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क्या पाकिस्तान कस सकेगा बलोच विद्रोहियों की लगाम?

हारून जंजुआ
१३ मार्च २०२५

हाल के सालों में बलूचिस्तान में अलगाववादियों ने कई हमले किए हैं. ट्रेन हाइजैक की इस नई घटना के बाद विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की सुरक्षा पर इसका काफी ज्यादा असर पड़ेगा. जानिए क्या हैं पाकिस्तान के विकल्प.

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पाकिस्तान के रेलवे स्टेशन पर तैनात सैनिक
बंधक बनाए गए ट्रेन में सवार यात्रियों को बलोच अलगाववादियों से छुड़ाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने लंबी और हिंसक कार्रवाई कीतस्वीर: Banaras Khan/AFP

पाकिस्तान में बलोच अलगाववादियों ने मंगलवार को क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस पर हमला करके उसे अपने कब्जे में ले लिया था. इस ट्रेन में 425 यात्री सवार थे. इस घटना के बाद यात्रियों को बलोच अलगाववादियों से छुड़ाने के लिए पाकिस्तानी सेना की तरफ से कार्रवाई की गई है और कई लोगों के मारे जाने की खबर है. इस घटना के बाद पाकिस्तान में तेजी से बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था सबकी नजरों के सामने आ गई है. 

पाकिस्तान: हाइजैक हुई ट्रेन से 155 बंधक छूटे, 27 चरमपंथियों की मौत

पाकिस्तानी अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि विद्रोही हमला समाप्त हो गया है. दिन भर चली कार्रवाई के बाद 50 से अधिक हमलावर मारे गए हैं. हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि कितने बंधकों को सुरक्षित बचा लिया गया है.

इस क्षेत्र के सबसे बड़े चरमपंथी समूह ‘बलोच लिबरेशन आर्मी' (बीएलए) ने हमले की जिम्मेदारी ली है. समूह के एक प्रवक्ता ने पहले कहा था कि अगर अधिकारी जेल में बंद चरमपंथियों को रिहा करने पर सहमत होते हैं तो वे यात्रियों को रिहा करने के लिए तैयार हैं.

सुरक्षा से जुड़ी गंभीर चुनौतियां

वाशिंगटन स्थित स्टिम्सन सेंटर में दक्षिण एशिया कार्यक्रम की निदेशक एलिजाबेथ थ्रेलकेल्ड ने कहा कि बीएलए ने नागरिकों को निशाना बनाते हुए इतना बड़ा हमला किया है, जो कि वाकई में चिंताजनक है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह बहुत बड़ा हमला है और पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर इसका लंबे समय तक असर रहेगा.”

उन्होंने आगे कहा, "इस समूह का इस तरह और इतने बड़े पैमाने पर हमला कर पाना, बलूचिस्तान में खुफिया और सुरक्षा स्थिति से जुड़ी गंभीर चुनौतियों को दिखाता है.” इस्लामाबाद स्थित सिक्योरिटी थिंक टैंक सनोबर इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक कमर चीमा भी एलिजाबेथ की बातों से सहमत हैं.

उन्होंने कहा, "यह वाकई में एक बड़ा हमला है, जो दिखाता है कि बीएलए ने पहली बार अपनी रणनीति बदली है. ट्रेन हाइजैक करना इस चरमपंथी समूह की एक नई चाल है, जिससे पाकिस्तानी सरकार और उसके नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के लिए उसकी बढ़ी हुई खुफिया जानकारी और ताकत का पता चलता है.”

बलूचिस्तान में सशस्त्र विरोध के पीछे क्या कारण

बलूचिस्तान प्रांत पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यहां लगभग 90 लाख बलोच लोग ही रहते हैं. अल्पसंख्यक सुन्नी मुस्लिम जातीय समूह बलोच का कहना है कि केंद्र सरकार उनके साथ भेदभाव करती है और उनका शोषण करती है.

वे बताते हैं कि बलूचिस्तान में सोना, हीरा, चांदी और तांबा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का भंडार होने के बावजूद यह समुदाय देश के सबसे गरीब समुदायों में से एक है.

ये लोग कई दशकों से पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं और खुद का आजाद देश बनाना चाहते हैं. हालांकि, आजादी या अलग होने की इनकी कोशिशों को पाकिस्तान ने जोर-जबरदस्ती से दबाया है. बलोच हथियारबंद गुट भी पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं.

