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आस्थाभारत

क्या कुंभ में मची भगदड़ को रोका जा सकता था

मुरली कृष्णन
३० जनवरी २०२५

प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मची भगदड़ में कई लोगों के मारे जाने के बाद भारत में विशाल आयोजनों के दौरान सुरक्षा और भीड़ के नियंत्रण पर सवाल खड़े हो गए हैं.

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एक घायल व्यक्ति को स्ट्रेचर पर ले जाती पुलिसकर्मी
पुलिस के मुताबिक भगदड़ में 30 लोगों की जान चली गई और करीब 60 घायल हो गएतस्वीर: STR/XinHua/dpa/picture alliance

प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान बुधवार 29 जनवरी की सुबह एक से दो बजे के बीच संगम के पास भगदड़ मच जाने से कई लोगों की जान चली गई. पुलिस के बयान के मुताबिक 30 लोगों की जान चली गई और करीब 60 लोग घायल हो गए.

अपुष्ट स्रोतों से मिली खबर में यह संख्या 40 या ज्यादा बताई गई है. अपना नाम ना बताने की शर्त पर कुछ अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रायटर्स को बताया कि मरने वालों की संख्या 50 से ज्यादा है.

भगदड़ तब मची जब श्रद्धालुओं में संगम तक पहुंचने की होड़ मच गई. प्रत्यक्षदर्शियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि भीड़ ने बैरिकेडों को तोड़ दिया. इसके बाद लोग एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे और अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे लोगों के ऊपर हजारों लोग चढ़ते चले गए.

भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश करते पुलिसकर्मी
सरकार का कहना है कि भगदड़ तब मची जब श्रद्धालुओं ने पुलिस के बैरिकेड के ऊपर से फांदने की कोशिश कीतस्वीर: NIHARIKA KULKARNI/AFP

मेले में मौजूद सौरभ सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "सुबह के करीब 1.45 बज रहे थे और लोग भगदड़ में दबते चले जा रहे थे और मैं रौंदने वाली इस भीड़ को आगे बढ़ते हुए देख रहा था. जब यह त्रासदी हुई तब कई महिलाएं और बच्चे सोए हुए थे. मैं इस तरह की भीड़ देख कर सन्न रह गया था और एक घंटे बाद मैंने जमीन पर पड़ी लाशें देखीं."

एक हफ्ते से मेले में समय बिता रहे इंद्र शेखर भगदड़ के कुछ देर बाद मौके पर गए और देखा कि सैकड़ों लोगों को स्ट्रेचरों पर ले जाया जा रहा था. कई एम्बुलेंस गंभीर रूप से घायल लोगों को अस्पताल ले जा रही थीं.

शेखर ने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर भीड़ पर बेहतर नियंत्रण होता और पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी तैनात होते तो इस त्रासदी को होने से रोका जा सकता था. प्रशासन ने नदी तक जाने वाले 28 पीपा पुलों को वीआईपियों के लिए आरक्षित करने के लिए ब्लॉक कर दिया था, जिसकी वजह से सारी गड़बड़ हुई."

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भगदड़ तब मची जब श्रद्धालुओं ने संगम तक पहुंचने के लिए पुलिस के बैरिकेड के ऊपर से फांदने की कोशिश की.

धार्मिक आयोजनों में भगदड़ का इतिहास

कुंभ मेले के इतिहास में कई बार त्रासदी हुई है. इससे पहले के आयोजनों में भी बड़ी भीड़ से खतरा रहा है. विशेष रूप से 2003, 2010 और 2013 में तो सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी.

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इसके अलावा हाल में अन्य धार्मिक स्थलों पर भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं. जुलाई 2024 में उत्तर प्रदेश के ही हाथरस में एक स्वयंभू 'बाबा' के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 120 से ज्यादा लोग मारे गए थे. कार्यक्रम में ढाई लाख से ज्यादा लोग आए थे.

