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मध्य पूर्व का ‘साइलेंट पावर’ कैसे बना कतर

मैथ्यू वार्ड आगीयूस
१२ सितम्बर २०२५

कभी समंदर से मोती चुनकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाने वाला कतर आज दुनिया के अमीर देशों में शुमार हो चुका है. कई सदियों तक दूसरों के अधीन रहा यह देश आज मध्य पूर्व का साइलेंट पावर कैसे बन गया?

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कतर की राजाधानी दोहा
बीते सालों में कतर ने अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने पर काफी काम किया हैतस्वीर: Ozkan Bilgin/AA/picture alliance

कतर में वंशानुगत राजतंत्र है. इसके बावजूद, यह देश मध्य पूर्व की कूटनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. अपनी सॉफ्ट पावर यानी कूटनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर यह वैश्विक मंच पर भी अपनी पकड़ को लगातार मजबूत कर रहा है.

करीब 25 लाख की आबादी वाला यह छोटा सा देश फारस की खाड़ी और सऊदी अरब के बीच स्थित है. पिछले करीब दो सौ सालों से यहां अल-थानी परिवार का शासन है. खाड़ी में इसकी भौगोलिक स्थिति एक तरफ इसके लिए वरदान साबित हुई है. वहीं दूसरी तरफ, इतिहास में इसी कारण इसे बहुत मुश्किलें भी झेलनी पड़ी हैं.

कतर का औपनिवेशिक इतिहास और आजादी

पिछले कुछ सदियों से कई संघर्षों के कारण कतर की स्वतंत्रता खतरे में रही है. इस पर 16वीं और 17वीं सदी में पुर्तगाली और उस्मानिया साम्राज्यों ने कब्जा किया था. इसके बाद 18वीं शताब्दी के मध्य तक सऊदी अरब का नियंत्रण था. 18वीं सदी के मध्य से कतर को पड़ोसी देश बहरीन के अधीन यानी बहरीन का एक आश्रित क्षेत्र माना जाता था और उस दौरान देश पर अल खलीफा शाही परिवार का शासन था.

गाजा से लेकर यूक्रेन तक कतर की मध्यस्थता क्यों सफल है

1867 में कतर और बहरीन के बीच हुए दो साल के संघर्ष के बाद एक ऐतिहासिक बदलाव आया. इस संघर्ष के बाद ब्रिटेन ने अल-थानी परिवार को सत्ता में आने में मदद की और कतर को बहरीन से अलग एक स्वायत्त देश के रूप में मान्यता दी. यह घटना कतर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी.

पहले विश्व युद्ध की शुरुआत तक यह 40 से ज्यादा सालों तक ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था. इसके बाद यह ब्रिटिश प्रोटेक्टोरेट बन गया यानी ब्रिटेन के नियंत्रण में आ गया. आखिरकार 1971 में इसे ब्रिटेन से पूरी आजादी मिली.

कतर को कहां से मिलता है धन

दूसरे मध्य पूर्वी देशों की तरह, कतर भी जीवाश्म ईंधन से धन कमाता है. कतर के कुल निर्यात में 86 फीसदी हिस्सा सिर्फ ईंधन का है. कभी मोती निकालकर अपनी अर्थव्यवस्था चलाने वाला एक गरीब देश, आज तेल से कमाई करने वाला अमीर देश बन गया है. कतर के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गैस भंडार है. यह भंडार कुल वैश्विक भंडार के 13 फीसदी से भी अधिक है. यही गैस इसके अमीर होने का एक सबसे बड़ा कारण भी है.

कतर में अमेरिका सेना के अड्डे पर ईरान का हमला

ईंधन निर्यात से होने वाली जबरदस्त कमाई ने कतर के सामाजिक और बुनियादी ढांचे में एक बड़ा बदलाव ला दिया है. इस आर्थिक उछाल के कारण आज प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में कतर दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक बन गया है.

हालांकि, कतर अब सिर्फ जीवाश्म ईंधन पर ही निर्भर नहीं रहना चाहता है. दुनिया में ग्रीन एनर्जी के बढ़ते इस्तेमाल के साथ कतर ने भी अपनी रणनीति बदली है. अब वह विनिर्माण, निर्माण, वित्त और पर्यटन जैसे दूसरे क्षेत्रों में भी ज्यादा निवेश कर रहा है.

