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जर्मन बुंडेस्टाग पर प्राइड फ्लैग ना होने के क्या है मायने

रीतिका
४ जुलाई २०२५

जर्मनी के चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने कहा है कि बुंडेस्टाग पर अब एलजीबीटी+ समुदाय का झंडा नहीं लगाया जाएगा. इस फैसले की आलोचना के बीच जर्मनी के क्वीयर इतिहास को समझना भी अहम है.

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जर्मन बुंडेस्टाग पर लगे यूरोप, जर्मनी और प्राइड के झंडे
प्राइड परेड के मौके पर हर साल सतरंगी झंडा लगाया जाता था. इसे क्वीयर समुदाय के समर्थन के एक प्रतीक के तौर पर देखा जाता था.तस्वीर: Virginia Garfunkel/IMAGO

जर्मनी की संसद बुंडेस्टाग पर अब एलजीबीटी+ समुदाय का प्रतीक सतरंगी झंडा नहीं लहराएगा. जर्मन संसद अध्यक्ष यूलिया क्लुक्नर ने हाल ही में इस फैसले की घोषणा की थी. साथ ही संसद के सदस्यों को आधिकारिक तौर पर परेड में ना शामिल होने का भी निर्देश दिया था.

चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने इस फैसले को सही ठहराया है. जर्मनी के सरकारी मीडिया हाउस एआरडी को दिए एक इंटरव्यू में मैर्त्स ने कहा कि जर्मन संसद किसी सर्कस का तंबू नहीं है, जहां अपनी मनमर्जी का कोई भी झंडा लगा दिया जाए.

साथ ही उन्होंने कहा, "जिसे जो झंडा लगाना है वह अपने दरवाजे पर लगा सकता है. लेकिन हम यहां जर्मन संसद की बात कर रहे हैं, हम हर दिन जर्मनी और यूरोप के अलावा कोई भी दूसरा झंडा नहीं लगाते.” अब यह प्राइड झंडा हर साल बुंडेस्टाग पर सिर्फ 17 मई, होमोफोबिया के खिलाफ निर्धारित अंतरराष्ट्रीय दिवस के दिन ही लगाया जाएगा. 

क्यों अहम था बुंडेस्टाग का यह प्रतीकात्मक समर्थन?

क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे और इस झंडे के प्रतीकात्मक महत्व को समझने के लिए हमें 1969 के न्यू यॉर्क में जाना होगा. न्यू यॉर्क की क्रिस्टोफर स्ट्रीट पर ‘स्टोनवॉल इन' नाम का एक बार था. यहां एलजीबीटी+ समुदाय के लोग अक्सर इकट्ठा होते थे. यह उस दौर में उनका ‘सेफ स्पेस' था, जहां वे अपनी पहचान बिना डरे जाहिर कर पाते थे.

27 जून 1969 को वहां पुलिस ने छापा मारा. छापे के दौरान कई लोगों के साथ हिंसा की घटनाएं दर्ज हुई. इसके खिलाफ क्वीयर, खासकर ट्रांस समुदाय ने प्रदर्शन करना शुरू किया. यह प्रदर्शन पुलिस और एलजीबीटी+ समुदायों के बीच हिंसक टकराव में बदल गया. टकराव की यह स्थिति कई दिनों तक बनी रही.

Unruhen New York Stonewall
स्टोनवॉल में हुई हिंसा एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों के लिए नींव का पत्थर साबित हुई. उस हिंसा के बाद क्वीयर अधिकारों की मांग दुनियाभर में तेज हुई, जिसका असर जर्मनी पर भी दिखा.तस्वीर: AP/picture alliance

हालांकि, यहीं से एलजीबीटी+ अधिकारों के संघर्ष की नींव भी पड़ी. इसीलिए जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों में प्राइड परेड को ‘क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे' के नाम से जाना जाता है. 30 जून 1979 में बर्लिन में पहली बार क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे मनाया गया. तब इसमें महज 450 लोगों ने हिस्सा लिया था. आज इस परेड में हजारों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं. खासकर बर्लिन और म्यूनिख में बड़ी तादाद में लोग इस परेड में शामिल होते हैं. इस साल की परेड की थीम है, "दोबारा कभी चुप ना होना."

इस साल 26 जुलाई को जर्मनी में क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे मनाया जाएगा. हर साल जून से लेकर जुलाई के महीने में, जर्मनी के अलग अलग शहरों में इस दिन का आयोजन होता है. प्राइड परेड का समर्थन करते हुए पहली बार 2022 में बुंडेस्टाग पर सतरंगी झंडा लगाया गया था. तब से यह झंडा हर साल इस मौके पर बुंडेस्टाग पर लहराने लगा था.

इस वक्त दुनिया के कई देशों में एलजीबीटी+ समुदाय को दिए गए अधिकार वापस लिए जा रहे हैं. चाहे वह अमेरिका हो या हंगरी. बुंडेस्टाग पर प्राइड झंडे का होना प्रतीकात्मक ही सही लेकिन सरकार के समर्थन का आश्वासन जरूर था. 

ट्रंप ट्रांस लोगों को निशाना क्यों बनाते रहते हैं?

नाजी जर्मनी के क्रूर दौर से लेकर एलजीबीटी+ समुदाय के लिए सबसे सुरक्षित देशों में से एक कैसे बना जर्मनी

जर्मनी के साथ एलजीबीटी+ समुदायों के अधिकारों के हनन में नाजी शासन का स्याह इतिहास भी जुड़ा है. हिटलर के नाजी जर्मनी के कैंपों में गे, ट्रांस समुदाय के लोग भी मारे गए थे. 1871 में जर्मनी के सिविल कोड के सेक्शन 175 के तहत होमोसेक्सुअलिटी को एक अपराध घोषित किया गया. खासकर दो पुरुषों के बीच के संबंध को. नाजी शासन के तहत इस नियम को हथियार बनाकर हजारों गे, लेस्बियन और ट्रांस लोगों को यातनाएं दी गईं.

