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भारत-पाकिस्तान विवाद से धार्मिक मतभेद बढ़ने की आशंका

महिमा कपूर
१५ मई २०२५

भारत प्रशासित कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में खास तौर पर हिंदुओं को निशाना बनाया गया था. विशेषज्ञों का मानना है कि यह इस्लामिक हमला भारत में हिंदू-मुस्लिम तनाव भड़काने के इरादे से किया गया था.

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Proteste nach Terroranschlägen in Kaschmir
तस्वीर: Debarchan Chatterjee/NurPhoto/picture alliance

भारत के विदेश सचिव, विक्रम मिस्री ने 8 मई को नई दिल्ली में पत्रकारों के सामने खड़े होकर देश को संबोधित किया. जिसमें पहलगाम की खूबसूरत वादियों में हुए दर्दनाक हमले पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमलावरों का असली मकसद "जम्मू-कश्मीर और देश भर में सांप्रदायिक तनाव को भड़काना” था.

22 अप्रैल को भारत-प्रशासित कश्मीर में 26 नागरिकों की हत्या कर दी गई. ज्यादातर लोगों को उनके परिवार के सामने ही गोली मार दी गई थी. इस सवाल के साथ कि वह हिंदू है या मुसलमान.

विक्रम मिस्री के साथ मंच पर दो सैन्य अधिकारी भी थे. एक, कर्नल सोफिया कुरैशी, जो मुसलमान थी और दूसरी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह, जो कि हिंदू थी. यह तस्वीर धर्म और लिंग के प्रति एकता और सेना-सरकार के बीच तालमेल का पैगाम दे रही थी.

इसलिए जब उन्होंने कहा, "यह भारत सरकार और देश की जनता के योगदान और सजगता का प्रमाण है कि इस साजिश को विफल कर दिया गया,” तो उनके शब्दों में भरोसा झलक रहा था. हालांकि इस तस्वीर के परे भी एक दूसरी सच्चाई है.

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खूब हुए नफरती भाषण 

जब से भारत सरकार ने पाकिस्तान पर सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया है, तब से देश में मुस्लिम-विरोधी भावना में बढ़ोतरी हुई है. उग्र राष्ट्रवादी सोशल मीडिया अकाउंट ने इस नफरत को भड़काने का काम किया है, जो भारतीय मुसलमानों को "घुसपैठिया" और "गद्दार" कहकर निशाना बना रहे थे.

दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने एक बयान जारी कर सरकार से "पाकिस्तानी नागरिकों और उनके स्लीपर सेल्स” को बाहर निकालने की मांग की. भारतीय मीडिया ने रिपोर्ट किया कि वीएचपी नेता, सुरेंद्र जैन ने कहा है, "इस घटना से साफ है कि आतंकवादियों का मजहब है.”

ऑनलाइन नफरत जल्द ही जमीनी हकीकत में बदल गई, जब हैदराबाद की मशहूर "कराची बेकरी” में तोड़फोड़ की गई. प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि बेकरी अपना नाम बदले क्योंकि कराची पाकिस्तानी शहर है और भारत में उसके लिए कोई जगह नहीं है.

स्थानीय मीडिया के मुताबिक, पुलिस ने इस घटना के सिलसिले में कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया. जिसमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के भी कुछ सदस्य शामिल थे.

हालांकि, यह बेकरी हिंदुओं की है, जिनके पूर्वज 1947 में विभाजन के समय कराची से भारत आए थे.

पहलगाम हमले के शुरुआती 10 दिनों में एनजीओ, इंडिया हेट लैब, ने जम्मू-कश्मीर समेत नौ राज्यों में कम से कम 64 मुस्लिम-विरोधी नफरत फैलाने वाले भाषणों को दर्ज किया.

पहलगाम हमले के बाद से नफरती घटनाओं की आशंका बढ़ी

आगरा में एक बिरयानी की दुकान के मालिक को पहलगाम में हुए हमले का बदला लेने के नाम पर गोली मार दी गई. जबकि हमला वहां से लगभग 1,000 किलोमीटर दूर हुआ था. इसके अलावा, दिल्ली से लगभग तीन घंटे दूर अलीगढ़ में भी एक 15 साल के मुस्लिम लड़के के साथ मारपीट की घटना सामने आई. उसे पाकिस्तानी झंडे पर पेशाब करने के लिए भी मजबूर किया गया था. इसका वीडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर फैलता रहा.

मुंबई के एक मुस्लिम युवक ने डीडब्ल्यू से कहा, "लोग जब आतंकवादी हमलों की बात करते हैं तो बहुत गुस्से में इस्लामोफोबिक बातें कहने लगते हैं और भूल जाते हैं कि मैं भी वहीं बैठा हूं. वह मुझे अलग नजरिए से देखने लगते हैं.”

उन्हें गुजरात में रहने वाले अपने माता-पिता की भी काफी चिंता होती है.

उन्होंने बताया, "वह (दक्षिणपंथी समूह) रैलियां कर रहे हैं और मुस्लिम-विरोधी नारेबाजी कर रहे हैं. मेरे माता-पिता डरे हुए हैं कि आने वाले दिनों में कुछ भी हो सकता है.” उन्होंने कहा कि वह अब भारत छोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं.

दिल्ली से सात घंटे दूर बसे नैनीताल में एक 12 साल की बच्ची से बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया.

