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"ऐसी औलाद होने से तो ना होना ही अच्छा था"

ईशा भाटिया६ जुलाई २०१६

खानदान की इज्जत जरूरी है या बेटी की जिंदगी? अजीब सवाल है ना! खानदान की इज्जत से ऊपर भी कभी कुछ होता है क्या भला?

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Pakistan Familienrache Mutter tötet Tochter in Lahore
यहीं जलाया गया जीनत कोतस्वीर: picture-alliance/dpa

परवीन ने अपनी बेटी का गला हाथों में लिया और तब तक उसे दबाती रही जब तक बेटी की सांसें नहीं रुक गईं. फिर उसने मिट्टी का तेल उठाया और अपनी बेटी पर छिड़क दिया. उस पर इतना गुस्सा सवार था कि बेटी को आग लगाने के बाद भी वह रुकी नहीं. छत पर चढ़ कर चिल्लाने लगी, "मार दिया मैंने अपनी बेटी को, बचा ली मैंने अपनी इज्जत, अब वो कभी मेरा नाम खराब नहीं कर सकेगी."

Pakistan Lahore grausame Ehrenmorde Hassan Khan verlor seine junge Frau
जीनत की तस्वीर के साथ हसनतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K.M. Chaudary

परवीन की बेटी 18 साल की थी. जीनत. अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है कि जीनत ने क्या गुनाह किया होगा. जी हां, उसे प्यार हो गया था. प्यार, जिसके बारे में बातें करना तो बेहद खूबसूरत होता है लेकिन जब वह सच में हो जाता है, तो अंजाम ऐसा होता है. कम से कम हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की तो यही सच्चाई है. जिस वक्त मां बेटी में झगड़ा हो रहा था, जीनत की भाभी चिल्ला रही थी, "कोई उसकी मदद करो." मोहल्ले वाले चीखें सुन रहे थे लेकिन किसी के झगड़े में कोई क्यों फंसेगा भला! जब धुआं दिखना शुरू हुआ, तब भी भाभी कुछ ना कर सकी. मां ने दरवाजा बंद कर रखा था. मोहल्ले वालों से पूछेंगे तो पता चलेगा कि मां ने जो किया ठीक ही किया.

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और पढ़ाओ बेटियों को!

"लड़कियों पर घर की इज्जत संभाल कर रखने की जिम्मेदारी होती है. खानदान की नाक कटाने वाली बेटी होने से तो बेहतर है कि आपकी कोई औलाद ही ना हो." ये शब्द मोहल्ले में ही रहने वाली मुनीबा बीबी के हैं. उनकी अपनी भी बेटियां हैं और उन्हें यकीन है कि पढ़ाई लिखाई ही बेटियों के हाथ से निकलने की असली वजह है. अपनी बेटियों पर लगाम कैसे कसनी है, वो अच्छी तरह जानती हैं, "दिक्कत सारी यह है कि लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं, वहां लड़के दिखते हैं और इन्हें इश्क हो जाता है. मैं तो अपनी बेटियों को कभी स्कूल नहीं भेजूंगी, यही इलाज है इसका." इतना ही नहीं, जीनत की मौत को भी वो सही मानती हैं, "यहां की लड़कियों के लिए यह अच्छा सबक है कि घर की इज्जत के साथ खेलने से क्या होता है."

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वही किस्सा, वही कहानी

जीनत पाकिस्तान के लाहौर की रहने वाली थी. उसकी दो बड़ी बहनें भी थीं. दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की. अब जीनत ही मां की आखिरी उम्मीद थी. मां रिश्ते देख रही थी, राजपूतों में. लेकिन जीनत को तो एक मकैनिक से प्यार हो गया था. राजपूतों के सामने एक मकैनिक की क्या औकात! जीनत को पता था कि घर वाले नहीं मानेंगे, इसलिए घर से भाग कर हसन के साथ निकाह रचा लिया. और फिर वही हुआ जो ऐसे मामलों में होता है. लड़की लड़के के साथ रहने लगी. कुछ ही दिन में घर वाले लेने आ गए. डांट फटकार कर तो बात बनने नहीं वाली थी, तो प्यार से मना कर ले गए कि धूम धाम से शादी करेंगे, सबके सामने. लड़की मान गई, घर लौट आई. दो दिन सब ठीक चला, तीसरे दिन लड़ाई झगड़ा शुरू हुआ और चार दिन बाद बेटी को जला कर किस्सा खत्म हुआ.

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ऐसे किस्से और भी आते रहेंगे, कई जीनतें मरती रहेंगी, कभी लड़की अकेली जलाई जाएगी, तो कभी लड़के के साथ लेकिन ऑनर किलिंग का ये सिलसिले पता नहीं कब थमेगा! पाकिस्तान में हर रोज औसतन तीन ऑनर किलिंग होती हैं. यह सरकारी आंकड़ा है. असली आंकड़ा कौन बता सकता है! भारत हो या पाकिस्तान, बच्चे प्यार में पड़ते रहेंगे, मां बाप उनकी जान लेते रहेंगे और यह कह कर खुद को दिलासा देते रहेंगे कि ऐसी औलाद होने से तो ना होना ही अच्छा था!

ईशा भाटिया (एपी)