मध्यपूर्व का विवादित ‘स्विट्जरलैंड'

कतर ने खुद की पहचान वैश्विक संघर्षों के मध्यस्थ के तौर पर स्थापित कर ली है. उसे एक तटस्थ देश माना जाता है. अपनी आर्थिक ताकत और अलग-अलग देशों के साथ अच्छे संबंधों के कारण, उसकी तुलना स्विट्जरलैंड से की जाती है.

कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में अमेरिका और कतर के बीच अच्छे संबंध रहे हैं. मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा कतर में ही है. कतर ने हाल ही में चल रहे इस्राएल-हमास संघर्ष में महत्वपूर्ण राजनयिक मध्यस्थ की भूमिका निभाई है. इसे रूस-यूक्रेन वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए एक संभावित पुल के रूप में भी देखा जा रहा है.

हालांकि, इसने निर्वासन में रह रहे हमास के नेतृत्व के लिए एक राजनीतिक ठिकाना भी उपलब्ध कराया है, जिन पर हाल ही में इस्राएल ने हमला किया था. कतर ने पहले भी अपने पड़ोसी खाड़ी देशों को नाराज किया है, क्योंकि उसने ईरान और दूसरे इस्लामी समूहों के साथ बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की थी, जिनका उसके पड़ोसी देश विरोध करते थे.

इन सबके बीच, संघर्षों को सुलझाने में इसका रिकॉर्ड लगातार बेहतर हो रहा है. यहां तक कि अफ्रीका में भी, यह एक वैश्विक ‘शांति साझेदार' के तौर पर अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है.

एक तरफ कतर वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसे मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा है. आलोचकों का आरोप है कि कतर में राजनीतिक दमन होता है और नागरिकों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यह भी पाया है कि कतर सरकार और वहां की संस्थाओं ने प्रवासी कामगारों के अधिकारों का उल्लंघन किया है. इसके अलावा, वहां लिंग और सेक्सुअलिटी के आधार पर भी भेदभाव होता है.

दोहा का लुसैल स्टेडियम
कतर ने खेल आयोजनों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा हैतस्वीर: David Ramos/Getty Images

लंबे समय से सॉफ्ट पावर बनने का प्रयास कर रहा है कतर

कतर ने अपनी संस्कृति, कूटनीति और मानवीय मदद के जरिए दुनिया में अपनी पहचान एक प्रभावशाली ‘सॉफ्ट पावर' के तौर पर बनाई है. इन्हीं कोशिशों के तहत उसने खेल, खासकर फुटबॉल में एंट्री की. 2022 केफीफा विश्व कप की मेजबानी करने के अलावा, उसने कई प्रमुख खेल कंपनियों में भी काफी निवेश किया है. मसलन, एफसी बार्सिलोना की जर्सी को स्पॉन्सर करने से लेकर पेरिस सेंट-जर्मेन की ज्यादातर हिस्सेदारी खरीदने तक.

कतर ने कई बड़े खेल कार्यक्रम करवाए हैं. जैसे, प्रो साइकिलिंग रेस, कतर ओपन महिला टेनिस टूर्नामेंट और फॉर्मूला वन ग्रां प्री. यह 2036 में होने वाले ओलंपिक खेलों की मेजबानी की दावेदारी करने की भी तैयारी में है.

बड़ी खेल कंपनियों में कतर के निवेश को ‘स्पोर्ट्स वॉशिंग' का एक प्रयास माना जाता है. यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें देश अपनी राजनीतिक और सामाजिक आलोचनाओं के बावजूद, अपनी छवि सुधारने के लिए लोकप्रिय सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेलों का आयोजन करते हैं.

खेलों के साथ-साथ, कतर ने अपने देश में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है, ताकि पश्चिमी देशों के लोग यहां घूमने आ सकें.

कतर ने एक बड़ा वैश्विक मीडिया साम्राज्य भी स्थापित किया है. इसमें अल जजीरा जैसा सरकारी चैनल शामिल है. साथ ही, इसका बीईआईएन मीडिया ग्रुप भी है जो दुनिया की सबसे बड़ी फुटबॉल प्रतियोगिताओं के प्रसारण का अधिकार रखता है. इसके अलावा, यह प्रसिद्ध टीवी स्टूडियो मिरामैक्स में भी एक प्रमुख शेयरधारक है.