अमेरिकी वीजा प्रतिबंध पर ईयू और फलस्तीन की कड़ी आपत्ति
३१ अगस्त २०२५अमेरिका के फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और फलस्तीनी अथॉरिटी (पीए) के लगभग 80 प्रतिनिधियों के वीजा रद्द किए जाने के फैसले ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. यूरोपीय संघ (ईयू) और फलस्तीनी नेतृत्व ने वॉशिंगटन से इस निर्णय को तुरंत पलटने की अपील की है.
शनिवार को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने घोषणा की कि राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका फलस्तीनी अधिकारियों के मौजूदा वीजा रद्द कर रहा है और नए वीजा जारी नहीं करेगा. विदेश विभाग के मुताबिक इसमें अब्बास भी शामिल हैं, जो वर्षों से संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की सालाना बैठक में फलस्तीन का प्रतिनिधित्व करते आए हैं. यह फैसला अगले महीने होने वाली उच्चस्तरीय बैठक और 22 सितंबर को फ्रांस और सऊदी अरब की मेजबानी में होने वाले "टू-स्टेट सॉल्यूशन” सम्मेलन से पहले लिया गया है.
रामल्ला से राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता नबील अबू रुदेनेह ने कहा कि यह फैसला तनाव और टकराव ही बढ़ाएगा और इसे तुरंत पलटा जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि फलस्तीनी नेतृत्व लगातार अरब और अन्य देशों से संपर्क में है और अमेरिकी प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए चौबीसों घंटे प्रयास जारी हैं. साथ ही उन्होंने गाजा और वेस्ट बैंक में बढ़ती हिंसा को खत्म करने की भी मांग की.
यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यूरोपीय संघ ने भी इस फैसले को अस्वीकार्य बताया है. ईयू की विदेश नीति प्रमुख काया कालास ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय और अमेरिका के बीच के समझौतों को देखते हुए इस फैसले पर दोबारा विचार होना चाहिए. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-नोएल बैरो ने भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय शांति की सेवा में एक पवित्र स्थान है और इसे किसी भी तरह के प्रवेश प्रतिबंधों का शिकार नहीं होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता स्टेफाने दुजारिक ने कहा कि अमेरिका से इस फैसले पर सफाई मांगी जाएगी.
तकनीकी रूप से न्यूयॉर्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय अमेरिकी भूभाग से अलग विशेष दर्जा रखता है, लेकिन वहां पहुंचने के लिए प्रतिनिधियों को अमेरिकी सीमा से होकर गुजरना पड़ता है. वीजा रद्द होने की स्थिति में अब्बास और उनकी टीम के लिए न्यूयॉर्क की यात्रा असंभव हो जाएगी.
संकट में सम्मेलन
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब इस्राएली सेना ने गाजा शहर को "युद्ध क्षेत्र” घोषित किया है और उसे अब भी हमास का गढ़ बताया है. ट्रंप प्रशासन पहले भी फलस्तीनियों पर वीजा प्रतिबंध लगा चुका है, लेकिन सीधे राष्ट्रपति अब्बास को निशाना बनाना एक असामान्य और अत्यधिक राजनीतिक निर्णय माना जा रहा है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस विवाद का असर आने वाली महासभा और फलस्तीन मुद्दे पर विशेष अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन पर पड़ेगा. फलस्तीनी प्रतिनिधियों की गैरहाजिरी में "टू स्टेट सॉल्यूशन” पर किसी ठोस पहल की संभावना कमजोर हो सकती है. यूरोपीय देश संकेत दे चुके हैं कि वे अमेरिका पर दबाव डालेंगे ताकि अब्बास और उनकी टीम न्यूयॉर्क की बैठकों में शामिल हो सकें.