परंपरा, रफ्तार और उत्साह का संगम है पाकिस्तान में सांडों की दौड़
पाकिस्तान के पूर्वी पंजाब में हर साल हजारों लोगों की भीड़ धूल भरे मैदान के बीच सांडों की दौड़ देखने के लिए इकट्ठे होती है. इस पारंपरिक खेल में शक्ति और गौरव का प्रदर्शन किया जाता है.
सांडों की दौड़
पाकिस्तान के अटोक जिले के मलाल गांव में गुर्राते हुए सांडों को देखकर कोई भागता नहीं है. बल्कि लोग उनके साथ-साथ दौड़ते हैं. दो ताकतवर सांड, लकड़ी के मोटे ढांचे के साथ धूल भरे खेतों में गरजते हुए दौड़ते हैं. उनके पीछे एक आदमी लकड़ी की पट्टी पर घुटनों के बल बैठा होता है. जो केवल रस्सियों और अपनी हिम्मत के भरोसा होता है. सांडों की दौड़ ना सिर्फ हिम्मत की परीक्षा, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा भी है.
और दौड़ शुरू!
दौड़ शुरू होते ही, सवार अपने सांडों के जोड़े को मजबूती से पकड़ लेते हैं. यह नजारा देखने के लिए सैकड़ों लोग गांव में जमा हो जाते हैं. इसे अच्छे से देखने के लिए बच्चे तो पेड़ों पर चढ़ जाते हैं. सांडों को हांकने वाला एक लकड़ी के फट्टे पर संतुलन साध कर बैठता है.
परंपरा में सवारों की भूमिका
सवार अपना संतुलन बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगाते हैं. गिरने से बचने के लिए वह बस अपने शरीर की ताकत का सहारा लेते हैं. हालांकि, कई बार प्रतिभागी गिर भी जाते हैं, जिसके बाद वह धूल में घिसटते जाते हैं. लेकिन दर्शक फिर भी तालियों से उनका स्वागत करते हैं, खासकर जो दोबारा उठकर फिर से कोशिश करते हैं.
रंग बिरंगी सजावट
सांडों के सींग रंग-बिरंगी रिबन, घंटियों और यहां तक कि मेहंदी से भी सजाए जाते हैं. दुकानदार रास्ते के किनारे रंग-बिरंगा सामान बेचते हैं. सुन्दर सा सजा हुआ सांड ताकत का प्रतीक माना जाता है. और यह भी दिखाता है कि उसका मालिक इस मुकाबले को लेकर कितना गंभीर है.
मेला और नाच-गाना
यह दौड़ सिर्फ एक मुकाबला नहीं, बल्कि एक त्योहार होता है. मिठाई वाले गर्म जलेबी बनाते हैं, ढोल बज रहे होते हैं, लोग नाचते हैं और लोग ट्रैक के किनारे खाते-पीते दौड़ का मजा लेते हैं. यहां के जज भी इस भीड़ का ही हिस्सा होते हैं. वह विजेताओं को चुनते हैं, इनाम देते हैं और यह भी देखते हैं कि नियमों का पालन हो रहा है या नहीं.
‘गौरव का प्रतीक’
सरदार हसीब बचपन से इस दौड़ को जानते हैं. उनका परिवार पीढ़ियों से इस परंपरा का हिस्सा रहा है. उन्होंने एसोसिएटेड प्रेस से कहा, “हमें अपने जानवरों पर गर्व है. किसान और जमींदार पूरे साल अपने सांडों की देखभाल सिर्फ इसी पल के लिए करते हैं. लोग विजेता सांड के लिए भारी कीमत देने को तैयार रहते हैं. वह सांड हमारे लिए गौरव का प्रतीक होता है.
जीत का जश्न
जीत का पल एकदम जोश भरा होता है. दौड़ में हिस्सा लेने वाली टीमें नाचती हैं या अपने सांडों को चूमती हैं. यह जश्न सिर्फ सवार तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सांड के मालिक और पूरे गांव में फैल जाता है. यह साल का सबसे बड़ा खुशी का मौका होता है.
परंपरा या आधुनिकता
जीत के बाद टीम वाले हवा में नोट उड़ाते हैं. वर्षों से समाज में कई तरह के बदलाव आए हैं और पाकिस्तान के बड़े शहरों में अब क्रिकेट बेहद लोकप्रिय हो रहा है. हालांकि सांड दौड़ आज भी एक अनूठी परंपरा बनी हुई है.