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समाजजर्मनी

जर्मनी में लैंगिक पहचान बदलने वाले नए कानून पर छिड़ी बहस

एलिजाबेथ शूमाखर
५ सितम्बर २०२५

जर्मनी में एक मामले में दोषी पाए गए चरमपंथी और ट्रांसफोबिक एक्टिविस्ट ने खुद को ट्रांसवुमन बताते हुए महिला जेल भेजे जाने की मांग की. इसके बाद से जर्मनी में उस कानून में बदलाव की मांग उठने लगी, जिसकी वजह से ऐसा संभव हुआ.

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मार्ला-स्वेनिया लीबिष
लंबे समय से लीबिष जर्मनी में चरम दक्षिणपंथी गतिविधियों में सक्रिय थींतस्वीर: Sebastian Willnow/dpa/picture alliance

जर्मनी में "ट्रांस-फासिज्म” और "समाज के परजीवी”, ये ऐसे मुहावरे थे जिनका इस्तेमाल एक दक्षिणपंथी चरमपंथी ने दशकों तक ‘ब्लड एंड ऑनर' नाम के एक नव-नाजी समूह के नेता के तौर पर किया था. इस चरमपंथी को अब मार्ला-स्वेनिया लीबिष के नाम से जाना जाता है.

2023 में, लीबिष को नस्लीय नफरत भड़काने और मानहानि सहित अन्य अपराधों का दोषी पाया गया. पिछले साल, जेल से बचने के सभी कानूनी रास्ते बंद होने के बाद, उन्हें 18 महीने जेल की सजा सुनाई गई. और फिर, नवंबर 2024 में एक नए राष्ट्रीय लिंग पहचान कानून के लागू होने के कुछ ही हफ्तों बाद, लीबिष ने कानूनी रूप से एक महिला के तौर पर अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया.

पिछले हफ्ते, देश के पूर्वी राज्य सैक्सनी के जज ने लीबिष को अपनी सजा काटने का आदेश दिया. हालांकि, अभियोजकों ने डीडब्ल्यू को यह नहीं बताया कि वह जेल कब आएंगी, लेकिन यह जरूर कहा कि उन्हें दो हफ्तों के अंदर जेल आना होगा, नहीं तो उनकी सजा बढ़ा दी जाएगी. लीबिष को केमनित्स शहर में स्थित जेवीए महिला जेल में आना है.

प्रगतिशील कार्यकर्ताओं और जर्मनी की नई रूढ़िवादी नेतृत्व वाली सरकार, दोनों को संदेह है कि लीबिष ने लैंगिक पहचान बदलने वाले नए कानून का फायदा उठाया है, ताकि वह खुद को महिलाओं की जेल में रखवा सकें और वहां उन्हें बेहतर सुविधाएं मिलें.

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इसके बाद, क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के नेता और जर्मनी के गृह मंत्री आलेक्जांडर डोबरिंट ने नए ‘स्व-निर्धारण अधिनियम (सेल्फ डिटरमिनेशन एक्ट)' पर फिर से विचार करने का फैसला किया है. उन्होंने स्टर्न पत्रिका को बताया कि लीबिष का मामला एक बुरा उदाहरण बन सकता है, जहां चरमपंथी लोग सरकार का मजाक उड़ाने के लिए इस कानून का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं.

संसद में चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स की क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) पार्टी के न्याय विभाग के प्रमुख ग्युंटर क्रिंग्स ने कहा है कि जर्मनी में कानूनी रूप से अपना लिंग बदलना बहुत आसान है.

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लंबे समय से हो रही थी नए कानून की मांग

स्व-निर्धारण अधिनियम के तहत, अब कोई भी वयस्क अपने स्थानीय रजिस्ट्री कार्यालय में एक घोषणा करके लिंग संबंधी अपनी कानूनी पहचान बदल सकता है. इस नए कानून ने 1980 के पुराने ‘ट्रांस-सेक्सुअल्स एक्ट (टीएसजी)' की जगह ले ली है. पुराने कानून में काउंसलिंग सेशन और मेडिकल जांच की जरूरत होती थी. इसलिए, ट्रांस लोग लंबे समय से इस पुराने कानून को अपमानजनक और बचकाना बताते हुए इसकी आलोचना कर बदलने की मांग कर रहे थे.

