यूरोपीय अदालत के फैसले से ऐसे बदलेगी जर्मनी की आप्रवासन नीति
८ अगस्त २०२५जर्मन सरकार या यूरोपीय संघ के आकलन के मुताबिक, उन देशों को ‘सुरक्षित देश' माना जाता है जिनके नागरिकों को सरकारी उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ता या उसका डर नहीं होता. हालांकि, यह आकलन कितना सही है, इस पर हमेशा बहस होती रहती है और कई बार यह मामला अदालतों में पहुंच जाता है.
पिछले हफ्ते, यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (ईसीजे) ने फैसला सुनाया कि यूरोपीय संघ के देश शरण के मामलों को जल्दी निपटाने के लिए कुछ देशों को ‘सुरक्षित देश' घोषित कर सकते हैं, लेकिन उन्हें या अधिकारियों को यह बताना होगा कि उन्होंने ऐसा किस आधार पर किया. कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी देश को सुरक्षित तभी माना जाएगा जब वहां के सभी लोगों, खासकर अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा मिले.
जर्मनी में नहीं आ सकेंगे शरणार्थियों के परिवार
लक्जमबर्ग स्थित ईसीजे ने यह भी कहा कि शरण से जुड़े मामलों को तेजी से निपटाने की प्रक्रिया अपनाना यूरोपीय संघ के कानून का उल्लंघन नहीं है, लेकिन जिन देशों को ‘सुरक्षित' घोषित किया गया है, उस फैसले की न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए, ताकि प्रवासी अपने शरण के दावों पर लिए गए फैसलों को चुनौती दे सकें.
जर्मनी के पास ‘सुरक्षित देशों' की अपनी एक सूची है. इन देशों से आने वाले और शरण चाहने वाले लोगों जर्मनी में शरण मिलने की संभावना बहुत कम होती है. फिलहाल, इस सूची में आठ यूरोपीय गैर-ईयू देश और दो अफ्रीकी देश शामिल हैं.
अल्जीरिया, भारत, मोरक्को और ट्यूनीशिया को ‘सुरक्षित देश' के तौर पर नामित करने की योजना
जर्मनी की नई गठबंधन सरकार में सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीडीयू/सीएसयू) और सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) शामिल हैं. इस सरकार ने इस साल की शुरुआत में अपने गठबंधन समझौते में कई अन्य देशों को ‘सुरक्षित देशों' की सूची में जोड़ने पर सहमति जताई थी. इसमें कहा गया था, "हम लगातार यह आकलन कर रहे हैं कि क्या अन्य देश इस मानदंड को पूरा करते हैं या नहीं. खास तौर पर, किसी देश को ‘सुरक्षित' तब माना जाएगा, जब पिछले पांच सालों में उस देश के 5 फीसदी से कम शरण-चाहने वाले लोगों के आवेदन स्वीकार हुए हों.”
45 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची यूरोप की आबादी
यह देखना अभी बाकी है कि यह योजना गठबंधन समझौते में जितनी आसान लगती है, ईसीजे के फैसले के बाद उतनी आसानी से लागू भी हो पाएगी या नहीं. शरण नीति के मामलों को देखने वाले गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस फैसले की समीक्षा की जाएगी.
फिर भी, जर्मन सरकार अब भी यह प्रक्रिया बदलने की योजना बना रही है कि किसी देश को ‘सुरक्षित देश' कैसे घोषित किया जाए. भविष्य में यह फैसला एक सरकारी आदेश के जरिए किया जाएगा. इसका मतलब होगा कि न तो जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग और न ही ऊपरी सदन बुंडेसराट इस फैसले में कोई भूमिका निभा पाएंगे. बता दें कि इन दोनों सदनों में जर्मनी के 16 राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं.
गृहमंत्री अलेक्जांडर दोबरिंट ने शरण कानून में सुधार की मांग की
गठबंधन सरकार ने इस मुद्दे पर पहले ही एक मसौदा विधेयक पेश कर दिया है, जिस पर संसद की गर्मी की छुट्टियों के बाद वोटिंग होनी है. हालांकि, इस पर पहली बहस जुलाई में हो चुकी है. उस दौरान गृहमंत्री अलेक्जांडर दोबरिंट ने कहा कि जिन शरणार्थियों की याचिका खारिज हो चुकी है उनमें से काफी कम लोगों को वापस उनके देश भेजा गया है. यह स्थिति ठीक नहीं है, बल्कि चिंता की बात है.
