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समाजट्यूनीशिया

मध्य पूर्व में क्यों घटती जा रही है प्रजनन दर

काथरीन शेयर
११ जुलाई २०२५

कुछ दशक पहले तक मध्य पूर्व के देशों में एक महिला औसतन 7 बच्चों को जन्म देती थी. लेकिन अब यहां इतने कम बच्चे पैदा हो रहे हैं कि जनसंख्या का मौजूदा स्तर बनाए रखना भी मुश्किल हो गया है.

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2012 में यूएई की महिलाएं औसतन पांच बच्चों को जन्म दे रही थीं, जो कि 2023 आते आते एक बच्चा हो गया
2012 में यूएई की महिलाएं औसतन पांच बच्चों को जन्म दे रही थीं, जो कि 2023 आते आते एक बच्चा हो गयातस्वीर: Giuseppe Cacace/AFP/Getty Images

मध्य पूर्व के देशों में एक ऐसी "शांत क्रांति” चल रही है, जो न तो सड़कों पर हो रहे किसी प्रदर्शन से जुड़ी है और न ही किसी सरकार के गिरने से. ये क्रांति लोगों के घरों के अंदर चल रही है, जिसका सीधा संबंध बच्चों के जन्म दर यानी फर्टिलिटी रेट से है. बीते 20 से 30 सालों में  मध्य पूर्व के लगभग सभी देश में फर्टिलिटी रेट में भारी गिरावट आई है. प्रजनन दर से आशय ये है कि एक महिला अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है.

तकनीकी भाषा में टोटल फर्टिलिटी रेट या कुल प्रजनन दर का मतलब होता है कि एक महिला 15 से 49 साल की उम्र के बीच औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है. 1960 के दशक में मध्य पूर्वी देशों की महिलाएं औसतन 7 बच्चे पैदा करती थी. जबकि 2010 के दशक तक यह संख्या घटकर सिर्फ 3 रह गई यानी बच्चों की संख्या आधी से भी कम हो गई है.

हालांकि, गिरती हुई जन्म दर एक वैश्विक प्रवृत्ति है. लेकिन 2016 में ही शोधकर्ताओं ने जाहिर कर दिया था कि मध्य पूर्वी देशों ने "पिछले 30 वर्षों में बाकी दुनिया के मुकाबले प्रजनन दर में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है.”

पिछले एक दशक में यह संख्या और भी कम हो गई है. पिछले साल अक्टूबर में मिडिल ईस्ट फर्टिलिटी सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2011 से 2021 के बीच इन देशों में टोटल फर्टिलिटी रेट में 3.8 फीसदी से लेकर 24.3 फीसदी तक की गिरावट आई है. जिसमें सबसे बड़ी गिरावट जॉर्डन, इराक और यमन में देखी गई है.

सन 1975 से 1980 के बीच, यमन की महिलाएं औसतन नौ बच्चों की मां बनती थीं, जो कि अब पांच बच्चों पर आ चुका है और पूरे इलाके में सबसे ऊंची जन्म दर है
सन 1975 से 1980 के बीच, यमन की महिलाएं औसतन नौ बच्चों की मां बनती थीं, जो कि अब पांच बच्चों पर आ चुका है और पूरे इलाके में सबसे ऊंची जन्म दर हैतस्वीर: Khaled Ziad/AFP/Getty Images

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, साल 2023 में अरब लीग के 22 सदस्य देशों में से कम से कम 5 देशों का कुल प्रजनन दर 2.1 से भी नीचे रहा. यह वही दर है, जो किसी देश की आबादी को स्थिर बनाए रखने के लिए जरूरी माना जाता है. इसके अलावा, 4 देश ऐसे थे, जो इस स्तर के बहुत करीब पहुंच चुके हैं. जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में एक महिला औसतन सिर्फ 1.2 बच्चे ही जन्म दे रही है जो कि जनसंख्या को बनाए रखने के लिए अनिवार्य स्तर से काफी कम है. यह स्थिति जर्मनी जैसे यूरोपीय देश की कुल प्रजनन दर से भी काफी कम है, जो कि 2024 में 1.38 के आसपास थी.

