दिल्ली में रिकॉर्ड चौथी जीत की तलाश में 'आप'
५ फ़रवरी २०२५इस बार दिल्ली में विधानसभा चुनाव कथित "शराब घोटाले" की छाया में हो रहे हैं, जिसके चक्कर में 'आप' मुखिया अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के कई नेताओं को जेल जाना पड़ा. कई महीने जेल में बिताने के बाद केजरीवाल को जमानत पर रिहा तो कर दिया गया लेकिन रिहाई के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
इन चुनावों में केजरीवाल अपनी पुरानी सीट नई दिल्ली से लड़ रहे हैं. पार्टी के चुनावी अभियान का नारा रहा है "केजरीवाल आएंगे" यानी पिछले करीब 12 सालों की तरह इस बार भी पार्टी चुनाव केजरीवाल के नाम पर ही लड़ रही है. पार्टी को उम्मीद है कि 2015 और 2020 की तरह इस बार भी दिल्ली की जनता केजरीवाल को ही चुनेगी.
रिकॉर्ड की तलाश
इस बार अगर आप फिर से चुनाव जीतती है तो यह दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में एक नया रिकॉर्ड होगा. आप ने पहली बार 2013 में विधानसभा चुनाव लड़े थे और 28 सीटें जीती थीं. तब पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाई थी और केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. यह सरकार सिर्फ 48 दिन चली.
2015 में आप ने 67 सीटें जीत कर बहुमत से सरकार बनाई. 2020 में पार्टी की सीटें कुछ कम हुईं लेकिन फिर भी 62 सीटें जीत कर आप ने एक बार फिर सरकार बनाई और केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. इसी के साथ उन्होंने कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली थी.
दीक्षित ने 1998 से 2013 के बीच लगातार तीन बार कांग्रेस को चुनावों में जीत दिलाई और लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं. अगर आप इस बार फिर जीतती है तो पार्टी लगातार चौथी बार सरकार बनाएगी. अगर केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे तो यह उनका चौथा कार्यकाल होगा.
हालांकि, यह उनका लगातार चौथा कार्यकाल नहीं होगा, क्योंकि 2024 में उनके इस्तीफे के बाद आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया गया था.
'आप' के लिए कठिन दौर
आप इन चुनावों में कई चुनौतियों का सामना कर रही है. केजरीवाल और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जैसे पार्टी के शीर्षस्थ नेता घोटाले के आरोप और जेल की सजा की छाया में चुनाव लड़ रहे हैं. पार्टी को भी शायद उसके खिलाफ सत्ता-विरोधी हालात का एहसास है, क्योंकि करीब 20 मौजूदा विधायकों को दोबारा चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया गया.
इनमें से कई विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया है. इसके अलावा सिसोदिया को भी उनकी पुरानी सीट पटपड़गंज से हटा कर जंगपुरा से लड़ाया जा रहा है. दिल्ली में वायु प्रदूषण, यमुना में प्रदूषण, लैंडफिल स्थलों पर सालों से खड़े कचरे के पहाड़ों में कमी ना आना जैसे कई मुद्दों पर पार्टी को घेरा जा रहा है.
इसके अलावा समीक्षकों की मुसलमान और दलित वोटों पर भी नजर है. लोकसभा चुनावों में दलित और मुसलमान मतदाताओं ने बड़ी संख्या में कांग्रेस को चुना था. इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि इन चुनावों में भी उनकी पसंद कांग्रेस रहती या आप या बीजेपी.
बीजेपी का आक्रामक अभियान
बीजेपी ने एक फिर दिल्ली के मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की है. 2013 से राजधानी में कांग्रेस के पतन के बाद से ही बीजेपी दिल्ली की जनता की पहली पसंद बनने की आस लगाए बैठी है. 2013 के चुनावों में बीजेपी ने ही सबसे ज्यादा सीटें हासिल भी की थीं, लेकिन आप और कांग्रेस ने हाथ मिला कर सरकार बना ली थी.
उसके बाद आप के वर्चस्व का ऐसा दौर शुरू हुआ कि बीजेपी 2015 में सिर्फ तीन और 2020 में आठ सीटें ही जीत पाई. हालांकि इस दौरान पार्टी का वोट शेयर 30 से 40 प्रतिशत के बीच बना रहा, जिससे पार्टी को दिल्ली की जनता के बीच अपनी लोकप्रियता का संकेत मिलता रहा.
इस अवधि में लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटें भी बीजेपी ही जीतती रही. इन सब संकेतों की बदौलत इस बार भी पार्टी ने चुनावी अभियान अपनी पूरी ताकत से लड़ा. पार्टी के राष्ट्रीय मैस्कॉट बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान का नेतृत्व किया और 'आप' को 'आपदा' बताते हुए एक आक्रामक अभियान चलाया.
बीजेपी ने दिल्ली के मतदाताओं के लिए कई लुभावने वादे भी किए. यहां तक कि एक फरवरी को पेश किए केंद्रीय बजट की घोषणाओं को भी दिल्ली के चुनावों में भुनाने की कोशिश की गई. मतदान के दिन मोदी ने प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में संगम पर डुबकी भी लगाई. उनकी और उनकी पार्टी की सभी कोशिशें कितना रंग लाएंगी, यह आठ फरवरी को मतगणना के बाद सामने आएगा.