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क्या दिल्ली चुनाव से गायब है साफ हवा-पानी का मुद्दा

३० जनवरी २०२५

राजधानी दिल्ली यमुना नदी के गंदे पानी और प्रदूषित हवा के लिए बदनाम है. आप, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही पार्टियां इस स्थिति को सुधारने का वादा कर रही हैं. लेकिन क्या इन चुनावों में प्रदूषण के मुद्दे पर वोट डाले जाएंगे?

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दिल्ली में इंडिया गेट के सामने मास्क लगाकर टहलती कुछ महिलाएं
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए पांच फरवरी को वोट डाले जाएंगेतस्वीर: Arvind Yadav/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance

20 साल की माईशा रिज्वी दिल्ली की कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र में रहती हैं. पांच फरवरी को होने वाले चुनावों में वे पहली बार अपना वोट डालेंगी. माईशा कहती हैं कि चुनावों में प्रदूषण एक अहम मुद्दा होना चाहिए और पार्टियों को यह बताना चाहिए कि दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए उनकी योजना क्या है. लेकिन क्या विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और अन्य मतदाताओं की भी यही प्राथमिकता है.

26 साल के पुष्कर द्विवेदी पेशे से पत्रकार हैं और अपना यूट्यूब चैनल चलाते हैं. वह चुनाव से पहले लोगों का मिजाज समझने के लिए दिल्ली की कई विधानसभा क्षेत्रों में जा चुके हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया कि चुनावी माहौल में प्रदूषण का मुद्दा गुम सा हो गया है. उन्होंने कहा, "दस में से एक व्यक्ति ही प्रदूषण के बारे में बोलता है. बाकी लोग पार्टियों की आपसी लड़ाई, कानून व्यवस्था और सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में ही बात करते हैं. यह देखकर काफी हैरानी होती है.”

दिल्ली में यमुना नदी के झागों के बीच नाव लेकर पहुंचा एक व्यक्ति
प्रदूषक तत्वों के चलते दिल्ली में कई जगह यमुना नदी झागों से भर जाती हैतस्वीर: MONEY SHARMA/AFP/Getty Images

कई तरह का प्रदूषण झेलती है दिल्ली

राजधानी दिल्ली में अक्टूबर से लेकर जनवरी तक हवा की गुणवत्ता काफी खराब रहती है. प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के हवाले से जानकारी दी है कि साल 2024 में दिल्ली में औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई 209 रहा था. वहीं, जनवरी, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर का औसत एक्यूआई 314 था. यह साल भर के औसत एक्यूआई का लगभग डेढ़ गुना है.

भारत के 10 शहरों में 7 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण सेः रिपोर्ट

इन महीनों के दौरान, यमुना नदी में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. केमिकलों की वजह से बनी झागों से नदी की धारा छिप जाती है. इससे लोगों के स्वास्थ्य के अलावा उनकी आस्था भी प्रभावित होती है. पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रदूषण की वजह से यमुना नदी में छठपर्व मनाने पर रोक लगा दी थी. कोर्ट का कहना था कि इससे श्रद्धालुओं की सेहत को नुकसान हो सकता है.

इसके अलावा, दिल्ली में कूड़े के पहाड़ भी एक बड़ी समस्या हैं. दिल्ली में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में तीन बड़ी लैंडफिल साइट्स हैं. हिंदुस्तान टाइम्स ने पिछले साल अप्रैल में दिल्ली नगर निगम की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि इन तीनों लैंडफिल साइट्स पर 1.7 करोड़ टन से ज्यादा कचरा मौजूद था.

