ निष्पक्ष जांच की होती और शैक्षणिक परिसरों में व्याप्त भ्रष्टाचार और धमकी की संस्कृति के खिलाफ ठोस उपाय किए गए होते तो हमें न्याय तो मिला ही होता तो अपराधियों को ऐसे अपराध करने की हिम्मत नहीं होती. लॉ कॉलेज की घटना सरकार और जांच एजेंसियों की ढिलाई और लीपापोती का सबूत है."

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ममता बनर्जी सरकार ने ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए बीते साल तीन सितंबर को विधानसभा में अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया था.  इसमें बलात्कार के दोषियों को आजीवन कैद या फांसी की सजा देने का प्रावधान है. इसके साथ ही 21 दिनों में जांच पूरी कर 30 दिनों में सुनवाई पूरी करने की बात कही गई है. विधेयक में 52 स्पेशल फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन के अलावा राज्य के हर जिले में अपराजिता टास्क फोर्स के गठन जैसे कई प्रावधान हैं.

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इसे उसी समय राज्यपाल को भेजा गया था. लेकिन राज्यपाल ने इसके कई प्रावधानों पर आपत्ति जताते इसे राष्ट्रपति को भेज दिया. अब जुलाई के आखिरी सप्ताह में राष्ट्रपति ने इसे राज्यपाल को लौटा दिया और राज्यपाल ने इसको पुनर्विचार के लिए सरकार को लौटा दिया है. 

आर.जी. कर की घटना ने कामकाजी जगहों पर रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का अहम सवाल भी उठाया था. उसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बारे में एक ठोस नीति तैयार करने का निर्देश दिया था.

अब करीब एक साल बाद गृह और श्रम मंत्रालय ने इसी सप्ताह इससे संबंधित एक मसौदे का अंतिम प्रारूप तमाम सरकारी विभागों को भेजा गया है. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी डीडब्ल्यू को बताते हैं, "तमाम विभागीय प्रमुखों के सुझावों  के बाद मसौदे को अंतिम रूप देकर मुख्यमंत्री के अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा." उस अधिकारी ने बताया कि मसौदे में रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के अलावा वहां रोशनी की समुचित व्यवस्था करना, सीसीटीवी कैमरे से निगरानी करना और मर्जी के खिलाफ किसी महिला की नाइट ड्यूटी नहीं लगाने जैसे 22 बिंदुओं का जिक्र है.

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सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पश्चिम बंगाल में खासकर शैक्षणिक परिसरों और कामकाजी जगहों पर महिला सुरक्षा का मुद्दा अब भी गंभीर है. महिला अधिकार कार्यकर्ता देवलीना चटर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "महिला सुरक्षा के मामले में राज्य का ट्रैक रिकार्ड बेहतर नहीं रहा है. आर.जी. कर कांड के बाद सरकार ने एक विधेयक पारित किया था. लेकिन वह भी राजनीति के पेंच में उलझ कर रह गया है. इसी तरह सरकार को कामकाजी जगहों पर महिला सुरक्षा से संबंधित मसौदे का प्रारूप तैयार करने में ही एक साल लग गया. इससे हालात में सुधार की उम्मीद कम ही है."

सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ट पत्रकार शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए. आर.जी. कर कांड की जांच भी सवालों के घेरे में है. सीबीआई भी अपनी जांच में किसी साजिश का पता लगाने में नाकाम रही है. ऐसे में पीड़िता के माता-पिता के आरोपों में दम नजर आता है. राज्य और केंद्र को इस मामले में ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि कोई महिला शैक्षणिक परिसरया कामकाज की जगह पर खुद को असुरक्षित महसूस नहीं करे. लेकिन फिलहाल यह सपना ही लगता है."