सनस्क्रीन सच में फायदेमंद है या बस प्रचार है?
१ अगस्त २०२५हर साल त्वचा कैंसर के तीन लाख से ज्यादा नए मामले सामने आते हैं, जबकि इस बीमारी को रोका जा सकता है. इसके बावजूद, ये मामले लगातार बढ़ रहे हैं. खासकर उन इलाकों में, जहां पहले ऐसे मामलों की संख्या कम थी.
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सीधी धूप से बचने, टोपी और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनने के साथ-साथ असरदार सनस्क्रीन उत्पाद भी सालों से उपलब्ध हैं. सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सनस्क्रीन के बारे में सही और गलत, दोनों तरह की बातें फैल रही हैं. इस वजह से कुछ लोग कैंसर से बचाने वाले इन उत्पादों का इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स और केराकोल लिमिटेड (यूके) के मटीरियल साइंटिस्ट रिचर्ड ब्लैकबर्न, सनस्क्रीन और स्किन प्रोडक्ट पर रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़ा काम करते हैं. वह बताते हैं, "मैं अपनी हर रिसर्च में सबसे जरूरी बात यही बताना चाहता हूं कि सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना कितना जरूरी है."
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उन्होंने कहा, "हमें त्वचा, त्वचा के नुकसान, डीएनए के नुकसान और त्वचा की उम्र बढ़ने के बारे में चिंतित होना चाहिए. इसलिए अगर आप बाहर जा रहे हैं, तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना वाकई मायने रखता है."
पराबैंगनी किरणों से त्वचा को होता है नुकसान
पराबैंगनी किरणें (यूवी लाइट) सूर्य से निकलती हैं, पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं और सतह तक पहुंचती हैं. ये किरणें हमारे लिए खतरनाक हैं. किंग्स कॉलेज लंदन के फोटोबायोलॉजिस्ट एंटनी यंग ने कहा, "पराबैंगनी किरणों से सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचता है."
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पराबैंगनी किरणें भले ही न दिखती हों, लेकिन जब इंसानी त्वचा इसे सोखती है और इससे जो नुकसान पहुंचता है वह साफतौर पर नजर आता है. यहां तक कि कभी-कभी आधे घंटे से भी कम समय के लिए धूप में रहना सनबर्न का कारण बन सकता है.
पराबैंगनी किरणें दो तरह की होती हैं. पहली, यूवीए. दूसरी, यूवीबी.
यूवीए एक लंबी वेवलेंथ की पराबैंगनी किरण है, जो त्वचा की गहरी परतों तक जाती है. वहीं, यूवीबी आमतौर पर त्वचा की ऊपरी परतों, जैसे कि एपिडर्मिस तक पहुंचती है. यही सनबर्न की सबसे बड़ी वजह है.
गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को भी पराबैंगनी किरणों से सावधान रहने की जरूरत है. हालांकि, प्राकृतिक रंगत कुछ समय के लिए पराबैंगनी किरणों से बचाव कर सकती है. लेकिन त्वचा तो त्वचा ही है, तो लंबे समय तक धूप में रहने से इसे भी नुकसान हो सकता है.
दो तरह की होती है सनस्क्रीन
20वीं सदी में पराबैंगनी किरणों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सनस्क्रीन विकसित की गई थी. इनमें कई तत्व होते हैं, लेकिन आमतौर पर इन्हें उनके सक्रिय गुणों के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जाता है.
इनमें से एक 'रासायनिक' सनस्क्रीन है. हालांकि, वैज्ञानिक इस परिभाषा से हटकर सोचने की कोशिश कर रहे हैं. आखिरकार हमारे ग्रह पर सब कुछ रसायनों से ही तो बना है.
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कई वैज्ञानिक 'ऑर्गेनिक सनस्क्रीन' शब्द को पसंद करते हैं, क्योंकि इनमें कार्बन-आधारित सक्रिय तत्व होते हैं. ये अणु त्वचा पर पड़ने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित होने से रोकते हैं. इसके कारण सनबर्न से बचाव होता है.
