कितनी 'बिजली-पानी' चूसते हैं चैटजीपीटी जैसे एआई
३ फ़रवरी २०२५चीनी एआई चैटबॉट डीपसीक ने बीते दिनों चैटजीपीटी जैसे एआई मॉडल को अपनी कम कीमत और संचालन में आने वाले कम खर्च से खुली चुनौती दी. इसने आर्टिफफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल्स के संचालन से पर्यावरण और जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम करने की बात कही थी.
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अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, एआई के संचालन के लिए दुनिया भर में मौजूद 8000 से ज्यादा डाटा सेंटर वैश्विक बिजली का लगभग 1 से 2 फीसदी इस्तेमाल करते हैं. वित्तीय सेवा कंपनी गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 2030 तक बिजली के लिए डाटा सेंटर की मांग 160 फीसदी बढ़ सकती है.
गूगल से ज्यादा बिजली खाता है एआई
एआई कंपनियों के बीच लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा आने वाले समय में पर्यावरण के लिए कितनी घातक हो सकती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गूगल पर सर्च किए जाने वाले परिणाम की तुलना में चैटजीपीटी एक सवाल पूछने पर दस गुना ज्यादा बिजली खर्च करता है.
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एआई को तेजी से जवाब देने के लिए बहुत तेज कैलुकेलशन करनी पड़ती है और इस काम की जिम्मेदारी माइक्रोचिप की होती है. माइक्रोचिप बनाने के लिए बहुत सारा पानी इस्तेमाल होता है. एक चिप बनाने में 8,300 लीटर से ज्यादा पानी इस्तेमाल होता है.
50 सवाल, आधा लीटर पानी
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल को ट्रेन करने के लिए लाखों लीटर पानी खर्च हो सकता है. 10 से 50 सवालों का जवाब देने के लिए यह आधा लीटर पानी खर्च कर देता है. 2027 तक एआई वैश्विक स्तर पर सालाना 6.6 अरब क्यूबिक मीटर पानी खर्च कर सकता है.
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पानी बचाने के लिए यह जरूरी है कि सूखा-ग्रस्त इलाकों में एआई के डाटा सेंटर बनाते समय पूरी सावधानी बरती जाए. साथ ही पानी का दोबारा इस्तेमाल, रीसाइकिलिंग और वर्षा जल संचयन जैसे साधनों के अलावा डाटा सेंटर को ठंडा रखने के लिए क्लोज-लूप लिक्विड कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने से मदद मिलेगी.
शोधकर्ताओं का कहना है कि एआई के लिए इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा को ज्यादा साफ और कुशल बनाना होगा यानी बिजली के लिए बैटरी और अक्षय ऊर्जा के साधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना होगा. साथ ही डाटा सेंटर को ऐसी जगह बनाने पर जोर देना होगा जहां प्रचुर मात्रा में सौर और पवन ऊर्जा उपलब्ध हो.
एवाई/वीके (रॉयटर्स/एएफपी)