यह कानून जर्मनी की पिछली सरकार के एक प्रगतिशील कदम का हिस्सा था, जिसमें सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी), ग्रीन्स, और फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) जैसी पार्टियां शामिल थीं. उस समय ट्रांस समुदाय और उनके समर्थकों, दोनों ने इस कानून की बहुत तारीफ की थी और मील का पत्थर बताया था. जर्मनी के फेडरेशन फॉर क्वीर डायवर्सिटी (एलएसवीडी) की कानूनी विशेषज्ञ थेरेजा रिचर्त्स ने डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "यह बदलाव बहुत पहले हो जाना चाहिए था.”

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रिचर्त्स ने कहा, "दुर्भाग्य की बात यह है कि लीबिष के मामले का इस्तेमाल उस नफरती बहस को बढ़ावा देने के लिए किया गया है जो बुंडेस्टाग यानी जर्मन संसद में बिल पर बहस के दौरान हुई थी. ‘स्व-निर्धारण अधिनियम' का असली मकसद ट्रांस और नॉन-बाइनरी लोगों के मानवाधिकारों और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. इसके बजाय, इस एक मामले को लेकर लिंग स्व-निर्धारण अधिनियम का मजाक बनाया जा रहा है या उसे खतरे के रूप में दिखाया जा रहा है. यह लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है.”

नए कानून में संशोधन की मांग पर विरोध

रिचर्त्स और अन्य एक्टिविस्टों का मानना है कि सेंटर-राइट सीडीयू/सीएसयू गुट खुद एक व्यक्तिगत मामले का फायदा उठाकर कड़ी मेहनत से हासिल की गई आजादी को छीनने की कोशिश कर रहा है. जर्मनी की ग्रीन पार्टी की क्वीर नीति की प्रवक्ता नाइके स्लाविक ने पत्रिका ‘डेय श्पीगल'  को बताया, "किसी एक व्यक्ति की ओर से स्व-निर्धारण अधिनियम का दुरुपयोग किए जाने की वजह से, ट्रांस, इंटर और नॉन-बाइनरी लोगों के मौलिक अधिकारों को सीमित करना लोकलुभावन और भयावह दोनों होगा.”

तो फिर उस सवाल का क्या कि लीबिष जेल में अन्य कैदियों के लिए खतरा हो सकती हैं? क्योंकि उनके पुराने नफरत भरे बयान तो सबके सामने हैं. केमनित्स शहर में स्थित जेवीए जेल के प्रशासन ने डीडब्ल्यू को बताया कि जेल में आने के दौरान, हर नए कैदी की मुलाकात एक डॉक्टर और काउंसलर से होती है. वे यह सलाह दे सकते हैं कि किसी कैदी को किसी अन्य जेल में भेज देना चाहिए या उसे आम लोगों के बीच नहीं रखा जाना चाहिए. अगर ऐसा कोई आदेश नहीं आता है, तो लीबिष महिला जेल में ही रहेंगी. 

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रिचर्त्स का मानना है कि जेल में बंद ट्रांसजेंडर लोग बहुत असुरक्षित होते हैं. इसलिए, उनकी लैंगिक पहचान को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उनका मानना है कि भले ही कोई एक व्यक्ति इस नियम का गलत फायदा उठा रहा हो, लेकिन इसकी वजह से पूरे समुदाय के अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता. उन्होंने आगे कहा कि ट्रांस लोगों के लिए ‘लिंग पंजीकरण जैसी कोई चीज फायदेमंद नहीं होती'. उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव की ओर इशारा किया, जिनमें महिलाओं के प्रति नफरत, स्त्री-हत्या और समलैंगिक जोड़ों को होने वाली परेशानियां शामिल हैं.

उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी एक नव-नाजी के मामले का इस्तेमाल, पहले से ही खतरे का सामना कर रहे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को सीमित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2010 और 2023 के बीच क्वीर और लैंगिक विविधता (जेंडर डाइवर्स) वाले लोगों के खिलाफ हेट क्राइम में लगभग दस गुना वृद्धि हुई है.