12 तारीखों के बावजूद कफील खान की जमानत पर सुनवाई नहीं
२४ अगस्त २०२०कोर्ट ने अगली सुनवाई में मूल दस्तावेज कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं जिनके आधार पर कफील खान पर रासुका लगाई गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने डॉ. कफील अहमद खान की मां नुजहत परवीन की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर यह फैसला दिया है. सीएए को लेकर भड़काऊ बयानबाजी करने के आरोप में जिलाधिकारी अलीगढ़ ने 13 फरवरी 2020 को कफील खान को रासुका में निरुद्ध करने का आदेश दिया था.
कफील खान को इसी साल जनवरी में यूपी एसटीएफ ने मुंबई से गिरफ्तार किया था और मथुरा जेल में बंद कर दिया था. हालांकि कुछ दिन बाद ही उनकी जमानत मंजूर हो गई थी और अदालत ने उन्हें रिहा करने के निर्देश भी दे दिए थे. लेकिन मथुरा जेल से उनकी रिहाई होने में तीन दिन का वक्त लग गया और इस बीच, राज्य सरकार ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए की धाराएं लगा दीं.
बच्चों की मौत मामले से चर्चा में आए थे
कफील खान तीन साल पहले गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले से चर्चा में आए थे. इस मामले में भी उन्हें एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था लेकिन लंबी जांच-पड़ताल के बाद उन्हें इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई. पिछले साल दिसंबर में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान समाजशास्त्री योगेंद्र यादव के साथ कफील खान भी प्रदर्शनकारियों के समर्थन में गए थे. वहां उन्होंने जो भाषण दिया, उसके आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था और बाद में गिरफ्तार किया गया.
डॉक्टर कफील खान के भाई अदील अहमद बताते हैं कि एनएसए के तहत उन पर कार्रवाई और सीजेएम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद गिरफ्तारी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है लेकिन अब तक उन्हें जमानत नहीं मिल सकी है. अदील अहमद के मुताबिक हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई 14 मई से अब तक 12 बार टल चुकी है. 24 अगस्त को भी सुनवाई होनी थी लेकिन अब यह सुनवाई 27 अगस्त को होगी.
सबसे बड़ा सवाल है कि कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद कफील खान की रिहाई में तीन दिन का वक्त कैसे लग गया और जमानत के बाद भी उन पर रासुका कैसे लगा दी गई. कफील के परिजन सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर आरोप लगाते हैं कि राज्य सरकार के इशारे पर यह कार्रवाई हुई है, जबकि कोर्ट का आदेश है कि जमानत मिलने के बाद रासुका नहीं लगाई जा सकती है.
डॉक्टर कफील की पत्नी डॉक्टर शाइस्ता ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण के तहत याचिका दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए इसकी सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही करने के निर्देश दिए थे जिससे यह मामला यहां ट्रांसफर हो गया. लेकिन डॉक्टर के परिजनों के मुताबिक, सरकारी वकील किसी न किसी तकनीकी कमी का हवाला देकर कोर्ट से अगली तारीख ले लेते हैं.
रासुका कैसे लगाई गई?
इस दौरान राज्य सरकार एनएसए अवधि को दो बार बढ़ा चुकी है. यानी डॉक्टर कफील को एनएसए के तहत सितंबर तक जेल में रहना पड़ेगा. इस बीच, यदि हाईकोर्ट से जमानत मिल जाती है तो वे रिहा हो सकते हैं.
पूरे मामले के बारे में डॉक्टर कफील के भाई अदील खान कहते हैं, "दस फरवरी को शाम चार बजे कोर्ट ने कफील खान को तत्काल रिहा करने के निर्देश दिए थे लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी रिहा नहीं किया गया. जमानत के बाद रासुका तामील नहीं की जा सकती, ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. डॉक्टर कफील के खिलाफ जो भी मामले हैं, सभी में उनको जमानत मिल चुकी है. फिर भी रासुका कैसे लगाई गई, यह समझ से परे है."
अलीगढ़ जिला प्रशासन इस मामले में सिर्फ यही कहता है कि उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज किया गया है और अब हाईकोर्ट ही इस बारे में सही गलत का फैसला करेगा. लेकिन इस मामले में सरकारी वकील मनीष गोयल कहते हैं, "एनएसए बढ़ाने की संस्तुति एडवाइज़री बोर्ड करती है. यह सरकार का फैसला नहीं होता है. एडवाइज़री बोर्ड में वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञ होते हैं. एनएसए सिर्फ तीन महीने के लिए होता है और हर बार बढ़ाने का फैसला एडवाइज़री बोर्ड की स्वीकृति से ही होता है. कफील खान के मामले में एनएसए दो बार बढ़ाया जा चुका है. इसका मतलब आरोप में गंभीरता होगी तभी ऐसा हुआ है.”
राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा?
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए सरकार को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में रखने की ताकत देता है. इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को एक साल तक जेल में रखा जा सकता है. हालांकि तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी पड़ती है. रासुका उस स्थिति में लगाई जाती है, जब किसी व्यक्ति से राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा हो या फिर कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका हो.
इस दौरान जेल में बंद रहते हुए डॉक्टर कफील ने एक पत्र भी लिखा था जो मीडिया में काफी चर्चित रहा था. इस पत्र में उन्होंने जेल के भीतर की कथित अमानवीय स्थितियों का जिक्र किया था. पत्र में डॉक्टर कफील ने लिखा था कि 150 कैदियों के बीच में सिर्फ एक शौचालय है, जहां सामान्य स्थितियों में कोई अंदर भी नहीं जा सकता है.
डॉक्टर कफील की रिहाई के लिए पिछले दिनों सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाया गया था और महज कुछ घंटों में एक लाख से भी ज्यादा ट्वीट किए गए थे. कुछ दिन पहले लखनऊ में कुछ वकीलों ने भी उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किया था. पिछले हफ्ते यूपी विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने सदन के भीतर डॉक्टर कफील की रिहाई की मांग की थी.
कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक सेल ने कफील की रिहाई के लिए प्रदेशव्यापी अभियान भी चला रखा है जिसके तहत 15 दिनों तक घर-घर जाकर रिहाई के लिए हस्ताक्षर अभियान, सोशल मीडिया अभियान, मजारों पर चादरपोशी, रक्तदान और कुछ अन्य कार्यक्रम आयोजित किए थे.
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