जर्मनी में आलू के लिए बड़ा संकट बना कीट
रीड ग्लास विंग्ड सिकाडा नाम का एक कीट जर्मनी में आलू और दूसरी सब्जियों के लिए महामारी फैला रहा है. कुछ किसानों की तो पूरी फसल ही चौपट हो गई है. जर्मनी के लोगों पर इसका क्या असर होगा?
कीट का खतरा
दिखाई नहीं देता लेकिन बेहद खतरनाक है. रीड ग्लास विंग्ड सिकाडा पौधों में तेजी से फैल रही स्टोल्बर बीमारी के पीछे है. दक्षिणी जर्मनी के बाडेन वुर्टेमबर्ग के कृषि मंत्रालय के मुताबिक आलू, सब्जियों, चुकंदर की सप्लाई के लिए पहले ही "गंभीर खतरा" मान लिया गया है. यह कीट जर्मनी के लोअर सैक्सनी और सेक्सनी अनहाल्ट राज्यों तक फैल गया है.
किसानों की फसल हो रही है चौपट
सिगाडा एक बैक्टीरियम को पौधों तक पहुंचाता है जिनकी वजह से आलू के पौधे मुरझा जाते हैं और चुकंदर नरम हो जाता है. इसके नतीजे में भारी नुकसान होता है. कृषि वैज्ञानिक सब्जियों के नमूने और सिकाडा के लार्वा तैयार कर रहे हैं जिससे कि प्रयोगशाला में उन पर प्रयोग किए जा सकें.
खतरे की घंटी
नमूनों को कड़ी बारीकी से माइक्रोस्कोप के जरिए परखा जा रहा है. शुगर बीट ग्रोअर्स एसोसिएशन के चेयरमैन के मुताबिक रीड ग्लास विंग्ड सिकाडा ने यूरोपीय संघ में भोजन की आपूर्ति के लिए अब तक का सबसे बड़ा खतरा पैदा किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है. किसान ने असरदार मदद के लिए तुरंत कदम उठाने की मांग की है.
सब्जियां खराब होंगी
सिकाडा अपने साथ कैंडिडेटस फाइटोप्लाज्मा सोलानी बैक्टिरियम लेकर आता है. जो पौधों में अपने डंक मारने के साथ छोड़ देते हैं. इसकी वजह से अकसर स्टोलबर बीमारी पैदा होती है. इस कारण पौधे या तो मुर्झा जाते हैं या फिर उनका जड़ खराब हो जाता है. सब्जियों को स्टोर करना मुश्किल हो जाता है, फसल घट जाती है और उनका स्वाद बिगड़ जाता है. इसकी वजह है उनमें मिठास का कम होना.
केवल आलू के लिए नहीं है संकट
प्याज, पत्तागोभी, गाजर, मिर्च, रुबाब जैसी कई और सब्जियां इस बीमारी की चपेट में आती हैं. ये वैज्ञानिक रूबाब के खेतों में सिकाडा के संक्रमण के कारण हुए नुकसान का विश्लेषण कर रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन को दोष
इस तरह के अवांछित कीटों के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, खासतौर से मौसम. जलवायु परिवर्तन गर्मियों का ताप बढ़ा रहा है और ठंड को उतना सर्द नहीं होने दे रहा. ऐसा वातावरण कीटों के पनपने के लिए काफी अनुकूल है. यह उनकी सक्रियता का दौर बढ़ा देता है, प्रजनन को तेज करता है और उन्हें ज्यादा इलाकों तक पहुंचने में मदद करता है. इसकी वजह से खतरा और बढ़ता है.
घट जाएगी स्थानीय उपज
पौधों को जाली से ढक कर इस बीमारी को कुछ हद तक रोकने में मदद मिल सकती है. अधिकारियों के मुताबिक स्टोल्बर से इंसानों की सेहत को कोई खतरा नहीं है. आलू या दूसरी सब्जियों में अगर उनके खराब होने के निशान दिख जाएं तो उन्हें बेचने की वैसे भी अनुमति नहीं है. हालांकि अगर यह बीमारी इसी तरह फैलती रही तो पतझड़ के मौसम में स्थानीय सब्जियों की कमी जरूर हो जाएगी.
कितनी सब्जियां चाहिए जर्मनी को
जर्मन लोग अमूमन प्रतिदिन 600 ग्राम तक सब्जियां खाते हैं. बीते 20 सालों में सब्जियों की इस खपत में 24 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जर्मनी सब्जियों के अपने कुल उपभोग का लगभग 36 फीसदी हिस्सा ही उगा पाता है. बाकी की सब्जियां उसे दूसरे देशों से आयात करनी पड़ती है. सब्जियां तो यहां कई सारी उगाई जाती हैं लेकिन सबसे ज्यादा गाजर, प्याज और पत्तागोभी उगाया जाता है.
आलू की खपत
दूसरे यूरोपीय देशों की तरह ही जर्मनी में भी आलू की खपत काफी ज्यादा है. औसत रूप से हर आदमी यहां एक साल में 60 किलो तक आलू खा जाता है. आलू सिर्फ सब्जी के तौर पर ही नहीं बल्कि कई बार रोटी चावल की तरह भी खाई जाती है. ऐसे कई पकवान हैं जिन्हें आलू के साथ खाया जाता है. 2021 में जर्मनी में 1.07 करोड़ टन आलू पैदा हुआ था. देश में पैदा होने वाले आलू का बड़ा हिस्सा जर्मन लोग खुद खा जाते हैं.