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तीन अरब लोगों के पास नहीं होगा पीने का पानीः रिपोर्ट

७ फ़रवरी २०२४

अगर हालात में जल्दी बदलाव नहीं हुआ तो 2050 तक तीन अरब लोग ऐसे होंगे जो पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे होंगे. यूएन की एक ताजा रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है.

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जल प्रदूषण
तीन अरब लोगों के पास नहीं होगा पीना के पानीतस्वीर: DW

इस सदी के मध्य तक दुनिया में लगभग तीन अरब लोग ऐसे होंगे जिनके पास पीने का साफ पानी नहीं होगा. शोधकर्ताओं ने एक विस्तृत अध्ययन के बाद कहा है कि नदियां इतनी दूषित हो चुकी होंगी कि उनका पानी इंसान और वन्य जीवों के लिए ‘असुरक्षित' हो जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान पर काम करने वाली समिति ने मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि साल में कम से कम एक महीना ऐसा होता है जब दुनिया की लगभग आधी आबादी जल संकट का सामना करती है. रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती मांग और ग्लोबल वॉर्मिंग वैश्विक स्तर पर पानी की सप्लाई के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां हैं.

प्रदूषण ज्यादा बड़ी समस्या

उधर, जर्मनी और नीदरलैंड्स के वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन इलाकों में पानी की कमी का संकट पैदा हो रहा है, वहां नाइट्रोजन प्रदूषण एक बड़ी समस्या है.

वेजनिंगनग यूनिवर्सिटी एंड रिसर्च द्वारा हुई रिसर्च के मुख्य शोधकर्ता मेंगरू वांग कहते हैं, "आमतौर पर लोग पानी की कमी के बारे में ज्यादा परेशान होते हैं कि समुचित पानी उपलब्ध है या नहीं. लेकिन हमने पाया है कि जल प्रदूषण एक लगातार बढ़ती समस्या है जिसके कारण पानी कुदरत और इंसानों के लिए असुरक्षित हो रहा है.”

इंसानी गतिविधियों के कारण बड़े पैमाने पर नाइट्रोजन, पैथोजन्स, केमिकल्स और प्लास्टिक जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं. खासतौर पर खेती में इस्तेमाल होने वाली खाद जल स्रोतों में काई जमा करती है जिससे ना सिर्फ जलीय जीवन को नुकसान पहुंचता है बल्कि पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है.

दोगुनी मात्रा में प्रदूषण

नया अध्ययन नेचर कम्यूनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन में दुनियाभर में नदियों का आकलन किया गया है, जो शहरी आबादी और आर्थिक गतिविधियों के लिए पानी की मुख्य स्रोत हैं.

इस शोध के लेखकों ने कंप्यूटर मॉडलिंग का इस्तेमाल किया है. उन्होंने पाया कि नदी बेसिन की छोटी ईकाइयां, जिन्हें सब-बेसिन कहा जाता है, वे 2010 के अनुमान से दो गुना ज्यादा मात्रा में पानी की कमी का सामना कर रही हैं और आने वाले समय में यह स्थिति और खराब हो सकती है.

इस नदी में नमक से मर रही हैं मछलियां

जब नाइट्रोजन प्रदूषण के आधार पर आकलन किया गया तो पाया गया कि 2010 में 2,517 सब-बेसिन ऐसे थे जिनमें पानी की कमी हो रही थी. पारंपरिक माध्यमों से किए गए आकलन से यह संख्या सिर्फ 984 थी.

वैज्ञानिक कहते हैं कि 2050 तक यह संख्या 3,061 तक पहुंच सकती है, जिसका असर 6.8 से 7.8 अरब लोगों पर पड़ सकता है. यह संख्या पहले के आकलन से करीब तीन अरब ज्यादा है.

कुछ उम्मीद है, मगर...

शोध के सह-लेखक बेन्यामिन बोडिरस्की पॉट्सडम इंस्टिट्यूय फॉर क्लाइमेट इंपेक्ट रिसर्च में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं. वह कहते हैं कि तीन अलग-अलग परिदृश्यों में मॉडलिंग के आकलन से पाया गया कि "अभी हमारे पास विकल्प हैं और स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है.”

लेकिन बोडिरस्की ने साथ ही यह भी कहा कि अगर सबसे सकारात्मक परिदृश्य को भी आधार बनाया जाए और तो भी नाइट्रोजन प्रदूषण काफी ऊंचे स्तर पर बना रहेगा.

बोडिरस्की कहते हैं, "पानी की स्थिति को खराब होने से रोका जा सकता है और कुछ हद तक उसे बेहतर भी बनाया जा सकता है. इसके लिए ज्यादा सक्षम खाद का इस्तेमाल करना होगा और शाकाहार को प्रोत्साहित करना होगा और अधिकतर वैश्विक आबादी को जल संसाधन की सुविधाओं से जोड़ना होगा.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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