अमेरिकी टैरिफ के आगे नहीं झुकेगा भारतः पीयूष गोयल
३० अगस्त २०२५भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को नई दिल्ली में एक निर्माण उद्योग सम्मेलन में कहा, "भारत न तो कभी झुकेगा और न ही कमजोर दिखेगा. हम मिलकर आगे बढ़ेंगे और नए बाजारों पर कब्जा करेंगे.” उन्होंने भरोसा जताया कि चालू वित्तीय वर्ष में भारत का निर्यात 2024-25 की तुलना में अधिक रहेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की वापसी के बाद अमेरिका ने फिर से टैरिफ को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इस बार भारत को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उसने रूस से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल खरीदना जारी रखा है. अमेरिका चाहता है कि दुनिया रूस पर आर्थिक दबाव डाले ताकि यूक्रेन युद्ध का अंत हो, लेकिन भारत ने तेल खरीद को अपने ऊर्जा सुरक्षा के लिए अनिवार्य बताया है.
भारत सरकार ने इन टैरिफों को "अनुचित, अन्यायपूर्ण और असंगत” बताया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इतने ऊंचे शुल्क कई क्षेत्रों पर लगभग व्यापार प्रतिबंध जैसा असर डालेंगे. छोटे और मध्यम उद्योगों को सबसे बड़ा झटका लग सकता है.
निर्यातकों की मुश्किलें
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार रहा है. 2024 में भारत ने वहां 87.3 अरब डॉलर का निर्यात किया था. वस्त्र, समुद्री उत्पाद और आभूषण जैसे क्षेत्र अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. लेकिन50 प्रतिशत शुल्क लगने के बाद इनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है.
कई निर्यातकों ने पहले ही बताया है कि अमेरिकी कंपनियों ने उनके ऑर्डर रद्द कर दिए हैं. खासकर टेक्सटाइल और सीफूड सेक्टर से ऑर्डर बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों को मिलने लगे हैं. इससे भारत में भारी पैमाने पर नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है.
सरकार ने संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में निर्यातकों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए जाएंगे. इसमें सब्सिडी, नए बाजारों के लिए प्रोत्साहन और वैकल्पिक व्यापार साझेदारी पर जोर शामिल हो सकता है.
नए बाजारों की तलाश
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के दौरे पर हैं. टोक्यो में जापानी प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने आर्थिक और रक्षा सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई.
इशिबा ने घोषणा की कि जापान अगले दस वर्षों में भारत में निजी निवेश को दोगुना कर 10 अरब येन (लगभग 680 करोड़ रुपये) तक ले जाएगा. मोदी ने जापान को "तकनीक का पावरहाउस” और भारत को "प्रतिभा का पावरहाउस” बताते हुए कहा कि दोनों देशों का मेल एशिया और दुनिया के लिए नए अवसर खोलेगा.
जापान और भारत के बीच हुए समझौते केवल निवेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रक्षा सहयोग भी इनमें शामिल है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया मिलकर "क्वाड” समूह का हिस्सा हैं, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना है.
भू-राजनीतिक संतुलन
मोदी की यह यात्रा उस समय हो रही है जब रूस और चीन भी एक साथ पश्चिमी देशों के "भेदभावपूर्ण प्रतिबंधों” का विरोध कर रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रविवार से चीन दौरे पर जा रहे हैं और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में मोदी और अन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे. इसके बाद वे बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ रक्षा और व्यापार सहयोग पर बातचीत करेंगे.
भारत का यह कूटनीतिक संतुलन दिलचस्प है. एक ओर उसे अमेरिका के भारी टैरिफ और व्यापार विवाद का सामना करना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर जापान, रूस और चीन जैसे देशों से उसके रिश्ते मजबूत होते दिख रहे हैं.
भारत सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है. एक ओर अमेरिकी बाज़ार पर निर्भरता घटाकर नए व्यापारिक साझेदार खोजना और दूसरी ओर घरेलू उद्योगों और निर्यातकों को सहारा देना.
विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में भारत अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में नए निर्यात अवसर तलाश सकता है. इसके अलावा भारत-जापान की नई साझेदारी से भी भारतीय कंपनियों को तकनीक और पूंजी तक बेहतर पहुंच मिलेगी.