क्या परमाणु ऊर्जा के सहारे हासिल होंगे जलवायु के लक्ष्य?
१७ जनवरी २०२५परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने के दौरान कोई कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है. इसलिए, इसे दुनिया की तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, परमाणु ऊर्जा से जीवाश्म ईंधन की तरह प्रदूषण नहीं होता है, लेकिन इसके साथ भी पर्यावरण संबंधी कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं. इनमें यूरेनियम खदानों से होने वाला अप्रत्यक्ष उत्सर्जन, प्रदूषित पानी, रेडियोधर्मी कचरा और चेर्नोबिल जैसे हादसों का जोखिम शामिल है.
हाल के महीनों में, तकनीक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां, जैसे कि मेटा, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, और गूगल ने कार्बन तटस्थता हासिल करने के लक्ष्यों के तहत परमाणु ऊर्जा में निवेश करने की योजना की घोषणा की है. जबकि, इन कंपनियों ने पहले सिर्फ अक्षय ऊर्जा पर निर्भर रहने का वादा किया था.
चूंकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए बहुत कम समय बचा है, इसलिए कुछ नीति निर्माता और वित्तीय समर्थक भी परमाणु ऊर्जा को फिर से बढ़ावा देने के पक्ष में आ गए हैं.
जलवायु परिवर्तन घटाने में कितने काम की परमाणु ऊर्जा
जर्मनी को अपने आखिरी परमाणु रिएक्टरों को बंद किए हुए करीब दो साल हो गए हैं, लेकिन अब देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियां सीडीयू और सीएसयू परमाणु तकनीक पर और अधिक शोध करने की मांग कर रही हैं. ये पार्टियां बंद किए गए परमाणु बिजली संयंत्रों को फिर से चालू करने की संभावना पर भी विचार करना चाहती हैं.
फरवरी में होने वाले जर्मन संघीय चुनाव को ध्यान में रखते हुए, सीडीयू और सीएसयू ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि परमाणु ऊर्जा ‘विशेष रूप से जलवायु लक्ष्यों और ऊर्जा की आपूर्ति की सुरक्षा के संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.'
चांसलर पद के लिए सीडीयू उम्मीदवार फ्रीडरिष मैर्त्स ने जर्मनी के परमाणु ऊर्जा से पीछे हटने को ‘रणनीतिक गलती' बताया है. उन्होंने कहा कि यह सोचना अवास्तविक है कि देश के बंद हो चुके आखिरी रिएक्टर को फिर से चालू किया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो देश के बंद हो चुके आखिरी रिएक्टर को फिर से चालू करना संभव नहीं है.
जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी भी ‘टिकाऊ और गंभीर ऊर्जा मिश्रण' के हिस्से के तौर पर परमाणु ऊर्जा की ओर लौटने पर जोर दे रही है. पार्टी की ओर से चांसलर पद के उम्मीदवार एलिस वाइडेल ने हाल ही में जर्मन ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ को दिए एक इंटरव्यू में दावा किया कि इसका ‘कार्बन फुटप्रिंट शून्य है.'
इस बीच, सत्तारूढ़ गठबंधन सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट और ग्रीन्स ने परमाणु ऊर्जा की ओर लौटने से इनकार कर दिया है. दरअसल, परमाणु ऊर्जा के रिएक्टर के निर्माण का कार्य काफी जटिल होता है और इसमें काफी समय भी लगता है. इस प्रक्रिया के दौरान अप्रत्यक्ष तौर पर काफी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है.
वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन (डब्ल्यूएनए) के प्रवक्ता हेनरी प्रेस्टन का मानना है कि हाल के वर्षों में नीति निर्माता अधिक ‘व्यावहारिक' हो गए हैं. वे ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु आपातकाल के बीच संतुलन बना रहे हैं. साथ ही, वे ‘बड़ी मात्रा में' स्वच्छ ऊर्जा की संभावनाओं के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में आने वाली बढ़ी हुई लागत और समय को भी ध्यान में रख रहे हैं.
हालांकि, पर्यावरणीय समूहों ने लगातार इस बात पर ध्यान दिलाया है कि नई परमाणु परियोजनाओं में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होती है. सभी औपचारिकताओं और अनुमतियों के बाद इन परियोजनाओं को पूरा होने में लगभग एक दशक का समय लग जाता है. इसलिए, जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ये परियोजनाएं समय पर तैयार नहीं हो पाएंगी.