पिछले कुछ वर्षों में, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत इस इलाके में बढ़ते चीनी निवेश को लेकर बलोच लोगों में गुस्सा है. बीएलए और अन्य अलगाववादी समूह आरोप लगाते हैं कि चीन उनके संसाधनों और जमीन का दोहन कर रहा है. उन्हें डर है कि चीनी निवेश और मजदूरों के आने से बलोच लोग और भी हाशिए पर चले जाएंगे.

बीएलए चरमपंथियों ने इस क्षेत्र में सीपीईसी और चीनी मजदूरों को निशाना बनाकर भी हमले किए हैं.

तेजी से बढ़ रहा संघर्ष

एलिजाबेथ थ्रेलकेल्ड ने कहा कि बलूचिस्तान की स्थिति ‘जटिल और गहरी जड़ें जमाए हुए है' और कई वजहों से इस इलाके में हिंसा बढ़ रही है. उन्होंने ‘चरमपंथियों की बदलती रणनीति, राजनीतिक बहिष्कार और संसाधनों के दोहन पर स्थानीय लोगों की नाराजगी के साथ ही तेज होती सैन्य अभियानों के प्रति जवाबी कार्रवाई' की ओर इशारा किया.

अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर क्यों निकाल रहा है पाकिस्तान

चीमा का मानना है कि विभिन्न बलोच चरमपंथी समूहों और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) नामक पाकिस्तानी तालिबान जैसे संगठनों के बीच बढ़ते सहयोग के कारण बलूचिस्तान में संघर्ष तेज हो रहा है.

उन्होंने कहा, "जातीय और इस्लामी चरमपंथियों का यह गठजोड़ बढ़ रहा है और गंभीर असर डाल रहा है, जिससे हिंसा और ज्यादा बढ़ रही है. साथ ही, ऐसा लगता है कि राजनीतिक व्यवस्था को सामाजिक समर्थन नहीं मिल रहा है. ऐसे में, मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लोगों का भरोसा कम होने से चरमपंथी गुटों को हमला करने का हौसला मिल रहा है.”

इसी तरह के विद्रोह की वजह से पड़ोसी ईरान के बलूचिस्तान क्षेत्र में भी हमले शुरू हो गए हैं. ईरान-पाकिस्तान सीमा के दोनों तरफ के विद्रोहों ने दोनों देशों को परेशान कर दिया है. दोनों सरकारें एक-दूसरे पर सीमा के दूसरी ओर सक्रिय कुछ समूहों का समर्थन करने या उन्हें बर्दाश्त करने का शक करती हैं.

जनवरी 2024 में, ईरान और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के सीमावर्ती इलाकों में विद्रोहियों को निशाना बनाते हुए जवाबी हवाई हमले किए थे. हालांकि, बाद में दोनों पक्षों ने तुरंत बातचीत के जरिए स्थिति को शांत कर लिया.

अब क्या किया जा सकता है?

पाकिस्तानी अधिकारियों का अनुमान है कि बीएलए के पास लगभग 3,000 लड़ाके हैं. चीमा ने कहा कि जातीय सशस्त्र समूह से निपटने के लिए हथियारों और अन्य उपकरणों की सप्लाई को रोकना होगा. इसके लिए खुफिया जानकारी जुटाना बहुत जरूरी है. साथ ही, घुसपैठियों और उनके समर्थकों की पहचान करना भी जरूरी है.

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वहीं, थ्रेलकेल्ड ने कहा कि उग्रवाद को खत्म करने के लिए अलग-अलग तरह के दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत है. उन्होंने बताया, "सिर्फ सुरक्षा अभियान चलाने से स्थिरता नहीं आएगी. अगर स्थानीय लोगों को यह महसूस होता है कि उनके प्रांत के शासन में उन्हें पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं दी जा रही है या उनकी राय नहीं ली जा रही है, तो इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है.”

उन्होंने आगे कहा, "इसमें लंबे समय से चली आ रही उन नाराजगी और शिकायतों को दूर करना भी शामिल है जिनकी वजह से स्थानीय स्तर पर अलगाव बढ़ा है. इनमें स्थानीय लोगों को जबरन गायब करना भी शामिल है.”