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विकलांग और एसिड अटैक पीड़ित क्यों रहें डिजिटल सेवाओं से दूर?

१ मई २०२५

विकलांगों और एसिड अटैक पीड़ितों को भी सभी डिजिटल सेवाएं मिल सकें इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है. अदालत ने इसे सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा निर्देश दिए हैं.

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एक नेत्रहीन व्यक्ति का हाथ ब्रेल में कुछ पढ़ते हुए
सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल सेवाओं को सब तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया हैतस्वीर: Sumit Sanyal/picture alliance

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में आदेश दिया कि "नो योर कस्टमर" (केवाईसी) के मानकों में इस तरह का संशोधन किया जाए जिससे यह विकलांगों के लिए भी सुलभ हो सके. अदालत ने कहा कि "डिजिटल एक्सेस का अधिकार" संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन और आजादी के अधिकार का "एक स्वाभाविक भाग" है.

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि केवाईसी ना हो पाने की वजह से उनका बैंक खाता नहीं खुल पा रहा है. अदालत ने यह बातें दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहीं. सुनवाई न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की दो जजों वाली पीठ कर रही थी.

विकलांगों की समस्याएं

एक याचिका में पूरी तरह से दृष्टिहीन एक याचिकर्ता ने दावा किया था केवाईसी प्रक्रिया में उनके लिए कई बाधाएं हैं, जैसे सेल्फी लेना, ठीक से लिखित हस्ताक्षर करना, जल्दी से ओटीपी पढ़ उसे सही जगह पर भरना आदि. उनका कहना था कि इस तरह के नियम विकलांगों के खिलाफ भेदभाव करते हैं.

मुंबई में आरबीआई के मुख्यालय के सामने से गुजरती एक महिला
आरबीआई को डिजिटल वित्तीय सेवाओं को विकलांगों के लिए भी पूरी तरह से सुलभ बनाने के लिए कहा गया हैतस्वीर: Rajanish Kakade/AP/picture alliance

इसके अलावा एक याचिका एक एसिड अटैक पीड़िता ने भी दायर की थी जिसमें उन्होंने अदालत का ध्यान उन दिक्कतों की तरफ खींचने की कोशिश की थी जो उनके सामने केवाईसी करवाने के दौरान सामने आती हैं. विशेष रूप से उन्होंने यह बताया कि मौजूदा मानकों के मुताबिक कैमरे में देखकर अपनी पलकें झपकनी होती है, जबकि उनकी पलकें एसिड हमले में जल गई थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसिड अटैक की वजह से जिनके चेहरे या आंखें प्रभावित हुईं उन्हें दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के तहत विकलांग माना जाता है, इसलिए जब केवाईसी प्रक्रिया को विकलांगों के अनुकूल बनाने का सवाल उठ रहा है, तो इसके दायरे में वो भी आएंगे.

व्यवस्था कैसे बने सबके लिए सुलभ

यह सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने करीब 20 दिशा निर्देश दिए. पीठ ने आरबीआई को आदेश दिया कि वो दिशा निर्देश जारी करे जिनके तहत केवाईसी के लिए पारंपरिक कदमों के अलावा और तरीके अपनाए जाएं. इसमें अंगूठे के छाप को मान्य करना भी शामिल किया जाए.

कोई भी ना छूटे पीछे

इसके अलावा नए ग्राहकों के लिए वीडियो-आधारित केवाईसी का सहारा लेना चाहिए जिसमें पलकें झपकाना अनिवार्य नहीं है. अदालत ने यह भी कहा कि कागज-आधारित केवाईसी भी जारी रहना चाहिए और इसके लिए उसने भारत सरकार के दूरसंचार विभाग को आदेश दिया कि वो अपने नियमों में बदलाव लाए.

इसके अलावा सांकेतिक भाषा अनुवाद लाने, क्लोज्ड कैप्शंस लाने, ऑडियो वर्णन लाने, ब्रेल जैसे फॉर्मेट और आवाज आधारित सेवाएं बनाने के लिए भी सरकार को आदेश दिया. साथ ही अदालत ने सरकार को यह भी आदेश दिया कि वो सुनिश्चित करे कि सभी वेबसाइट, मोबाइल ऐप्स और डिजिटल प्लेटफार्म सभी के लिए सुलभ हों और दिव्यांगजन अधिनियम के भी अनुकूल हों.