गाजीपुर लैंडफिल साइट पर मौजूद एक कुत्ता और बैकग्राउंड में दिख रही ऊंची इमारतें.
गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कई बार आग लगने की घटनाएं भी हो चुकी हैं. इससे भारी प्रदूषण होता है.तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS

प्रदूषण को लेकर पार्टियों के वादे

दिल्ली में पिछले दस साल से सत्ता में बनी हुई आम आदमी पार्टी ने इस बार जनता से 15 बड़े वादे किए हैं और इन्हें केजरीवाल की गारंटी नाम दिया है. इनमें छठवें नंबर पर यमुना को साफ करने की गारंटी दी गई है. साफ हवा और कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने से जुड़ी कोई गारंटी नहीं दी गई है. वहीं, विपक्ष का कहना है कि केजरीवाल ने 2015 में कहा था कि पांच साल के भीतर यमुना नदी को साफ कर दिया जाएगा. लेकिन नौ साल बाद भी यमुना की हालत नहीं सुधरी है.

कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 26 पन्नों का घोषणापत्र जारी किया है. इसमें 21वें पन्ने पर वायु, जल और भूमि प्रदूषण से जुड़े वादे किए गए हैं. इनमें यमुना नदी को साफ करने और उसके तटों पर से अतिक्रमण हटाने का वादा किया गया है. कचरे से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए हरित पुलिस स्टेशन बनाने की बात कही है. इसके अलावा, कूड़ा-कचरा जलाने वालों पर जुर्माना लगाने का वादा भी किया है.

भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली चुनावों के लिए 64 पन्नों का घोषणापत्र जारी किया है. इसमें यमुना नदी को साफ करने, कचरे के पहाड़ों को खत्म करने और 2030 तक औसत एक्यूआई को आधा करने का वादा किया है. यह भी बताया है कि इन वादों को कैसे पूरा किया जाएगा. जैसे, नालों के पानी को यमुना में छोड़ने से पहले ट्रीट करने की बात कही है. सूखे और गीले कचरे को इकट्ठा करने और उसके प्रबंधन के लिए व्यवस्था करने का वादा किया है. 

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क्या प्रदूषण के मुद्दे पर पड़ेंगे वोट

अखिलेश यादव ‘द पॉलिटिकल पार्टनर्स' नाम की एक पीआर कंपनी में सीईओ हैं. उनकी कंपनी दिल्ली के चार विधानसभा क्षेत्रों में पार्टियों के प्रचार-प्रसार का काम देख रही है. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "यह चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जा रहा है. प्रदूषण पर थोड़ी-बहुत बात हो रही है लेकिन यह ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसके आधार पर वोट डाले जाएं. खासकर पिछड़े इलाकों में रह रहे लोगों के लिए अभी भी बिजली, पानी, पक्की नालियों और सड़कों का मुद्दा ज्यादा महत्वपूर्ण है.”

सर्वे एजेंसी सी-वोटर का एक हालिया सर्वे उनकी इस बात की पुष्टि करता है. इस सर्वे में शामिल दिल्ली के 21 फीसदी लोगों के लिए सबसे जरूरी मुद्दा बेरोजगारी था. वहीं, 18 फीसदी लोग बिजली, पानी और सड़क के लिए चिंतित थे. 15 फीसदी ने महंगाई को सबसे जरूरी मुद्दा बताया. वहीं, सिर्फ 1.4 फीसदी लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन का मुद्दा सबसे जरूरी था.

पुष्कर इसका एक अलग पहलू सामने रखते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "जिन इलाकों में लोग प्रदूषण से सीधा प्रभावित होते हैं, वहां प्रदूषण को लेकर बात होती है. वहीं, जहां प्रदूषण का सीधा प्रभाव नहीं है, वहां इसे लेकर उतनी चिंता भी नहीं है.” वह इसे एक उदाहरण देकर समझाते हैं. वह कहते हैं, "पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र गाजीपुर में स्थित कचरे के पहाड़ के काफी नजदीक है, इसलिए वहां के लोगों के लिए कचरा एक अहम मुद्दा है. लेकिन चांदनी चौक के मतदाताओं के लिए यह उतना जरूरी नहीं है.”

 

आदर्श शर्मा
आदर्श शर्मा डीडब्ल्यू हिन्दी के साथ जुड़े आदर्श शर्मा भारतीय राजनीति, समाज और युवाओं के मुद्दों पर लिखते हैं.