मध्य पूर्वी देशों में लोग कम बच्चे क्यों पैदा कर रहे हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि मध्य पूर्वी देशों में बच्चों की संख्या कम होने के पीछे दो बड़ी वजहें हैं. पहला, आर्थिक और राजनीतिक कारण और दूसरा, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव हो सकते हैं.

आर्थिक और राजनीतिक कारण, युद्ध और अस्थिरता से संबंधित हो सकते हैं यानी ऐसे देश, जहां काफी लंबे समय से युद्ध और राजनीतिक संकट चल रहे हैं और लोग ऐसे माहौल में बच्चों को इस दुनिया में नहीं लाना चाहते हैं. इसके अलावा, मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों में सरकार ने सरकारी सब्सिडियां हटा दी है. जिससे आर्थिक मुश्किलें भी बढ़ रही हैं.

कितना कारगर है जन्म दर बढ़ाने के लिए सब्सिडी देना

तेल से चलने वाली अर्थव्यवस्थाओं में अब सरकारी नौकरियां भी कम हो गई है. जिससे, महंगाई बढ़ रही है और शादी और बच्चों की परवरिश महंगी होती जा रही है. इन सब के अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण मिडिल ईस्ट दुनिया में सबसे तेजी से गर्म होते इलाकों में से एक है. जिस कारण कई युवा जोड़े बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव भी इसमें पूर्ण योगदान दे रहे हैं. जैसे कि अब गर्भनिरोध समाज में (धार्मिक रूप से भी) काफी हद तक स्वीकार्य हो चुका है और तलाक को भी सामाजिक मान्यता मिल चुकी है. इसके अलावा महिलाओं की स्थिति में भी निरंतर सुधार आ रहे हैं.

शहरीकरण और सोशल मीडिया पर भी इस बदलाव का उतना ही भार आता है. जैसे कि जॉर्डन और मिस्र के ग्रामीण इलाकों में आज भी महिलाओं के अधिक बच्चे होते हैं. जबकि शहरों में गांवों के मुकाबले जन्म दर काफी कम है. कई विश्लेषकों का मानना है कि लोग अब इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए "वेस्टर्न लाइफस्टाइल” यानी पश्चिमी जीवनशैली को देख रहे हैं. जिससे कि एक "आदर्श परिवार” कैसा होना चाहिए, इस पर लोगों का नजरिया बदल रहा है.

हालांकि, यह सभी कारण आपस में जुड़े हुए हैं. अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर, मार्शिया इनहॉर्न, मिडिल ईस्ट में शादी और बच्चों को लेकर बदलते नजरियों पर लंबे समय से रिसर्च कर रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि इन सबके बीच एक नई सोच उभर रही है, जिसे "वेटहुड” कहा जा रहा है.

दशकों बाद ऐसे बढ़ी दक्षिण कोरिया में जन्म दर

मिडिल ईस्ट में शादी के लिए अक्सर धन-संपत्ति का लेन-देन जरूरी होता है. जैसे कि इराक में दूल्हे को देना सोने के गहने, नकद पैसे और पूरी तरह से सजा-धजा घर देना होता है. इनहॉर्न ने बताया कि आज के युवा इन सबका खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं. इसी वजह से वे शादी को टालते रहते हैं.

पुरुषों के अलावा अब एक बड़ी संख्या में महिलाएं भी हैं जो सही जीवनसाथी का इंतज़ार कर रही हैं या फिर शायद कभी शादी न करने का फैसला ले रही हैं. इनहॉर्न ने कहा, "अब पूरे क्षेत्र में बड़े परिवारों की चाह घट रही है. बल्कि आजकल यह सोच व्यापक हो रही है कि मैं एक छोटा लेकिन अच्छा परिवार चाहती हूं, जहां मैं अपने बच्चों को हर वो चीज दे सकूं, जिसके वे हकदार हैं.”

