महाराष्ट्र सरकार ने तीन भाषा नीति का आदेश वापस लिया
३० जून २०२५महाराष्ट्र सरकार ने रविवार को राज्य के छात्रों पर हिंदी भाषा के "थोपे" जाने के विपक्ष के आरोपों के बीच तीन भाषा नीति पर जारी किए गए दो सरकारी आदेश रद्द कर दिए हैं. विपक्ष का आरोप था कि सरकार राज्य के छात्रों पर हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है.
सोमवार से महाराष्ट्र विधानसभा का मॉनसून सत्र से शुरू हो रहा है, मॉनसून सत्र में विपक्ष के हंगामे की आशंका को देखते हुए मंत्रिमंडल ने 16 अप्रैल और 17 जून को जारी दो सरकारी आदेशों को रद्द करने का फैसला लिया. इन सरकारी आदेशों के मुताबिक हिंदी को प्राथमिक स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में शामिल किया गया था. पहले सरकारी आदेश में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा अनिवार्य बनाया था, जबकि दूसरे ने इसे वैकल्पिक बनाया था.
मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी, जो तय करेगी कि 'तीन भाषा' नीति किस कक्षा से लागू की जाए. उन्होंने कहा कि सरकार योजना आयोग के पूर्व सदस्य और पूर्व-वाइस चांसलर डॉ. जाधव की रिपोर्ट के आधार पर एक नया फैसला लेगी.
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हिंदी का विरोध
रविवार को सीएम की घोषणा शिवसेना यूबीटी के राज्य व्यापक आंदोलन के साथ हुई, जहां कार्यकर्ताओं ने प्राथमिक विद्यालय स्तर पर हिंदी के "थोपने" का विरोध करने के लिए विवादास्पद सरकारी आदेशों की प्रतियों को जला दिया. इन दोनों सरकारी आदेशों का विरोध शिवसेना (यूबीटी), एमएनएस और एनसीपी (शरद पवार) कर रही थी.
शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस ने हिंदी भाषा के "थोपने" का विरोध करने के लिए 5 जुलाई को एक संयुक्त मार्च की घोषणा की थी, सरकार द्वारा सरकारी आदेशों को वापस ले जाने के बाद मार्च रद्द कर दिया गया.
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कैसे भड़का विवाद
विवाद 16 अप्रैल को जारी किए गए पहले सरकारी आदेश के साथ शुरू हुआ, जिसने हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक तीसरी भाषा के रूप में पेश किया. इस फैसले की व्यापक तौर पर आलोचना की गई, जिसमें कई ने सरकार पर गैर-हिंदी भाषी छात्रों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया.
सरकारी आदेशों के वापस लिए जाने के बाद उद्धव ठाकरे ने पत्रकारों से कहा, "कक्षा 1 से तीन भाषा की नीति की आड़ में हिंदी को थोपने का फैसला आखिरकार वापस ले लिया गया है. सरकार ने इस से संबंधित दो सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया है. इसे ज्ञान नहीं कहा जा सकता है जो देर से आया था. यह मराठी लोगों के सामने सरकार की हार है."
तीन भाषा फॉर्मूले की चुनौतियां
भाषा, भूगोल और संस्कृति की विविधता वाले देश के गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को थोपने की कथित कोशिशें राजनीतिक और सामाजिक तनाव का कारण बनती रही हैं. खासतौर पर दक्षिण भारत के राज्य हिंदी के जरिए केंद्र की सरकारों पर विस्तारवाद का आरोप लगाते रहे हैं. तमिलनाडु में पहले से दो-भाषा फॉर्मूला लागू है- तमिल और अंग्रेजी. कमोबेश ऐसा ही विरोध केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यो में भी हो रहा है.
छोटी उम्र में ही कई भाषाओं को सीखने की "मांग” को पूरा कर पाने में स्कूली बच्चे खुद को असमर्थ पाते हैं और उन पर अतिरिक्त बोझ आ जाता है. अधिकांश शिक्षाविद् और भाषाविद् गैर-हिंदी भाषा के अध्यापकों की भारी कमी की ओर भी ध्यान दिलाते हैं. नीति में तीसरी आधुनिक भाषा के लिए योग्य या प्रशिक्षित अध्यापक उपलब्ध नहीं हैं. और ग्रामीण इलाकों में अधिकांश शिक्षक, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की भाषा से अनभिज्ञ होते हैं. इसके अलावा पाठ्यपुस्तकें राजकीय भाषा में होती है.