क्या कहती है उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता दशकों से राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के पुराने चुनावी वादों में शामिल रही है. उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार इस पर कानून ले आई है. जानिए क्या प्रावधान हैं उत्तराखंड के कानून में.
दशकों पुराना मुद्दा
राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) तीन ऐसे मुद्दे हैं जो दशकों से बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा रहे हैं. माना जाता है कि इन तीनों को सबसे पहले 1989 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में शामिल किया था.
क्या है यूसीसी
समान नागरिक संहिता मूल रूप से एक ऐसी परिकल्पना है जिसके तहत अलग अलग समुदायों की मान्यताओं के अनुरूप बनाए गए पर्सनल लॉ या फैमिली लॉ को हटा दिया जाएगा और सबको एक ही कानून का पालन करना होगा. ये पर्सनल लॉ विवाह, तलाक, उत्तराधिकार जैसे जटिल विषयों पर बनाए गए थे ताकि समुदायों को उनके धर्म और उनकी मान्यताओं के आधार पर इन क्षेत्रों में झगड़ों के समाधान का अधिकार रहे.
उत्तराखंड का कानून
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के मुताबिक उत्तराखंड के कानून के तहत राज्य में बहुविवाह प्रतिबंधित हो जाएगा. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019 के मुताबिक भारत में 1.9 प्रतिशत मुस्लिम पुरुषों, 1.3 हिंदू पुरुषों और दूसरे समुदायों के 1.6 पुरुषों की एक से ज्यादा पत्नियां थीं. ये 2011 में ली गई मिजोरम के जियोना आर के परिवार की तस्वीर है, जिनकी 39 पत्नियां थीं.
बराबर हिस्सा
नए कानून के तहत राज्य में बेटों और बेटियों को पैतृक धन-संपत्ति में बराबर हिस्सा देना होगा. इसके अलावा अविवाहित दंपतियों की संतानों, गोद लिए गए बच्चों और सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को बराबर अधिकार होंगे.
शादी की उम्र
लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सीमा 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल रखी गई है.
तलाक में भी बराबरी
नए कानून के तहत उत्तराखंड में तलाक के मामलों में भी पुरुषों और महिलाओं को एक जैसे अधिकार होंगे.
पक्ष और विपक्ष
हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, पारसियों और यहूदियों, सभी के अपने अपने फैमिली लॉ हैं. बीजेपी का मानना है कि पर्सनल लॉ एक देश की भावना जगाने की राह में अवरोधक हैं. यूसीसी के आलोचकों का कहना है कि इतनी विविधताओं वाले देश में ऐसा कानून लाना अलोकतांत्रिक है.
विधि आयोग ने ठुकरा दिया था
2018 में 21वें विधि आयोग ने यूसीसी के प्रस्ताव का निरीक्षण किया था और कहा था कि "इस समय यह देश के लिए ना तो जरूरी है और ना वांछनीय." हालांकि विधि आयोग एक बार फिर यूसीसी के प्रस्ताव पर काम कर रहा है.