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उन्होंने सांसदों से कहा, "हमारा लक्ष्य अब यह है कि अवैध प्रवास को प्रभावी ढंग से रोकने में जो बाधाएं हैं उन्हें दूर किया जाए.” सीएसयू नेता दोबरिंट ने जिन बाधाओं की ओर इशारा किया, उनमें से एक यह है कि मौजूदा कानून के मुताबिक, जिन लोगों को देश छोड़ने का आदेश दिया गया है, उन्हें देश से निकाले जाने से पहले कानूनी मदद लेने का अधिकार होता है. यह उन नियमों में से एक है जिन्हें समाप्त किया जाना है. दोबरिंट को उम्मीद है कि इससे उन लोगों को जल्दी वापस भेजा जा सकेगा जो ऐसे देशों से आए हैं जिन्हें जर्मनी पहले ही ‘सुरक्षित' मान चुका है.
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यूरोपीय संघ के भीतर पहले से ही ऐसे केंद्र बनाने पर बात चल रही है जहां वैसे लोगों को रखा जाएगा जिनकी शरण की मांग खारिज हो गई है, ताकि उन्हें उनके देश वापस भेजने की प्रक्रिया पूरी की जा सके. पिछले महीने कोपेनहेगन में हुई बैठक में ईयू के सदस्य देशों के गृह मंत्रियों ने इस मुद्दे पर चर्चा की.
दोबरिंट भी इस विचार के पक्ष में हैं. उन्होंने बताया कि किसी एक सदस्य देश के लिए गैर-ईयू देशों के साथ समझौते करना मुश्किल हो सकता है. जबकि, अगर ईयू के कई देश मिलकर काम करें, तो यह प्रक्रिया आसान और तेज हो सकती है. कुछ देशों ने पहले ही इस दिशा में ठोस योजनाएं बनाई हैं. दोबरिंट कहते हैं, "जर्मनी भी इस दिशा में कदम उठा सकता है.”
‘जिन लोगों को यहां ठहरने की अनुमति नहीं मिल सकती उन्हें आना ही नहीं चाहिए'
दोबरिंट के मुताबिक, अब तक जर्मनी में कई ऐसे लोग आए हैं जो शरण पाने के योग्य नहीं थे. उन्हें उम्मीद है कि प्रस्तावित सुधारों से एक साफ और सख्त संदेश जाएगा कि अवैध प्रवासन अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, "जो लोग ऐसे देशों से आते हैं जिन्हें सुरक्षित माना गया है, उन्हें आना ही नहीं चाहिए. जो यहां रह नहीं सकते, यानी जिन्हें यहां रुकने की अनुमति नहीं मिलनी है, उन्हें शुरुआत में ही नहीं आना चाहिए. उन्हें पहले ही आने से बचना चाहिए.”
जर्मनी में कुछ विपक्षी नेता उम्मीद कर रहे हैं कि यूरोपीय न्यायालय का यह फैसला केंद्र सरकार को शरण नीति पर अपना रुख बदलने के लिए मजबूर करेगा. ग्रीन पार्टी की सांसद फिलिज पोलाट ने कहा, "सुरक्षित देशों' पर ईसीजे का फैसला यूरोप में मानवाधिकारों और शरण पाने के व्यक्तिगत अधिकार के लिए एक बड़ी जीत है. बुंडेस्टाग और बुंडेसराट की निगरानी के बिना, कानूनी आदेश के जरिए कुछ देशों को ‘सुरक्षित देश' के तौर पर वर्गीकृत करने की योजना संभव नहीं है.”
‘जॉर्जिया और मोल्दोवा सुरक्षित देश नहीं हैं'
लेफ्ट पार्टी की क्लारा बुंगर ने भी सत्तारूढ़ गठबंधन से ‘सुरक्षित देशों' की सूची की व्यापक समीक्षा करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि जॉर्जिया और मोल्दोवा को इस सूची से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए.
इसके पीछे की वजह, अबखाजिया और साउथ ओसेटिया से अलग हुए क्षेत्रों में मानवाधिकारों की नाजुक स्थिति को बताया गया है. इसी तरह, यूरोपीय संघ का सदस्य देश चेक गणराज्य, मोल्दोवा के केवल कुछ हिस्सों को ही सुरक्षित मानता है. जबकि, ट्रांसनिस्ट्रिया क्षेत्र पर रूस-समर्थक अलगाववादियों का नियंत्रण है और इसलिए उसे असुरक्षित माना जाता है. बुंगर के मुताबिक, ईसीजे का फैसला "ट्यूनीशिया और अल्जीरिया जैसे देशों को ‘सुरक्षित देश' मानने की सरकार की योजना को भी खारिज करता है.”
ट्यूनीशिया और अल्जीरिया, दोनों देशों में समलैंगिक यौन संबंध कानूनन दंडनीय हैं. इन देशों को सुरक्षित मानने से ईसीजे के फैसले का उल्लंघन होगा. इसकी वजह यह है कि कोर्ट के हिसाब से कोई देश ‘सुरक्षित' तभी माना जाएगा जब वहां की पूरी आबादी सुरक्षित हो.