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मानवाधिकारअफगानिस्तान

अफगानिस्तान: युवा महिलाएं घुटन वाले बुर्के से हो रही दूर

२४ मार्च २०२५

अफगानिस्तान में युवा महिलाएं तेजी से पूरी तरह से चेहरा ढकने वाले नीले बुर्के का त्याग कर रही हैं, जिसका जालीदार चेहरा तालिबान द्वारा महिलाओं पर अत्याचार का प्रतीक बन गया है.

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बुर्के में अफगान महिलाएं
बुर्के में अफगान महिलाएंतस्वीर: Wakil Koshar/AFP

2021 में सत्ता में लौटने के बाद से तालिबान ने 1996 से 2001 तक के अपने पिछले शासन की याद दिलाते हुए "कठोर कानून" लागू किए हैं. महिलाओं के लिए अभी भी अपने शरीर और चेहरे को ढकना अब भी अनिवार्य है, लेकिन धार्मिक पुलिस के "सख्त नियमों" में पारंपरिक बुर्के का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है.

इसलिए युवतियां खाड़ी देशों का फैशन अपना रही हैं. कई महिलाएं अबाया को पसंद करती हैं, जिसे हिजाब के साथ पहना जाता है. अबाया में सिर ढका होता और आंखें दिखती हैं. हिजाब दो तरह के होते हैं, एक में पूरा चेहरा नजर आता है, जबकि दूसरे में सिर्फ आंखें दिखती हैं.

राजधानी काबुल की 23 साल की तहमीना आदिल कहती हैं, "नई पीढ़ी बुर्का को कभी स्वीकार नहीं करेगी, और इसकी वजह इसका डिजाइन और रंग है." उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया की वजह से हर कोई नया ट्रेंड का अपना रहा है."

तालिबान के राज में कैसे खाक हुए औरतों के अधिकार

अबाया बन रहा युवा पीढ़ी की पसंद

तालिबान की लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंधों के कारण तहमीना को अपनी अर्थशास्त्र की डिग्री छोड़नी पड़ी. उन्होंने कहा, "मुझे अबाया पहनना पसंद है क्योंकि यह मुझे आरामदायक लगता है."

काबुल और उत्तरी शहर मजार-ए-शरीफ की युवा महिलाओं का कहना है कि अबाया और हिजाब पारंपरिक बुर्के की तुलना में रंग, कपड़ा और डिजाइन के मामले में अधिक आजादी देते हैं. मजार-ए-शरीफ की एक कार्यशाला में बुर्का पर कढ़ाई करने वाली रजिया खलीक कहती हैं, "केवल बुजुर्ग महिलाएं ही अधिकतर बुर्का पहनती हैं."

रजिया खलीक ने भी अपनी मां और दादी की तरह 13 साल की उम्र में बुर्का पहनना शुरू कर दिया था, लेकिन उनकी 20 साल की बेटी अबाया पहनना पसंद करती है.  उन्होंने कहा, "युवा लड़कियां अबाया पहनती हैं क्योंकि यह अधिक आरामदायक है."

कंधार के बाजार में बुर्के की दुकान
अफगानिस्तान में नीले रंग के अलावा अलग-अलग रंग के बुर्के और अबाया बिक रहे हैंतस्वीर: Sanaullah Seiam/AFP

बुर्के का इतिहास और परिवर्तन    

अफगानिस्तान में बुर्के की जड़ें गहरी हैं. पहले तालिबान काल (1996-2001) के दौरान इसे सख्ती से लागू किया गया था और कुछ महिलाओं को बुर्का ना पहनने पर सार्वजनिक रूप से कोड़े भी मारे गए थे. बाद में विदेशी समर्थित सरकार के दौर में अबाया और हिजाब पहनने का चलन बढ़ गया.

जब तालिबान ने 2021 में काबुल पर फिर से कब्जा किया, तो उसने अपने पहले कार्यकाल की तुलना में अधिक लचीलापन दिखाने का वादा किया, जब महिलाओं से लगभग "सभी अधिकार" छीन लिए गए थे. हालांकि, उन्होंने धीरे-धीरे महिलाओं के सार्वजनिक जीवन को अत्यंत सीमित बना दिया है.

शहरी महिलाओं के लिए सामान्य ढीले हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया गया. बिलबोर्ड लगाए गए, जिनमें महिलाओं को एक बार फिर बुर्का, अबाया, हिजाब और चेहरा ढकने वाला कपड़ा पहनने का आदेश दिया गया.

पिछले साल अगस्त में धार्मिक पुलिस ने इस कानून की पुष्टि की थी, जिसके तहत पुरुषों और महिलाओं पर नए प्रतिबंध लगाए गए थे. इसके मुताबिक, महिलाएं "जरूरत पड़ने पर" घर से बाहर जा सकती हैं, लेकिन उन्हें अपना शरीर ढक कर रखना होगा.

अफगानिस्तान की नैतिकता पुलिस के प्रवक्ता सैफ अल-इस्लाम खैबर कहते हैं, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बुर्का है या हिजाब."

बुर्का पर आदेश से नाराज और डरी हुईं अफगान महिलाएं

बुर्के और अबाया का फर्क

40 साल की नसीमा ने जोर देकर कहा, "अपना चेहरा दिखाना पाप है", लेकिन उन्होंने माना कि वह कभी-कभी "घुटन भरे" बुर्के से बचने के लिए अबाया या हिजाब पहनती हैं.

22 साल की नीहा ने कहा कि सरकारी भवनों में जहां तालिबान सुरक्षा बल तैनात हैं, वहां बुर्का ना पहनने पर उसे डांटा जाता है. हिजाब को सही करने या मेडिकल मास्क पहनने का आदेश दिया जाना आम बात है. उन्होंने कहा, "दफ्तर में प्रवेश करते ही दुर्व्यवहार शुरू हो जाता है."

पश्तून संस्कृति के जानकार हयातुल्लाह रफीकी कहते हैं कि तालिबान के शुरुआती दिनों में पारंपरिक बुर्का को "सख्ती से लागू" किया जाता था और अगर महिलाएं इसे नहीं पहनती थीं तो उन्हें "कोड़े मारे जाते थे", लेकिन आज इसका इस्तेमाल कम हो गया है.

बुर्के में तकलीफ में रहती महिलाएं

पिछले 40 साल से काबुल में बुर्का बेच रहे गुल मोहम्मद ने बताया कि अब बहुत सारे बुर्के चीन से आते हैं. उनके मुताबिक ये बुर्के कपास के बजाय पॉलिएस्टर से बने होते हैं, जो सस्ते और मजबूत होते हैं लेकिन सांस लेने के लिहाज से आरामदायक नहीं होते. उन्होंने कहा, "चीनी बुर्का सर्दियों में ठंडा और गर्मियों में आग की तरह होता है, जिससे महिलाओं को बहुत पसीना आता है."

तालिबान का गढ़ माने जाने वाले कंधार की 23 साल की सबरीना के लिए बुर्का जीवन को कठिन बना देता है और उसे इसे ना पहनने पर बार-बार धमकी दी जाती है. 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद उन्होंने पहली बार बुर्का पहना, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. वह कहती हैं, "मैं रास्ता नहीं देख पा रही थी, मुझे नहीं पता था कि दाएं जाऊं या बाएं. यह बहुत अजीब था."

एए/एनआर (एएफपी)