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यूरोप में खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है ध्वनि प्रदूषण: रिपोर्ट

२५ जून २०२५

यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोप में 11 करोड़ से ज्यादा लोग ध्वनि प्रदूषण की वजह से कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें तनाव, नींद न आना और हजारों मौतें शामिल हैं.

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Österreich Urlauberreiseverkehr auf der Tauernautobahn in Salzburg
तस्वीर: Franz Neumayr/picturedesk.com/picture alliance

यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) की एक हालिया रिपोर्टके अनुसार, यूरोप में हर पांच में से एक से ज्यादा व्यक्ति खतरनाक स्तर के ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हैं. सड़क, रेल और विमानों से होने वाला यह शोर 11 करोड़ से ज्यादा लोगों में तनाव और नींद की परेशानी का कारण बन रहा है, जिससे हर साल हजारों अकाल मौतें हो रही हैं.

ध्वनि प्रदूषण को अक्सर सिर्फ एक झुंझलाहट माना जाता है, लेकिन ईईए की कार्यकारी निदेशक लीना यला-मोनोनेन का मानना है कि यह एक गंभीर समस्या है जिस पर यूरोपीय संघ (ईयू) के सभी सदस्य देशों को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अगर हमें 2030 के 'जीरो प्रदूषण' के लक्ष्य को हासिल करना है, तो इस पर ध्यान देना जरूरी है.

स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

रिपोर्ट के अनुसार, यातायात से होने वाला शोर यूरोप में वायु प्रदूषण और तापमान संबंधी कारकों के बाद तीसरा सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य खतरा है. इससे हर साल 13 लाख स्वस्थ जीवन वर्षों का नुकसान होता है. यह अनुमानित 66,000 अकाल मौतों, दिल की बीमारियों और टाइप-2 डायबिटीज के मामलों का कारण बनता है. नई रिसर्च में डिप्रेशन और डिमेंशिया के साथ भी इसके संभावित संबंध निकलकर आए हैं.

ईईए की डॉ. यूलालिया पेरिस ने बताया, "ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में रहने से सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव जैसी हानिकारक शारीरिक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं और समय के साथ, यह दिल की बीमारियों, डायबिटीज, स्ट्रोक, मोटापा और बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं सहित कई जोखिमों को बढ़ाता है."

यह बच्चों और युवाओं के लिए विशेष रूप से खतरनाक है. यातायात के शोर की वजह से लगभग पांच लाख बच्चों को पढ़ने में मुश्किल का और 63 लोगों हजार को व्यवहार संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

गलती किसकी है?

रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क यातायात मुख्य समस्या है, खासकर भीड़भाड़ वाले शहरी इलाकों में, जो पूरे महाद्वीप में अनुमानित 9.2 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है. इसके बाद ट्रेन के शोर से 1.8 करोड़ और हवाई जहाज के शोर से 26 लाख लोग प्रभावित हैं.

ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं, जिनमें यातायात कम करना, स्पीड लिमिट कम करना, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, इलेक्ट्रिक वाहनों और साइकिल पथों का उपयोग करना शामिल है. ईईए की रिपोर्ट यूरोपीय संघ और राष्ट्रीय स्तर, दोनों पर कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देती है, जिसमें शहरों में शांत और हरे भरे स्थानों तक पहुंच में सुधार के साथ साथ कम शोर वाले टायर का उपयोग, रेल पटरियों का नियमित रखरखाव और विमानों के टेक ऑफ और लैंडिंग पैटर्न को अनुकूलित करना शामिल है.

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रिक कारों की बढ़ती संख्या से शोर में उम्मीद से कम कमी आएगी, क्योंकि कम स्पीड पर ही इंजन शोर का मुख्य स्रोत होते हैं; ज्यादा स्पीड पर, टायर और सड़क के बीच संपर्क से होने वाला शोर हावी हो जाता है.

जानवर भी झेल रहे हैं दर्द

यह सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि वन्यजीवों के लिए भी एक बड़ी समस्या है. यूरोप के लगभग एक तिहाई सबसे अधिक खतरे वाले और संरक्षित प्राकृतिक भंडार भी बढ़ते यातायात के शोर की वजह से प्रभावित हो रहे हैं. यूरोप के पानी में शिपिंग, अपतटीय निर्माण और समुद्री खोज का शोर वन्यजीवों को प्रभावित कर रहा है. व्हेल और डॉल्फिन जैसी कई प्रजातियां जीवित रहने के लिए आवाज पर ही निर्भर करती हैं.

अध्ययनों में पाया गया है कि सभी पशु प्रजातियां उच्च स्तर के शोर के जवाब में अपने व्यवहार को बदलती हैं. शहरों में पक्षियों को ग्रामीण इलाकों की तुलना में ऊंची आवाज में गाते हुए सुना गया है और मोटरमार्गों के पास रहने वाले कीड़े, टिड्डे और मेंढकों में भी कई बदलाव देखे गए हैं. जानवरों की प्रजातियों के बीच ध्वनि प्रदूषण प्रजनन, संतान के पालन पोषण में बाधा डाल सकता है और शिकार का पता लगाना कठिन बना सकता है.

भारत का यह इलाका है सबसे प्रदूषित

भारत में ध्वनि प्रदूषण

भारत में भी ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, खासकर इसके घनी आबादी वाले शहरों में. विभिन्न अध्ययनों और समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत के कई महानगर ध्वनि प्रदूषण के खतरनाक स्तरों का सामना कर रहे हैं, जो लोगों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत के प्रमुख शहरों में ध्वनि स्तर अक्सर निर्धारित मानकों से ऊपर रहते हैं. यातायात, औद्योगिक गतिविधियां, निर्माण कार्य, लाउडस्पीकर का अत्यधिक उपयोग और सामाजिक समारोहों में तेज संगीत ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं.

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में, सड़कों पर हॉर्न, इंजनों का शोर और निर्माण स्थलों की आवाजें एक सतत पृष्ठभूमि बनाती हैं. यह न केवल शहरी निवासियों में सुनने की समस्या, तनाव और नींद की कमी का कारण बन रहा है, बल्कि दिल की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर और एकाग्रता में कमी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं में भी योगदान दे रहा है. बच्चों में, यह सीखने की क्षमता और व्यवहार संबंधी मुद्दों को प्रभावित कर सकता है.

आर्थिक लागत और आगे का रास्ता

ध्वनि प्रदूषण यूरोपीय अर्थव्यवस्था को सालाना 95.6 अरब (82.43 अरब यूरो) डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है, जो इसके स्वास्थ्य प्रभावों के कारण उत्पादकता के नुकसान से होता है. यह एक वैश्विक चुनौती है और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में 90 फीसदी लोग परिवहन के कारण ऐसे शोर के अधीन हैं जो सुरक्षा सीमा से ज्यादा है और लोगों की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना अतिरिक्त नियामक या विधायी कार्रवाई के, यूरोपीय संघ 2030 तक परिवहन शोर से लगातार परेशान होने वाले लोगों की संख्या में 30 फीसदी की कमी के मौजूदा लक्ष्यों तक पहुंचने की संभावना नहीं है. यह स्पष्ट है कि ध्वनि प्रदूषण अब एक अनदेखी समस्या नहीं रह सकती. सरकारों, समुदायों और लोगों को मिलकर इससे लड़ने की जरूरत है ताकि सभी के लिए एक शांत और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित किया जा सके.