क्या भारत-कनाडा रिश्ते सुधरने के आसार नजर आ रहे हैं?
१९ जून २०२५करीब दो साल पहले कनाडा ने भारत पर कनाडा में एक खालिस्तानी नेता के हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था और तभी से दोनों देशों के संबंध खराब होने शुरू हो गए थे. कनाडा में हाल ही में संपन्न हुए जी7 सम्मलेन से जुड़े घटनाक्रम को देख कर लग रहा था कि दोनों देश बीते दो सालों की कड़वाहट को भुला देने की तरफ बढ़ रहे हैं.
हालांकि दोनों देशों के नेताओं के गर्मजोशी से हाथ मिलाने के एक दिन बाद ही रिश्तों के सुधरने के रास्ते में एक नई बाधा खड़ी हो गई. बुधवार 18 जून को कनाडा की खुफिया एजेंसी ने भारत को एक "हठी विदेशी हस्तक्षेप खतरा" बताया.
हस्तक्षेप के गंभीर आरोप
अपनी एक नई रिपोर्ट में कैनेडियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस (सीएसआईएस) ने कहा कि जून 2023 में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की वैंकूवर के पास की गई हत्या "खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ दमन की भारत की कोशिशों में महत्वपूर्ण तेजी और उत्तरी अमेरिका में कुछ लोगों को निशाना बनाने के स्पष्ट इरादे" का संकेत थी.
सीएसआईएस ने यह भी कहा कि चीन, रूस और दूसरे देशों की तरह ही भारत से लगातार "विदेशी हस्तक्षेप" का खतरा बना हुआ है. एजेंसी के मुताबिक, "कनाडा को भारत सरकार की ओर से सिर्फ नस्ली, धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों में ही नहीं बल्कि कनाडा के राजनीतिक सिस्टम में भी लगातार विदेशी हस्तक्षेप को लेकर सतर्क रहना चाहिए."
एजेंसी ने कहा कि वह कनाडा में भारत की गतिविधियों पर नजर बनाए रखेगी. निज्जर की हत्या में पुलिस की जांच भी अभी चल ही रही है. यह रिपोर्ट दोनों देशों के बीच राजनयिक सेवाओं के दोबारा शुरू किए जाने के फैसले की ऐतिहासिक घोषणा के एक ही दिन बाद सार्वजनिक की गई.
17 जून को ही जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान अलग से कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई द्विपक्षीय बातचीत में यह फैसला लिया गया था. कार्नी ने मोदी को सम्मेलन में एक अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था.
हालांकि यह निमंत्रण भी बहुत देर से भारत को भेजा गया था, जिसकी वजह से अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं कि कनाडा शायद निमंत्रण नहीं भेजेगा. निमंत्रण भेजे जाने, दोनों नेताओं के हाथ मिलाने और उच्चायुक्तों की नियुक्ति के फैसले के बाद लगने लगा था कि शायद द्विपक्षीय रिश्ते सुधरने की राह पर हैं.
बनी रह सकती हैं मुश्किलें
सीएसआईएस की इस रिपोर्ट में किए गए दावों के बाद जानकारों को इस सुधार को लेकर संशय हो गया है. वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार संजय कपूर ने डीडब्ल्यू को बताया कि रिश्ते सुधारने की दोनों देशों की कोशिश एक 'अच्छा आइडिया' है लेकिन कार्नी का 'कानून के शासन' पर जोर देना और फिर इस रिपोर्ट का आना इस बात का संकेत है कि "सब कुछ ठीक नहीं है."
कपूर ने ध्यान दिलाया कि कनाडा के कई सांसद भारतीय खुफिया एजेंसियों के जरिए सिख समुदाय को निशाना बनाने की आलोचना करते हैं और उन्होंने जी7 सम्मेलन के लिए भारत को निमंत्रण दिए जाने की भी आलोचना की थी. कपूर का मानना है कि "सच यह है कि यह रिश्ता पुलिस जांच और अन्य चीजों की वजह से लड़खड़ाता ही रहेगा."
2023 में कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से भारत पर निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था. इसी के बाद दोनों देशों के बीच प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई का एक कड़वा दौर शुरू हो गया था.
दोनों देशों ने एक दूसरे के उच्च आयुक्तों को निकाल दिया था और उच्चायोगों के कर्मचारियों की संख्या को भी काफी घटा दिया था. कनाडा में रहने वाले भारतीय छात्रों पर इस कूटनीतिक लड़ाई का काफी असर पड़ा था.
भारत ने निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप को लगातार ठुकराया है और कहा है कि कनाडा को खालिस्तान का हिंसात्मक समर्थन करने वालों के खिलाफ ज्यादा कार्रवाई करनी चाहिए. इस दौरान अमेरिका ने भी भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एक एजेंट पर अमेरिका में एक खालिस्तानी नेता की हत्या की असफल कोशिश में शामिल होने का आरोप लगाया था.
जी7 सम्मेलन के समापन पर समूह के सभी नेताओं ने भी एक बयान जारी किया जिसमें योजनाबद्ध हत्या की कोशिशों समेत सरकारों के प्रायोजित "अंतरराष्ट्रीय दमन" की निंदा की गई. सीएसआईएस की नई रिपोर्ट पर अभी तक भारत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
खालिस्तानी गतिविधियों के खतरे को कनाडा ने माना
हालांकि सीएसआईएस की इस रिपोर्ट का एक और दिलचस्प पहलू है. रिपोर्ट में बड़े स्पष्ट रूप से कनाडा में खालिस्तानी संबंधी गतिविधियों को 'हिंसक चरमपंथ' कहा गया है. रिपोर्ट कहती है, "1980 के दशक से मध्य से 'राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंसक चरमपंथ' कनाडा स्थित खालिस्तानी चरमपंथियों (सीबीकेई) के रूप में सामने आया है, जो खालिस्तान नाम के आजाद देश की स्थापना करने के लिए हिंसक तरीकों का समर्थन करने और उन्हें इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं."
रिपोर्ट के मुताबिक, "सिर्फ कुछ व्यक्तियों के एक छोटे समूह को खालिस्तानी चरमपंथी माना जाता है क्योंकि वे मुख्य रूप से भारत में हिंसा के प्रोत्साहन, पैसे इकठ्ठा करना और योजना बनाने के लिए कनाडा को एक अड्डे के रूप में इस्तेमाल करते हैं."
आगे लिखा गया है कि हिंसक गतिविधियों में सीबीकेई लोगों का शामिल होना जारी है जो कनाडा और कनाडाई हितों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरा है. विशेष रूप से "कनाडा से निकलने वाला असली और कथित खालिस्तानी चरमपंथ कनाडा में भारत की तरफ से विदेशी हस्तक्षेप का कारण बना हुआ है."
कई जानकारों का कहना है कि यह पहली बार है जब कनाडा ने खालिस्तानी गतिविधियों को चरमपंथ से जोड़ा है. संजय कपूर का कहना है कि इससे भारत के आरोपों की पुष्टि हुई है कि खालिस्तानी समूह कनाडा में सक्रिय हैं और वहां से भारत के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अब अगर दोनों देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा की जाएं और कानूनी एजेंसियां एक दूसरे का सहयोग करें, तो द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार आ सकता है.