दूसरी श्रेणी को कभी-कभी 'फिजिकल' या 'नेचुरल' सनस्क्रीन कहा जाता है. इनमें भी सक्रिय तत्व रासायनिक होते हैं, लेकिन ये कार्बन-आधारित नहीं होते हैं. इनमें फिजिकल फिल्टर बनाने के लिए टाइटेनियम या जिंक ऑक्साइड के कणों का इस्तेमाल किया जाता है.
दोनों ही सनस्क्रीन पराबैंगनी किरणों को त्वचा में घुसने से रोककर नुकसान पहुंचने से बचाती हैं. हालांकि, कोई भी सनस्क्रीन पराबैंगनी किरणों को पूरी तरह फिल्टर नहीं करती. वह इसकी बड़ी मात्रा को रोकने में अहम भूमिका निभाती है.
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सनस्क्रीन की रेटिंग एसपीएफ या यूपीएफ लेबल से की जाती है. इस लेबल से पता चलता है कि सनस्क्रीन कितनी पराबैंगनी किरणों को रोक सकती है. उदाहरण के लिए एसपीएफ15, 93 फीसदी यूवीबी किरणों को रोकता है. वहीं एसपीएफ30, 97 फीसदी और एसपीएफ50, 98 फीसदी किरणों को रोकता है.
सनस्क्रीन पर कई भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही हैं
स्वास्थ्य अधिकारी त्वचा को होने वाले नुकसान से बचाने और त्वचा कैंसर की दर को कम करने के लिए सनस्क्रीन इस्तेमाल करने और धूप से सुरक्षा पर ध्यान देने के बारे में लगातार बात कर रहे हैं. वे सनस्क्रीन लगाने को कह रहे हैं.
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं, जिनमें कहा जाता है कि सनस्क्रीन फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है. इनमें से कुछ दावे झूठे हैं, जो आंकड़ों को गलत तरीके से पेश करते हैं.
वहीं, कुछ रसायनों को लेकर जायज चिंताएं भी हैं. ये ऐसे रसायन हैं, जिनका इस्तेमाल सालों से सनस्क्रीन बनाने में किया जा रहा है. हालांकि, इन्हें आमतौर पर सुरक्षित माना जाता रहा है, लेकिन सनस्क्रीन में इस्तेमाल हो रहे तत्व, जैसे कि ऑक्सीबेन्जोन, एवोबेन्जोन और ऑक्टिनॉक्सेट खून में पाए गए हैं. ये शरीर में जाकर हानिकारक पदार्थ में बदल सकते हैं.
ऐसे में वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य से जुड़े नियम-कानून बनाने वाली संस्थाओं के सामने बड़ा सवाल यह है कि क्या ये जहरीले तत्व इतनी मात्रा में होते हैं कि ये हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं?
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इस पूरे मामले पर यंग कहते हैं, "सबसे जरूरी बात यह है कि इसकी मात्रा कितनी है. यह बात सनस्क्रीन से महासागरों में होने वाले प्रदूषण की चिंताओं पर भी लागू होती है. दिक्कत यह है कि सनस्क्रीन की विषाक्तता यानी वे कितने नुकसानदायक हैं, इस पर ज्यादातर रिसर्च बहुत ज्यादा मात्रा के साथ की जाती हैं. असल में हम इतनी मात्रा इस्तेमाल ही नहीं करते."
त्वचा के डॉक्टर और शोधकर्ता कुछ और भी सलाह देते हैं. वे कहते हैं कि सनस्क्रीन की एक्सपायरी डेट और उसे कैसे रखना है, इस पर ध्यान दें. इसके अलावा, एक साथ कई तरह की सनस्क्रीन या एसपीएफ रेटिंग वाले मेकअप को मिलाकर इस्तेमाल न करें.
