कश्मीर में आज भी कैसे जिंदा हैं कैसेट और कैसेट प्लेयर
इंटरनेट और स्मार्टफोन की दुनिया में कश्मीर में सूफी संगीत के कुछ प्रेमियों ने आज भी ऑडियो कैसेट और कैसेट प्लेयर की परंपरा को जिंदा रखा हुआ है. लेकिन इसमें कम मुश्किलें नहीं हैं.
एक छोटा सा समूह
श्रीनगर में दर्जी का काम करने वाले फारूक अहमद शाक्साज एक छोटे से समूह का हिस्सा हैं जिसका यह मानना है कि कश्मीर के सूफी संगीत को सुनने और संभाल कर रखने का बेहतरीन जरिया आज भी कैसेट टेप ही हैं.
विरासत में मिली परंपरा
फारूक को 1970 का 'शार्प' कंपनी का कैसेट प्लेयर और 70 के ही दशक की ऑडियो कैसेटों का संग्रह अपने दादा से विरासत में मिला. वो अक्सर काम करते करते समय इन कैसेटों को सुनते हैं.
अध्यात्म की अभिव्यक्ति
कश्मीर में स्थानीय और केंद्रीय एशिया के सूफी संतों का संगीत लंबे समय से आध्यात्मिकता और भावनाओं को गहराई से व्यक्त करने का साधन रहा है. कई लोग आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए या इस प्रांत में सड़कों पर जंग, शटडाउन और सुरक्षा संबंधित प्रतिबंधों के लंबे इतिहास के दर्द से दूर भागने के लिए इस संगीत का इस्तेमाल करते हैं.
आज भी होती है रिकॉर्डिंग
दशकों की परंपरा के मुताबिक, आज भी कुछ परिवार एक कैसेट प्लेयर के इर्द गिर्द इकट्ठे होकर सूफी संतों के आत्मा को छू जाने वाले लफ्जों और सारंगी व संतूर जैसे वाद्य यंत्रों के रहस्यमयी सुरों को सुनते हैं. 1970 से 1990 तक यहां के पारंपरिक सूफी कार्यक्रमों को ऑडियो कैसेटों पर ही रिकॉर्ड किया जाता था. आज भी अक्सर रिकॉर्डिंग इन गायब होते डिजिटल फॉर्मेट में की जाती है.
डिजिटल रिकॉर्डर से दूरी
आज यह संगीत डिजिटल फॉर्मेटों में भी उपलब्ध होता जा रहा है लेकिन कई कश्मीरी कहते हैं कि आज भी इसे कैसेटों से ही सुनना सबसे ज्यादा अच्छा लगता है. सूफी संगीत प्रेमियों की बैठकों में डिजिटल रिकॉर्डरों का अक्सर स्वागत नहीं किया जाता है. इन लोगों का कहना है कि डिजिटल में अलग अलग वाद्य यंत्रों की अलग अलग आवाजें आपस में मिल जाती हैं.
करना पड़ रहा संघर्ष
हालांकि इस परंपरा को बनाए रखना अब मुश्किल होता जा रहा है. कई परिवारों के प्लेयर खराब हो गए तो उन्हें मजबूरन उन्हें हटा देना पड़ा. कई परिवार अपनी पसंदीदा कैसटों को संभाल कर रखने में संघर्ष कर रहे हैं. इनमें से कुछ कैसेटों में पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल कर रखी गई दुर्लभ और अनमोल रिकॉर्डिंग हैं.
पुर्जो और मैकेनिकों की कमी
आज श्रीनगर में सिर्फ कुछ दुकानों में टेप रिकॉर्डर और खाली कैसेट बिकते हैं. पुर्जे और मरम्मत करने वाले कुशल टेक्नीशियन भी अब कम ही मिलते हैं. बीती सदी में 'शार्प' और 'केनवुड' जैसी जापानी कंपनियों द्वारा बनाई गई इन मशीनों को ठीक करने वाले मुट्ठी भर मैकेनिक आज भी इन सूफी संगीत प्रेमियों के काम आ जाते हैं.
हजारों में बिकता है एक रिकॉर्डर
मोहम्मद अशरफ मट्टू जैसे मैकेनिक बंद हो चुके रिकॉर्डर खरीद कर उसमें से चालू पुर्जे निकाल कर रखते हैं. अशरफ कुछ पुर्जे तो खुद ही बना भी लेते हैं. मरम्मत होने के बाद एक अच्छी तरह से चलने वाला रिकॉर्डर ब्रांड और उसकी हालात के मुताबिक करीब 13,000 से 73,000 रुपये के बीच बिकता है.
अतीत का पुल
फारूक अहमद शाक्साज कहते हैं कि इस कैसेटों की विरासत को संभाल कर रखना उनका 'निजी मिशन' है. वो कहते हैं, "यह अतीत में ले जाने वाला एक पुल है, एक जरिया है इस डिजिटल और हमेशा आधुनिक होती दुनिया में हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहने का." (एपी)