पुतिन की घोषणा, विजय दिवस पर होगा तीन दिन तक युद्धविराम
२८ अप्रैल २०२५रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार (28 अप्रैल) को एक चौंकाने वाला एलान किया. उन्होंने यूक्रेन के साथ जारी युद्ध में तीन दिनों के युद्धविराम की घोषणा की है, जो अगले महीने 8 मई से 10 मई तक चलेगा.
यह युद्धविराम सोवियत संघ और उसके सहयोगियों की द्वितीय विश्व युद्ध में जीत की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर घोषित किया गया है.
रूसी सरकार ने यूक्रेन से भी इस युद्धविराम में शामिल होने का आह्वान किया है. साथ ही, यह चेतावनी भी दी है कि यदि यूक्रेन ने इसका उल्लंघन किया, तो रूसी सेना "उचित और प्रभावी जवाब" देगी.
इस युद्धविराम के एलान का वक्त सिर्फ संयोग नहीं है. रूस में विजय दिवस यानी 9 मई, केवल एक छुट्टी नहीं बल्कि राष्ट्रीय पहचान का केंद्रीय स्तंभ है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस स्मृति को जीवित रखना पुतिन के लिए सिर्फ इतिहास की बात नहीं, बल्कि एक सटीक राजनीतिक रणनीति भी हो सकती है.
विजय दिवस: रूसी पहचान की आत्मा
9 मई को रूस में विजय दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. रेड स्क्वैयर पर विशाल सैन्य परेड से लेकर छोटे-छोटे शहरों तक में रैलियां और समारोह आयोजित होते हैं. यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति का जश्न 8 मई को मनाया जाता है, लेकिन रूस में टाइम डिफरेंस के कारण यह 9 मई को मनाया जाता है.
पिछले साल मनाए गए विजय दिवस के पहले 'पोलिटिको' वेबसाइट पर एक लेख में 'कार्नेज रशिया यूरेशिया सेंटर' के सीनियर फेलो आंद्रेई कोलेसनिकोव ने कहा, "कई रूसी नागरिकों के लिए विजय दिवस उनकी पहचान के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. जब से सोवियत नेता लियोनिद ब्रेजनेव ने 1965 में इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया, तब से यह वार्षिक राष्ट्रव्यापी आयोजन 'राष्ट्र को जोड़ने वाला गोंद' बन गया है.”
व्लादिमीर पुतिन के सत्ता में आने के बाद से विजय दिवस को और भी ज्यादा भव्य और महत्वपूर्ण बना दिया गया है. दूसरे विश्व युद्ध को 'महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध' बताते हुए इसमें मिली जीत को उन्होंने राष्ट्रीय गौरव, बलिदान और नैतिक श्रेष्ठता की कहानी के रूप में पेश किया है. यह एक ऐसा संदर्भ है, जो देशभक्ति को हवा देता है और सरकार के प्रति निष्ठा को मजबूत करता है. जैसे रूस ने स्टालिनग्राद की लड़ाई को यूक्रेन हमले से जोड़ दिया.
इतिहासकार और लेखिका जेड मैकग्लिन कहती हैं, "2012 में पुतिन के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद से क्रेमलिन ने 'महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध' को रूसी पहचान और राजनीति के केंद्र में स्थापित कर दिया है.”
यूक्रेन के साथ युद्धविराम के पीछे क्या मंशा
विशेषज्ञों का मानना है कि यह युद्धविराम केवल मानवीयता का प्रतीक नहीं, बल्कि गहरी राजनीतिक गणना का हिस्सा है. पुतिन के नेतृत्व में द्वितीय विश्व युद्ध की स्मृति का इस्तेमाल एक शक्तिशाली हथियार के रूप में किया गया है. विजय दिवस अब एक ऐसा आयोजन बन गया है, जिसे कुछ आलोचक "विजय उन्माद" (रूसी भाषा में पोबेदोबेसिए) भी कहते हैं. एक अतिरंजित राष्ट्रवाद, जो सैन्य ताकत को महिमामंडित करता है.
इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो यह युद्धविराम रूस को एक नैतिक आधार पर खड़ा करने की कोशिश भी हो सकता है. कुछ आलोचक इसे एक संदेश देने की कोशिश मानते हैं कि जिस तरह सोवियत सेना ने फासीवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उसी तरह आज भी रूस "सही पक्ष" है.
'रशिया पोस्ट' अखबार में लेवादा सेंटर के एलेक्सी लेविन्सन लिखते हैं, "पिछले दो वर्षों में हुई घटनाओं को अधिकांश रूसी सकारात्मक रूप से देखते हैं. सहानुभूति के साथ नहीं, लेकिन उन्हें कोई नुकसान भी नहीं मानते. लगभग तीन चौथाई रूसी नागरिकों ने किसी-न-किसी रूप में यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया है और कर रहे हैं. 'विशेष सैन्य अभियान' के संदर्भ में उनका मुख्य भाव है, 'रूस पर गर्व."
रणनीतिक लाभ भी छिपे हैं?
केवल प्रतीकात्मकता ही नहीं, बल्कि इस युद्धविराम से रूस को व्यावहारिक सैन्य लाभ भी मिल सकते हैं. इससे रूसी सेना को सैनिकों को इधर-उधर भेजने, रसद आपूर्ति को सुदृढ़ करने और नई सैन्य योजनाओं के लिए स्थिति बदलने का मौका मिल सकता है. साथ में, खुद को दुनिया के आगे "शांति प्रेमी" भी दिखाया जा सकेगा.
यूक्रेन के सामने मुश्किल है. अगर वह युद्धविराम का पालन करता है, तो रूस को तैयार होने का समय मिल सकता है; अगर नहीं करता, तो दोषारोपण का खतरा है.
रूस पर पहले भी ऐतिहासिक अवसरों के राजनीतिक उपयोग का आरोप लगता रहा है. 2008 में जॉर्जिया संकट के दौरान, और 2014 में क्रीमिया के अधिग्रहण के समय भी सोवियत बलिदानों का उल्लेख करके रूस ने अपने कार्यों को उचित ठहराने की कोशिश की थी.
पुतिन बार-बार अतीत की गौरवगाथा का सहारा लेकर आज की राजनीति को वैधता प्रदान करने की कोशिश करते हैं. विश्लेषक मानते हैं कि यह एक ऐसी रणनीति है, जो रूसी जनता के भावनात्मक इतिहास बोध को छूती है.