ब्लैकबर्न की रिसर्च से पता चला है कि दो अलग-अलग प्रकार के सनस्क्रीन उत्पादों का इस्तेमाल करने से वे ज्यादा असरदार नहीं होते हैं. उन्होंने बताया, "हमने पाया कि जब आप अलग-अलग सनस्क्रीन को मिलाकर लगाते हैं, तो वे उल्टा असर कर सकते हैं. यह सुनने में अजीब लगता है, क्योंकि हम सोचते हैं कि ज्यादा लगाने से ज्यादा सुरक्षा मिलेगी, पर असल में ऐसा नहीं होता है."
घरेलू सनस्क्रीन के नुस्खे हो सकते हैं खतरनाक
अब बात करते हैं तथाकथित 'नेचुरल सनस्क्रीन' की. इनमें प्रयोगशाला में बनी चीजों के बजाय कुदरती चीजें इस्तेमाल की जाती हैं. रेंडर्ड बीफ फैट, जिसे आमतौर पर टैलो कहा जाता है, को ऐसे ही एक उत्पाद के रूप में बेचा जाता है. कुछ घरेलू नुस्खे और ऑनलाइन ब्लॉग में, त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक तेलों और कुछ सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.
हालांकि, इन सामग्रियों में एसपीएफ अधिकतर न के बराबर होता है. 'नेचुरल' बताकर बेचे जाने वाले उत्पाद में आमतौर पर पर्याप्त सुरक्षा देने के लिए जिंक या टाइटेनियम ऑक्साइड जैसे रसायन होते हैं.
यंग, घर पर बनाई जाने वाली सनस्क्रीन के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी देते हैं. उन्होंने कहा, "इन घरेलू चीजों को लेकर सबसे बड़ी चिंता यह है कि आप इन्हें परख नहीं सकते. अच्छी सनस्क्रीन बनाना बहुत मुश्किल काम है, क्योंकि उसे ऐसा होना चाहिए कि लगाने में अच्छा लगे, खराब न हो और सबसे जरूरी बात कि धूप से पूरी सुरक्षा मिले."
पौधों से मिलने वाले तत्वों से बनाई जा सकती है सनस्क्रीन
सनस्क्रीन में इस्तेमाल होने वाले रसायन, चाहे वे त्वचा में अवशोषित होने वाले कार्बन कंपाउंड हों या जिंक जैसे फिजिकल प्रोटेक्टर, फिलहाल एसपीएफ के लिए सबसे बढ़िया माने जाते हैं. इसके बावजूद, वैज्ञानिक अब प्रकृति में मौजूद नए रसायनों की खोज कर रहे हैं.
कई दवाओं की तरह पौधों, फफूंदी और दूसरे जानवरों से मिलने वाले कार्बन कंपाउंड का इस्तेमाल भी सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है. यंग ने बताया, "ऐसे प्राकृतिक रसायन मौजूद हैं, जिनमें सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता है. खासकर पौधे, जो अपने डीएनए की सुरक्षा के लिए रसायन बनाते हैं."
ब्लैकबर्न के जैसी प्रयोगशालाएं ऐसे कार्बन कंपाउंड की खोज करने, उन्हें निकालने और उत्पादन करने की कोशिश कर रही हैं जिनका उपयोग सनस्क्रीन में किया जा सके. इससे भविष्य में हमें सनस्क्रीन के लिए प्रयोगशाला में बनाए गए रसायन पर कम निर्भर रहना पड़ेगा. हालांकि, अमेरिका जैसी जगहों पर इन नए रसायनों को इस्तेमाल करने से पहले सरकार या स्थानीय कानूनी निकायों से मंजूरी लेनी पड़ेगी.
ब्लैकबर्न ने कहा, "हर चीज रसायन विज्ञान ही है. अगर हमें यह समझ आ जाए कि रासायनिक स्तर पर क्या काम कर रहा है, तो हम सनस्क्रीन को और बेहतर बना सकते हैं. ऐसे पौधे खोज सकते हैं जो धूप से उसी तरह की सुरक्षा दे सकें."