हर मिट्टी और जलवायु के लिए बोगेनवेलिया है खास
भारत में भीषण गर्मी के बीच जहां पेड़ पौधे सूख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सड़क के किनारे हो या फिर झाड़ियों में और या फिर घरों की बगिया में, हर जगह बोगेनवेलिया के अलग-अलग रंगों के फूल अपनी छटा बिखेरते दिख जाते हैं.
कैसे पौधे हैं बोगेनवेलिया
झाड़ियों से लेकर हेज प्लांट, टोपियरी, क्लाइंबर या बॉर्डर - किसी भी रूप में ढल जाने वाले बोगेनवेलिया के पौधे न केवल लगाने में आसान हैं बल्कि भीषण गर्मी में भी कई तरह से प्रकृति के काम आते हैं.
विविधता के भंडार
दुनिया भर में बोगेनवेलिया की 1,500 से भी अधिक किस्में पाई जाती हैं. केवल भारत में ही इनमें से 250 से 300 किस्में में पाई जाती हैं. आस्ट्रेलिया, चीन, ताइवान, सिंगापुर, इंडोनेशिया, फिलीपींस समेत दुनिया के कई देशों में बोगेनवेलिया की नई किस्में विकसित करने पर काम किया जा रहा है.
एनबीआरआई लखनऊ का योगदान
लखनऊ में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में बोगेनवेलिया की 250 से अधिक किस्में मौजूद हैं. इनमें से 30 किस्में एनबीआरआई ने खुद विकसित की हैं. बोगेनवेलिया की पत्तियां मिट्टी और हवा के प्रदूषण को कम करने में काफी सहायक होती हैं इसीलिए उनकी कई किस्मों को सड़क के किनारे लगाया जाता है ताकि धूल और अन्य प्रदूषक तत्वों को वह वातावरण से हटा सकें.
भारत में कहां से आया बोगेनवेलिया
बोगेनवेलिया सोसाइटी ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और एनबीआरआई के बोटैनिक गार्डन के पूर्व प्रमुख डॉक्टर आरके रॉय बताते हैं कि बोगेनवेलिया का पौधा 1,800 ईसवी में ब्राजील से युनाइटेड किंगडम और वहां से कोलकाता के एग्री-हॉर्टिकल्चर सोसाइटी में लाया गया. प्रदर्शनियां लगाकर इसकी विशेषताएं बताने और अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को बांटने के कारण आज यह पूरे भारत में पाया जाता है.
कम पानी में भी खिलते फूल
रॉय कहते हैं, “इसकी सबसे खास बात यह है कि यह सूखाग्रस्त क्षेत्रों में आसानी से लगाया जा सकता है. सुंदर दिखने के साथ ही इस पानी की आवश्यकता भी सबसे कम होती है. इसीलिए ठंडे प्रदेशों के अलावा यह फूल पूरे भारत में खिलते देखे जा सकते हैं.” खुद रॉय ने एनबीआरआई में कार्यरत रहने के दौरान बोगेनवेलिया की पांच किस्में विकसित की.
हर तरह की मिट्टी के लिए मुफीद
रॉय बताते हैं कि बोगेनवेलिया किसी भी प्रकार की मिट्टी और जलवायु में जिंदा रहते हैं. इसके फूल गर्मियों में मार्च, अप्रैल और मई और फिर अक्टूबर और नवंबर में खिलते हैं. एनबीआरआई के निदेशक डॉ. एके शासनी कहते हैं, “हमारे पास पौधे के लगभग 250 जर्म प्लाज्म मौजूद हैं. देश भर के वैज्ञानिक अपने शोध के लिए यहां से सहायता लेते हैं. संस्थान के उद्यान से भी पौधे की कुछ किस्में खरीदी जा सकती हैं.”