धार्मिक आयोजनों में भगदड़ तब मचती है जब वहां बड़ी और चलती हुई भीड़ जमा हो जाए और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सीमित कदम उठाए गए हों. निजी सुरक्षा कंपनी ब्लैक टाइगर सिक्योरिटी सर्विसेज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहा, "लगभग सभी धार्मिक भगदड़ों में भीड़ का ज्यादा बढ़ जाना, खराब भीड़ नियंत्रण और अफवाहों और घबराहट की वजह से भयंकर त्रासदियां हुई हैं."

महाकुंभ में क्या इंतजाम थे?

महाकुंभ की भगदड़ ने धार्मिक आयोजनों में भीड़ के नियंत्रण को लेकर चिंताओं को एक बार फिर उजागर कर दिया है. छह सप्ताह तक चलने वाले मेले में 40-45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अंदाजा है, जिसे देखते हुए कई इंतजाम किए गए हैं.

भीड़ की सघनता और आवाजाही के पैटर्न पर नजर रखने के लिए 2,700 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जिनमें से 300 से ज्यादा कैमरे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस हैं. ड्रोन भी तैनात किए गए हैं ताकि मेला स्थल में कई अलग अलग स्थानों पर जब भी लोगों का घनत्व क्षमता से ज्यादा बढ़ जाए तो अधिकारियों को पता चल जाए.

इसके अलावा, व्यवस्था बनाए रखने और भीड़ का नियंत्रण करने के लिए 40,000 से ज्यादा पुलिस अफसरों को तैनात किया गया है. उनकी मदद के लिए एक कमांड सेंटर भी बनाया गया है, जो सर्विलांस तंत्र से मिलने वाले रियल-टाइम डाटा का इस्तेमाल कर व्यवस्था पर नजर रखता है.

भगदड़ के स्थल पर फैले हुए सामान के बीन मायूस बैठा एक व्यक्ति
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भगदड़ प्रबंधन में कमियों की वजह से हुईतस्वीर: ARUN SANKAR/AFP

इतने इंतजाम के बावजूद भीड़ पर नियंत्रण असफल रहा. पूर्व पुलिस अधिकारी यशोवर्धन आजाद ने डीडब्ल्यू को बताया, "एआई जैसी तकनीकों ने भी भीड़ पर प्रभावी रूप से नियंत्रण करने और भीड़ को ज्यादा बढ़ने से रोकने में अधिकारियों को सक्षम नहीं बनाया है. साफ है कि टेक्नोलॉजी से मदद नहीं मिली है और इस तरह की भीड़ को संभालने के लिए नए सोच और नए तरीकों की जरूरत है."

क्या अलग किया जा सकता था?

महाकुंभ में श्रद्धालुओं को रियल-टाइम ट्रैकिंग के लिए कलाई पर बांधने वाले बैंड भी दिए गए थे, जिससे लापता हो जाने वाले लोगों को ढूंढने में और व्यापक रूप से सुरक्षा बढ़ाने में मदद करता है.

स्विट्जरलैंड के सेंट गैलेन विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक और सामाजिक मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर एना सीबेन ने बताया कि भगदड़ में फंस जाने वालों को अक्सर पता ही नहीं चलता है की कुछ गड़बड़ है और जब तक पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. सीबेन भीड़ के गतिविज्ञान पर वर्षों से रिसर्च कर रही हैं.

स्विट्जरलैंड के ही ईटीएच ज्यूरिष में कम्प्यूटेशनल सोशल साइंस के प्रोफेसर डिर्क हेल्बिंग का मानना है कि भगदड़ "क्राउड टर्ब्युलेंस" की वजह से होती है. यह तब होता है जब कई लोग एक ऐसी जगह पर आ जाते हैं जहां लोगों का घनत्व ज्यादा है, आगे बढ़ने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है और जहां लोग एक दूसरे के बीच में दबे हुए हैं.

भारत के बारे में आजाद ने कहा, "संभव है कि कुंभ में ठीक यही हुआ हो. इस तरह के बड़े आयोजन हमेशा खतरे से भरे रहते हैं. इसलिए एक अफवाह भी भगदड़ का कारण बन सकती है और लोगों को पता ही नहीं चलता की उसका कारण क्या था."