नैनीताल के एक व्यापारी शाहिद (बदला हुआ नाम) ने बताया, "जिस व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप है, वह मुसलमान है. ऐसे में एक मई को शाम पांच से छह बजे के बीच, समुदाय की तरफ से उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज हो गई. जो कि सही भी है. लेकिन थोड़ी देर में वहां हिंदू दक्षिणपंथी समूहों के कुछ लोग आ गए.”

शाहिद ने आगे बताया कि कैसे वहां हिंदू और मुस्लिम समुदायों का गुस्सा सड़कों पर उतर आया. नतीजा यह हुआ कि कई मुस्लिम दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया. उन्होंने आगे कहा, "अगले दो दिनों तक बाजार में कर्फ्यू जैसा माहौल हो गया था. मेरे परिवार ने भी मुझे काम पर जाने से रोक दिया था.”

उन्होंने कहा, "आज तक लोग बस इसी बारे में बात कर रहे है. हिंसा, आतंकवादी हमला, और भारत-पाकिस्तान का युद्ध. पड़ोसी आकर मुझे कहते हैं कि देखो, हमने पाकिस्तान के ड्रोन गिरा दिए.” हालांकि, सुनने में यह आम सी बात लगती होगी लेकिन इसके पीछे छुपी मंशा बहुत चुभती है जैसे वे कहना चाह रहे हों कि "देखो, तुम्हारे समुदाय की साजिश नाकाम हो गई."

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बढ़ रहा है आक्रोश

राष्ट्रीय सुरक्षा पर केंद्रित भारतीय पत्रिका, "फोर्स” की संपादक, गजाला वहाब का कहना है कि भारत-पाकिस्तान के बीच टकराव ने पहले भी अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत भड़काने का काम किया है लेकिन पहलगाम हमले के बाद जिस स्तर पर घटनाएं हुई हैं" वैसा पहले कभी नहीं देखा गया है.”

उन्होंने डीडब्लू से कहा, "पिछली सरकारों और मौजूदा सरकार में एक बड़ा अंतर है. हालांकि, 1965 और 1971 में जंग हुई थी, जिसके बाद सियाचिन में लगातार तनाव बना हुआ था. लेकिन भारत और पाकिस्तान के आम लोगों के बीच बातचीत और रिश्तों में कभी इतनी दूरी नहीं आई थी.”

इस बार 22 अप्रैल को हुई हत्याओं के बाद, भारत ने पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा बंद कर दी और पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए सभी वीजा भी रद्द कर दिए. यात्रा और व्यापार, दोनों को पूरी तरह से रोक दिया गया है.

गजाला वहाब ने आगे कहा, "पहले हिंसा की घटनाएं कभी-कभार होती थी और वह भी दक्षिणपंथी समूहों के कुछ हिस्सों द्वारा की जाती थी. जैसा कि 1991 में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच से पहले मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोद दी गई थी. लेकिन अब वह छोटे समूह मुख्यधारा में आ चुके हैं.”

वरिष्ठ पत्रकार, निरुपमा सुब्रमण्यम ने डीडब्ल्यू से कहा कि हाल के वर्षो में दक्षिणपंथी समूहों को खुली छूट मिलने से उनका हौसला बढ़ गया है.

हालांकि, पहलगाम हमले के बाद की प्रतिक्रिया को लेकर उन्होंने कहा, "कुछ छिटपुट घटनाएं जरूर हुई है जैसे डराना-धमकाना, परेशान करना, और कहीं-कहीं हिंसा भी. लेकिन यह दंगा नहीं बना, जो शायद हमले का मकसद था. इसलिए इसे मैं एक सकारात्मक संकेत मानती हूं.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ
अमेरिका की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान ने संघर्षविराम हुआतस्वीर: Hindustan Times/Samuel Corum/Ahmad Kamal/picture allianc

डर का माहौल बनाने की कोशिश

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुकी, तनिका सरकार, भारत की राजनीति, धर्म और समाज के त्रिकोणीय संबंधों पर कई किताबें लिख चुकी हैं. उन्होंने समझाया कि आपसी अविश्वास कैसे एक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आता है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "जब युद्ध होता है, तो उसका असर घरेलू हिंसा के रूप में तुरंत नहीं दिखता है लेकिन वह कड़वी यादें, इतिहास और आरोपों में बदल जाती हैं. मुझे नहीं पता कि पाकिस्तान में स्थिति कैसी है, लेकिन शायद वहां भी कुछ ऐसे ही हालात होंगे.”

इस बार, भारत के कुछ न्यूज चैनलों ने भी अपनी भूमिका सही से नहीं निभाई. 8 मई से 10 मई के बीच देश के कई लोकप्रिय चैनलों ने उत्तेजक और अपुष्ट खबरें चलाई, जो बाद में झूठी साबित हुई. इसके साथ ही, व्हाट्सएप पर फैलते संदेशों ने भी डर के माहौल को बढ़ाने में मदद की है.

तनिका सरकार का मानना है कि डर, और ज्यादा डर पैदा करता है. उन्होंने कहा, "ऐसे हालात में इंसान किसी चीज पर भरोसा नहीं कर पाता है. ना ही पूरी तरह से इंकार कर पाता है. और अगर किसी के मन में पहले से ही ऐसा डर हो, तो वह हर मुसलमान को शक की निगाह से देखने लगता है.”

उन्होंने आगे कहा, "भले ही यह हमले आम ना हों, लेकिन भारत में रहने वाले हर मुसलमान के दिल में यह डर की भावना पैदा कर देते हैं.”