घटती प्रजनन दर का असर

वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट में पॉलिटिकल इकनॉमिस्ट, निकोलास एबरश्टाट ने पिछले साल फॉरेन अफेयर्स मैगजीन में लिखा था, "मानव इतिहास एक नए युग में प्रवेश करने जा रहा है. जिसे ‘जनसंख्या घटने का युग' कह सकते हैं. 1300 के दशक में आई ब्लैक डेथ महामारी के बाद पहली बार दुनिया की आबादी कम हो रही है.”

आज, दुनिया के 76 फीसदी देशों में जन्म दर उस स्तर से नीचे है, जो आबादी को स्थिर बनाए रखने के लिए जरूरी है. विशेषज्ञों के बीच इस बदलाव को लेकर राय बंटी हुई है और आने वाले अगले 25-30 वर्षों में यह और भी अहम मुद्दा बनने वाला है.

इस विषय पर पिछले महीने इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के रिसर्चरों ने लिखा, "इसका मानवता के भविष्य पर क्या असर होगा, यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. एक तरफ, कुछ लोगों को डर है कि इससे आर्थिक विकास रुक सकता है क्योंकि भविष्य में काम करने वाले लोग, वैज्ञानिक और नए आविष्कार करने वाले लोग कम हो जाएंगे. और दूसरी तरफ, कुछ का मानना है कि जब बच्चों की संख्या और जनसंख्या कम होगी, तो घर और बच्चों की देखभाल पर खर्च भी कम होगा और बचा हुआ पैसा दूसरे जरूरी कामों में लगाया जा सकेगा. और जनसंख्या में गिरावट से पर्यावरण पर पड़ने वाला दबाव भी कम हो सकता है.”

शोधकर्ताओं का कहना है कि बुजुर्गों की बढ़ती संख्या से सामाजिक सुरक्षा योजनाएं और पेंशन सिस्टम पर भारी दबाव पड़ेगा. मिडिल ईस्ट में ये चुनौती और भी बड़ी हो सकती है क्योंकि वहां आमतौर पर युवा ही अपने बुजुर्गों की देखभाल करते हैं, और सीनियर केयर होम जैसी सुविधाएं आम नहीं हैं.

कुछ देश भविष्य में जहां जनसंख्या स्थिर नहीं रहेगी और वहां के आर्थिक हालत पहले से ही कमजोर है. एबरश्टाट ने डीडब्ल्यू को बताया, "इसका मतलब है कि मध्य पूर्वी देशों की आने वाली पीढ़ी में सभी नहीं, लेकिन बहुत से समाज बूढ़े होते जाएंगे. जहां बड़ी संख्या में ऐसे बुजुर्ग होंगे, जो बीमारियों से पीड़ित होंगे. लेकिन उनके पास वेस्टर्न देशों की तरह स्वास्थ्य और पेंशन के लिए पैसे नहीं होंगे.”

एबरश्टाट इस पर ज्यादा नकारात्मक नहीं हैं, बल्कि संयमित आशावाद रखते हैं. वह कहते हैं, "मैंने इस विषय पर तब अध्ययन शुरू किया था जब लोग जनसंख्या विस्फोट को लेकर घबराए हुए थे. लेकिन मैं मानता हूं कि उस डर का आधार गलत था क्योंकि लोग ज्यादा बच्चे नहीं पैदा कर रहे थे, बल्कि बच्चे अब पहले के मुकाबले कम मर रहे थे. असल में जनसंख्या विस्फोट, स्वास्थ्य सेवाओं की सफलता थी.”

एबरश्टाट कहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं का विकास अभी भी जारी है. साथ ही शिक्षा और ज्ञान में भी निरंतर सुधार हो रहा है. ये सारी चीजें मानवता के लिए उम्मीद जगाती हैं. भले ही जनसंख्या घट रही हो लेकिन भविष्य में, जब दुनिया बूढ़ी होती जाएगी, तो हमें बहुत से बदलाव करने पड़ेंगे. फिर भी, एबरश्टाट मानते हैं कि हम इंसान एक ऐसी प्रजाति हैं जो हालात के साथ खुद को ढालने में माहिर है.