संस्था एरोलसेन आर्काइव (इंटरनैशनल ट्रेसिंग सर्विस) जो नाजी शासन के पीड़ितों का रिकॉर्ड और इतिहास दर्ज करती है, उसके दस्तावेजों के मुताबिक तब यातना कैंपों में गे पुरुषों के कार्ड पर ‘सेक्शन 175 होमोसेक्सुअल' लिखा भी पाया गया था. पहचान के लिए कई पुरुषों को गुलाबी रंग के पैच (पिंक ट्राएंगल) के साथ कैंपों में भेजा गया. आगे चलकर गे पुरुषों ने इसी पिंक ट्राएंगल को अपने संघर्ष का प्रतीक बना लिया.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी ने धीरे धीरे सेक्शन 175  में बदलाव लाने शुरू किए. दोनों हिस्सों में हो रहे बदलावों की गति और स्तर में हालांकि, जमीन-आसमान का फर्क था. एलजीबीटी+ सुमदाय के साथ सामाजिक भेदभाव और शोषण दोनों तरफ ही जारी रहा. लेकिन जर्मनी ने यौनिक पहचान के कारण हत्या से लेकर एलजीबीटी+ लोगों के लिए सबसे सुरक्षित देशों में से एक बनने तक का सफर तय करना शुरू कर दिया था.

प्राइड परेड की फाइल तस्वीर
बर्लिन में हर साल बड़ी संख्या में लोग क्रिस्टोफर स्ट्रीट डे में हिस्सा लेते हैं. इस दिन बुंडेस्टाग पर प्राइड फ्लैग भी लगाया जाता है जो इस साल से नजर नहीं आएगा.तस्वीर: Hannes P Albert/dpa/picture alliance

1994 के बाद बदलने लगी तस्वीर

आखिरकार यूनिफिकेशन के बाद, 1994 में जाकर  सेक्शन 175 को पूरी तरह हटा दिया गया. एरोलसेन आर्काइव के मुताबिक इस सेक्शन के तहत जिन पुरुषों को सजा दी गई उन सभी को माफ करने में 23 साल और लगे. 2017 में जाकर जर्मनी इन सभी लोगों को आपराधिक रिकॉर्ड से बाहर करने में कामयाब रहा. सरकार की तरफ से उन्हें मुआवजा भी दिया गया.

कानूनों में बदलाव ला कर एलजीबीटी+ समुदाय को नौकरी, घर मिलने और दूसरे क्षेत्रों में भेदभाव से बचाने की कवायद शुरू की गई. 2017 वह साल भी बना जब जर्मनी में सेम सेक्स मैरेज को सरकार ने मंजूरी दी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 65,000 से ज्यादा लोग इस कानून के तहत अपनी शादी रजिस्टर करवा चुके हैं.

ये बदलाव एलजीबीटी+ समुदाय के संघर्ष और सरकार के साझा प्रयासों का नतीजा थे. बुंडेस्टाग पर यह झंडा एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों के लिए सरकार की ओर से मिले समर्थन और स्वीकार्यता का प्रतीक था. लेकिन इस साल से बुंडेस्टाग का ये सांकेतिक समर्थन अब देखने को नहीं मिलेगा.

क्या एलजीबीटी+ समुदाय के प्रति मौजूदा सरकार का रवैया बदल रहा है?

जर्मनी को हमेशा से एक क्वीयर फ्रेंडली देश के तौर पर देखा गया है. लेकिन चांसलर मैर्त्स के इस हालिया बयान की काफी आलोचना हो रही है. खासकर, उन शब्दों की जिनका इस्तेमाल उन्होंने अपने बयान में किया. हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब चांसलर मैर्त्स और उनकी पार्टी के प्रतिनिधियों ने एलजीबीटी+ अधिकारों के मुद्दे पर ऐसी राय रखी है.

एसपीडी नेता क्लाउस वोवराइट खुद की पहचान एक गे पुरुष के तौर पर करते हैं. उनके बारे में 2001 में एक इंटरव्यू में यह पूछे जाने पर कि वह बर्लिन के गे मेयर के बारे में क्या राय रखते हैं, मैर्त्स ने कहा था, "जब तक वह (क्लाउस) मेरे करीब नहीं आते, मुझे परवाह नहीं है."

2001 की तस्वीर
2001 में बर्लिन की प्राइड परेड में शामिल हुए मेयर क्लाउसतस्वीर: AP

 

चांसलर बनने से पहले हुई एक टीवी डिबेट में भी मैर्त्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के केवल दो जेंडरों को ही मान्यता देने के फैसले का समर्थन किया था. इसके बाद जब सीडीयू, एसपीडी और सीएसयू की गठबंधन की सरकार बनी तब कैबिनेट में महिलाओं की कम संख्या को लेकर भी मैर्त्स को आलोचना का सामना करना पड़ा था.

अक्टूबर 2024 में, मंत्रिमंडल में लैंगिक बराबरी के विचार को शामिल करना मैर्त्स ने जरूरी नहीं समझा था, जिसके बाद भी उनकी दोबारा तीखी आलोचना हुई.  लेकिन बतौर राजनीतिक दल सीडीयू ने कई मामलों में एलजीबीटी+ समुदाय की तरफदारी की है. पार्टी, चुनाव प्रचार में भी उनके अधिकारों को और पुख्ता करने की वकालत भी करती आई है. ऐसे में मैर्त्स के इस बयान की आलोचना गलत नहीं नजर आती.

वकालत और राजनीति के धुरंधर फ्रीडरिष मैर्त्स