जलवायु को लेकर वैश्विक स्तर पर अभियान चलाने वाली संस्था ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क यूरोप' ने ऑनलाइन फैक्ट चेक में कहा, "तेजी से बदलाव के लिए मौजूदा तकनीकों और समाधानों का इस्तेमाल करने की जरूरत है. उदाहरण के लिए, पवन और सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करना, ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करना, और ऐसी प्रणाली का इस्तेमाल करना जो सभी मौसम के अनुकूल हों.”
2024 की वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट (डब्ल्यूएनआईएसआर) में कहा गया है, "परियोजना पूरा होने में लगने वाले समय और लागत के मामले में अक्षय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा से लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रही है. इसलिए, अधिकांश देशों में परमाणु ऊर्जा के बजाय अक्षय ऊर्जा स्रोतों को चुना जा रहा है.” इस रिपोर्ट में, आने वाले दशकों में परमाणु क्षमता को बढ़ाने की योजनाओं को ‘अवास्तविक' कहा गया है.
क्या छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर सुरक्षित विकल्प हैं?
संयुक्त राज्य अमेरिका में, अमेजन और गूगल छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) से बिजली खरीदने की योजना बना रहे हैं. ये छोटे रिएक्टर 300 मेगावाट से कम क्षमता वाले उन्नत परमाणु संयंत्र हैं. यह क्षमता सामान्य परमाणु संयंत्र का लगभग एक तिहाई है.
तकनीक के क्षेत्र की इन दिग्गज कंपनियों ने कहा कि परमाणु ऊर्जा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और डेटा सेंटर की काफी ज्यादा ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगी. साथ ही, उनकी शुद्ध-शून्य जलवायु प्रतिज्ञाओं को भी पूरा करेगी.
डाटा सेंटर और एआई आज दुनिया की कुल ऊर्जा आपूर्ति के 1 से 3 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल करते हैं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि 2030 तक यह खपत दोगुनी हो जाएगी.
अमेरिका में कॉन्स्टेलेशन एनर्जी के सीईओ जो डोमिन्गुएज ने सितंबर में माइक्रोसॉफ्ट के साथ 20 साल के परमाणु ऊर्जा आपूर्ति समझौते की घोषणा करते हुए कहा कि डेटा सेंटर को ‘हर घंटे काफी ज्यादा मात्रा में कार्बन-मुक्त और विश्वसनीय ऊर्जा की जरूरत होती है. परमाणु संयंत्र ही एकमात्र ऊर्जा स्रोत है जो लगातार उस जरूरत को पूरा कर सकता है.'
छोटे रिएक्टर के समर्थकों का कहना है कि पारंपरिक रिएक्टरों की तुलना में एसएमआर अधिक सुरक्षित और सस्ते हैं. इन्हें जल्दी से चालू किया जा सकता है. साथ ही, उन जगहों पर बनाया जा सकता है जहां पहले जीवाश्म ईंधन संयंत्र थे. अमेजन और गूगल के साथ अमेरिका की साझेदारी 2030 के दशक की शुरुआत तक होने का अनुमान है.
वहीं दूसरी ओर, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क ने ‘छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों' के ‘खोखले वादों' के खिलाफ तर्क दिया है. उसने कहा कि ‘इस तकनीक का अभी तक व्यावसायिक स्तर पर परीक्षण नहीं किया गया है.' वैश्विक स्तर पर, अब तक केवल दो एसएमआर प्रोजेक्ट बनाए गए हैं. इनमें से एक रूसी और एक चीनी डिजाइन का रिएक्टर है. उन्हें 2019 और 2021 में ग्रिड से जोड़ा गया था.
जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित डब्ल्यूएनआईएसआर की रिपोर्ट में बताया गया है कि दोनों परियोजनाओं में निर्माण में काफी देरी हुई. इन परियोजनाओं को पूरा होने में शुरुआती अनुमान से दो से तीन गुना अधिक समय लगा. इन परियोजनाओं की लागत भी बढ़ गई और अब तक बिजली उत्पादन के मामले में ये परियोजनाएं उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर रही हैं.
