उपराष्ट्रपति पद पर एनडीए उम्मीदवार की जीत के मायने क्या हैं?
९ सितम्बर २०२५एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने दिलचस्प मुकाबले में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डो को 152 वोटों के अंतर से हराकर उपराष्ट्रपति पद का चुनाव जीत लिया है. मंगलवार को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले जबकि सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ 300 वोट ही मिल सके.
मतगणना शाम छह बजे शुरू हुई और करीब एक घंटे बाद निर्वाचन अधिकारी पीसी मोदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव नतीजों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कुल 767 सांसदों ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान किया जिनमें 752 मत वैध जबकि 15 वोट अमान्य करार दिए गए.
उपराष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य मतदान करते हैं. कुल 788 मतदाता हैं, जिनमें से 7 सीटें खाली थीं. इसलिए कुल 781 निर्वाचक थे जिनमें मतदान करने वाले 767 सांसद थे. कुल 98.2 फीसद मतदान रहा. बीजेडी के सात, बीआरएस के चार, अकाली दल के एक और पंजाब के दो निर्दलीय सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई.
दिलचस्प था मुकाबला
संख्या बल के हिसाब से एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का जीतना तय माना जा रहा था, लेकिन बी सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया था. अटकलें यहां तक थीं कि क्रॉस वोटिंग भी हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्रॉस वोटिंग यदि हुई भी तो एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में.
इंडिया गठबंधन की ओर से कल तक दावा किया गया था उसके पास 324 सांसदों का समर्थन है और आज मतदान के बाद कांग्रेस पार्टी ने दावा किया कि इंडिया गठबंधन के कुल 315 सांसदों ने मतदान किया है लेकिन बी सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ 300 वोट ही मिले. ऐसे में या तो उनके पक्ष में मिले कुछ वोट अमान्य हो गए हों या फिर क्रॉस वोटिंग हुई होगी.
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, "इस चुनाव का महत्व सिर्फ इतना है कि पिछले दिनों कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में जिस तरह से गृह मंत्री अमित शाह के उम्मीदवार की हार हुई थी, उससे सबक लेते हुए बीजेपी ने अपने पक्ष में सांसदों को लामबंद किए रखा. यानी मोदी और शाह का चुनाव प्रबंधन एक बार फिर सफल साबित हुआ. तो इस लिहाज से तो इन दोनों की राजनैतिक हैसियत अभी मजबूत ही कही जा सकती है. हालांकि वास्तविक हैसियत का पता तो आने वाले दिनों में बिहार विधानसभा चुनाव में चलेगा.”
पिछले दिनों दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में बीजेपी के ही दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था लेकिन संजीव बालियान के पक्ष में सीधे पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह बैटिंग कर रहे थे जबकि राजीव प्रताप रूडी को विपक्ष का समर्थन मिला हुआ था. पूरी कोशिश के बावजूद अमित शाह और जेपी नड्डा संजीव बालियान को चुनाव नहीं जिता पाए और राजीव प्रताप रूडी ने उन्हीं बड़े अंतर से हराया.
ऐसा माना जा रहा था कि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में भी एनडीए के अलावा बीजेपी के भीतर भी क्रॉस वोटिंग हो सकती है. वहीं, बी सुदर्शन रेड्डी के तेलंगाना के होने की वजह से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राजनीतिक पार्टियों से जिस तरह के समर्थन की उम्मीद थी, वो समर्थन उन्हें नहीं मिला. सिर्फ विपक्षी गठबंधन का ही समर्थन वो हासिल कर पाए.
जगदीप धनखड़ को ज्यादा समर्थन मिला था
उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव इसलिए कराने पड़े क्योंकि 21 जुलाई को जगदीप धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. साल 2022 में हुए चुनाव में उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी. तब जगदीप धनखड़ को कुल 725 वोटों में से 528 वोट मिले थे जबकि विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को सिर्फ 182 वोट ही मिले थे.
शरद गुप्ता कहते हैं कि इंडिया गठबंधन की यह उपलब्धि जरूर कही जाएगी कि उन्होंने अपने वोटों को एकजुट रखा और बीजेपी उसमें सेंध नहीं लगा पाई. उनके मुताबिक, "धनखड़ के मुकाबले तो अंतर काफी कम रहा लेकिन तब बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत भी था, गठबंधन के पास भी ज्यादा सांसद थे. इस बार अपने वोटों को तो समेटने में बीजेपी कामयाब रही लेकिन विपक्षी एकता नहीं तोड़ पाई.”
विपक्ष भी इसे अपनी जीत बता रहा है. कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि इंडिया गठबंधन ने ना सिर्फ अपना वोट शेयर बढ़ाया है बल्कि एकता भी कायम रखी है. वो कहते हैं, "नतीजे हमारे पक्ष में नहीं रहे लेकिन हमारे वोट शेयर में 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. पहले यह 26 फीसदी थी जो अब बढ़कर चालीस फीसदी हो गया है. विपक्ष ने कुछ खोया नहीं है बल्कि पाया ही है. जिस तरह का माहौल देश की राजनीति में बना है, उससे ये उम्मीद और बढ़ गई है कि बदलाव जरूर आएगा और जल्द आएगा. सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन विपक्षी एकता में सेंध नहीं लगा पाई. यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है.”
उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में बीजू जनता दल यानी बीजेडी, भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस और शिरोमणि अकाली दल ने चुनाव से दूरी बनाई जिसका फायदा एनडीए को ही मिला क्योंकि जीत का लक्ष्य कम हो गया. जानकारों का कहना है कि कभी एनडीए की समर्थक रही इन पार्टियों का एनडीए से दूरी बनाना भारतीय जनता पार्टी के लिए झटका है. ये दिखाता है कि एनडीए को अब वो समर्थन नहीं हासिल है जो उसे पिछले दस साल से हासिल था.
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार झा लंबे समय से राजनीतिक मामलों और संसद को कवर करते रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं कि बीजेपी, और खासकरपीएम मोदी के खिलाफ इतना माहौल होने के बावजूद यदि अपने उम्मीदवार को एनडीए जिताने में कामयाब रहा तो ये उसकी उपलब्धि कही जाएगी. वो कहते हैं, "इंडिया गठबंधन के पक्ष में देखा जाए तो कुछ नहीं रहा, सिवाय इसके कि उसने एनडीए की तुलना में बेहतर उम्मीदवार दिया था. सीपी राधाकृष्णन हार जाते या फिर एनडीए के जो फिक्स वोट थे, उससे कम वोट उन्हें मिलते, तब तो माना जाता कि इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को शिकस्त दी है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.”