कश्मीर विवाद की जड़ें और इसमें शामिल पक्ष
२५ अप्रैल २०२५करीब 2,20,148 वर्ग किलोमीटर में फैला कश्मीर भारत, पाकिस्तान और चीन में बंटा है. भारत और पाकिस्तान पूरे कश्मीर पर अपना अधिकार जताते हैं. 1.2 करोड़ जनसंख्या वाला कश्मीर कई रणनैतिक, आर्थिक और धार्मिक हितों का भी संगम है.
कश्मीर पर जारी विवाद का इतिहास 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन से जुड़ा है. उस वक्त हिंदू बहुल देश, भारत और मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान अस्तित्व में आए. जम्मू कश्मीर तब एक रिसायत हुआ करती थी, जिसका शासन हिंदू महाराजा के हाथ में था. कश्मीर के राजा हरि सिंह ने शुरुआत में भारत और पाकिस्तान का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. लेकिन तभी पाकिस्तान की तरफ से कबाइली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला कर दिया. वे राजा को हटाकर कश्मीर पर कब्जा करना चाहते थे. महाराजा ने नई दिल्ली से मदद मांगी और कश्मीर को भारत में मिलाने की संधि स्वीकार कर ली. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध शुरू हुआ और तब से ही कश्मीर बंटा हुआ है.
ज्यादा आबादी वाला क्षेत्र भारत में आता है. इसमें कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख शामिल हैं. वहीं उत्तरी कश्मीर पर पाकिस्तान का नियंत्रण है. पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इलाकों में आजाद जम्मू और कश्मीर (एजेके) और गिलगित-बाल्तिस्तान आते हैं. चीन ना के बराबर आबादी वाले पूर्वोत्तरी हिस्से अक्साई को नियंत्रित करता है. भारत इस पर अपना दावा जताता है.
पाकिस्तान, चीन ने मिल कर की कश्मीर में "एकतरफा कदमों" की निंदा
कश्मीर पर पाकिस्तान, मजहबी आधार पर दावा करता है. इस्लामाबाद के मुताबिक मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण, कश्मीर को विभाजन के वक्त ही पाकिस्तान का हिस्सा बन जाना चाहिए था. वहीं भारत का कहना है कि नई दिल्ली और श्रीनगर के बीच हुई विलय संधि के तहत कश्मीर, कानूनी रूप से उसका अंग है. यही मतभेद कई दशकों से युद्ध, हिंसा और कूटनीतिक तनातनी की वजह बने हुए हैं.
कश्मीर में तीसरा दावेदार चीन
कश्मीर मुद्दे पर अकसर भारत और पाकिस्तान के दावे ही सुर्खियां बटोरते रहते हैं. लेकिन इस पहेली का एक अहम रणनैतिक हिस्सा चीन के पास भी है. अक्साई चीन कहे जाने वाले कश्मीर के पूर्वोत्तर इलाके का प्रशासन चीन के हाथ में है. यह इलाका, तिब्बत को चीन के पश्चिमी हिस्से शिनजियांग से जोड़ता है.
चीन ने 1950 के दशक में शिनजियांग को तिब्बत से जोड़ने वाला हाईवे बना कर अक्साई चीन पर नियंत्रण किया. भारत ने उस वक्त भी इलाके में चीन की मौजूदगी पर आपत्ति जताई. तब दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ा कि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया. उस युद्ध के बाद से ही अक्साई चीन पर बीजिंग का नियंत्रण है. इधर हाल के बरसों में चीन ने विवादित वास्तविक नियंत्रण रेखा के आस पास अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है. बीते कुछ सालों में इस वजह से भारत और चीन की सेना के बीच अकसर झड़पें और तनातनी होती रही है.
चीन के लिए इस इलाके का महत्व सिर्फ रणनैतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक भी है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) बीजिंग के बेल्ट और रोड अभियान का अहम स्तंभ है. यह कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत गिलगित-बल्तिस्तान से गुजरता है. इस वजह से कश्मीर में स्थिरता भूराजनैतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी बीजिंग के लिए अहम है.
कश्मीर में सेना की बड़ी उपस्थिति
अनुमान है कि भारत ने कश्मीर में करीब 7,50,000 जवान तैनात किए हैं. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान ने अपने नियंत्रण वाले कश्मीर में 1,50,000 से ज्यादा सैनिक तैनात किए हैं. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तान सेना की कुछ खास टुकड़ियां, जैसे मुजाहिद रेजीमेंट भी वहां तैनात है.
दोनों पक्ष एक दूसरे पर सैन्य तैनाती को लेकर गलत आंकड़े पेश करने का आरोप लगाते हैं. सटीक आकंड़े कोई नहीं देता है. लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि आम नागरिकों के अनुपात में सैनिकों की संख्या देखी जाए तो कश्मीर में कोरियाई प्रायद्वीप से भी ज्यादा फौज तैनात है.
उग्रवादी गुट विवाद में पेंचदगी की एक परत और जोड़ते हैं. भारतीय कश्मीर में 1980 के दशक में हथियारबंद उग्रवादी हिंसा शुरू हुई. कुछ हद तक स्थानीय अंसतोष और बाहरी मदद की वजह से यह अब भी जारी है. भारत, पाकिस्तान पर उग्रवादी गुटों को पनाह देने का आरोप लगाता है. इस्लामाबाद इन आरोपों को खारिज करता है.
दशकों से हिजबुल मुजाहिद्दीन, जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे संगठन भारतीय कश्मीर में हमले करते आ रहे हैं.
टीआरएफ क्या है और ये क्या चाहता है
पहलगाम हमला क्या एक बड़ा संकट भड़का सकता है?
पहलगाम हमले के जबाव में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाए हैं. इनमें कूटनीतिक रिश्तों में गिरावट, हवाई और जमीनी सीमाएं बंद करना और 1960 के सिंधु जल समझौते को निलंबित करने जैसे कदम शामिल हैं. सिंधु जल समझौते के तहत दोनों देश सिंधु जलागम के पानी को साझा करते हैं. पाकिस्तान ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के फैसले की निंदा करते हुए कहा है कि संधि में दखलंदाजी को "युद्ध की हरकत" माना जाएगा.
इस बीच संभावित सैन्य जवाब की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि 2019 में पुलवामा हमले के बाद की गई सैन्य प्रतिक्रिया जैसी कार्रवाई हो सकती है. पुलवामा में भारतीय अर्धसैनिकों के काफिले पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हवाई हमले किए. उस दौरान दोनों देश युद्ध के काफी करीब पहुंचते लग रहे थे.
2019 में ही भारत ने जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता और विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 रद्द कर दिया. पाकिस्तान ने इस फैसले की निंदा की. धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में कुछ समय तक प्रदर्शन भी हुए. कश्मीर में बेचैनी अब भी है लेकिन बीते कुछ बरसों से यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर बहुत ध्यान नहीं बटोर पा रहा है.
कश्मीर अब भी एक सुलगता क्षेत्र बना हुआ है, जहां परमाणु हथियारों वाले तीन देश आपस में उलझे हुए हैं.