हालांकि, परमाणु उद्योग ने कहा कि इन परियोजनाओं में देरी होना हैरानी की बात नहीं थी. रूस और चीन में बनाए गए पहले एसएमआर यानी छोटे संयंत्र पायलट प्रोजेक्ट थे. लंदन से डीडब्ल्यू से बात करते हुए, डब्ल्यूएनए के प्रेस्टन ने कहा कि भविष्य की जिन परियोजनाओं पर फिलहाल काम किया जा रहा है वे संभवतः जल्दी ऑनलाइन आ सकती हैं, यानी उनसे बिजली उत्पादन शुरू किया जा सकता है.
स्वतंत्र परमाणु नीति विश्लेषक और डब्ल्यूएनआईएसआर रिपोर्ट के प्रकाशक माइकेल श्नाइडर ने एक ईमेल में कहा कि यह सिर्फ ‘तब संभव होगा जब सभी एसएमआर एक जैसे या लगभग एक जैसे बनाए जाएं. रूस और चीन की तरह अलग-अलग डिजाइन वाले एसएमआर के निर्माण से ऐसा नहीं हो सकता है.'
श्नाइडर ने कहा कि सौर पैनल, ग्रिड से जुड़ी बैटरियां और विंड टर्बाइनों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. हर साल इनकी हजारों इकाइयां बनाई जाती हैं. यह ‘वास्तविक मॉड्यूलर निर्माण' का उदाहरण है, जो इन उद्योगों को नई तकनीकें विकसित करने और लागत कम करने में मदद करती है. उन्होंने आगे बताया, "परमाणु उद्योग ने चीन और रूस में हुए एसएमआर पायलट प्रोजेक्ट से सीखा है कि कोई भी इन परियोजनाओं को दोहराना नहीं चाहता है. किसी भी पश्चिमी देश में इन परियोजनाओं को लाइसेंस दिलाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है.”
हमें परमाणु ऊर्जा की कितनी जरूरत है?
दुबई में 2023 में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन में, पहली बार परमाणु ऊर्जा को ‘ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से और लगातार कमी' लाने के लिए कम उत्सर्जन वाली जरूरी तकनीकों में शामिल किया गया था.
संयुक्त राष्ट्र की इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज 2022 की रिपोर्ट में परमाणु ऊर्जा का भी उल्लेख किया गया है. इसमें कहा गया है कि ‘दुनिया भर में सभी कम कार्बन ऊर्जा प्रणालियां पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर नहीं रह सकती हैं.'
हालांकि, यह स्वीकार किया जाता है कि पवन और सौर ऊर्जा जीवाश्म ईंधन को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे, लेकिन ऊर्जा विश्लेषकों ने अक्सर कहा है कि अक्षय ऊर्जा हमेशा उपलब्ध नहीं रहती है. अक्षय ऊर्जा सूर्य की रोशनी और हवा की उपलब्धता पर निर्भर करती है.
दुबई में हुई जलवायु बैठक के बाद, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान जैसे बड़े परमाणु संपन्न राष्ट्र सहित 31 देशों ने 2050 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने का वादा किया है. अल साल्वाडोर, जमैका, मोल्डोवा और मंगोलिया जैसे कुछ अन्य देशों ने भी ऐसा ही वादा किया है. हालांकि, पिछले पांच सालों में परमाणु रिएक्टरों का निर्माण शुरू करने वाले चीन और रूस ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है.
डब्ल्यूएनआईएसआर की 2024 की रिपोर्ट में इन वादों के पूरा होने को लेकर संशय जताया गया है. रिपोर्ट में कई बाधाओं का जिक्र है. इनमें काफी ज्यादा लागत, निर्माण में लगने वाला ज्यादा समय और औद्योगिक क्षमता की कमी शामिल है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने के लिए 1,000 से अधिक नए रिएक्टरों की आवश्यकता होगी.
श्नाइडर ने दिसंबर 2023 में ‘बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' को दिए साक्षात्कार में कहा कि भले ही छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर से बहुत अधिक ऊर्जा मिलती है, तब भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘सैकड़ों या हजारों' ऐसे रिएक्टरों का निर्माण करना होगा.